माना कि तुम मुझसे महोब्बत बेशुमार करते हो,
पर तुम्हारी इस महोब्बत में मेरा भी बहुत कुछ शामिल हैं।
संजोती हूँ तुम्हारे प्रेम को तिनका-तिनका दिन-रात।
तुम्हारी महोब्बत को सहेजना यह भी कोई कम नहीं ।
माँगते हो जब तुम मुझसे अपनी महोब्बत का हिसाब,
तब तुम भूल जाते हो कि कभी-कभी न जताना,
भी इश्क की पराकाष्ठा है।
अपने उन लम्हों को सहजना और
महफ़ूज रखना भी तो प्रेम का हिस्सा है।
हो सकता है कि तुम हिसाब के पक्के और मैं थोड़ी कच्ची।
मैं तो जानती हूँ बस इतना कि
मेरी धङकनों और साँसों में अब तुम बसते हो।
मेरी हर बात की बजह अब तुम होते हो।
मेरे मौन और मेरे शब्दों में भी तुम ही होते हो।
क्या कभी माँगा है मैंने कोई हिसाब।
(आशिमा)
©Dr Archana
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