Dr Archana

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White अच्छा लगता है जब तुम मुझे, मेरे होने का अहसास करवाते हो। और मुझसे मेरी मुलाकात करवाते हो। भूल जाती हूँ जब-जब मैं खुद को, और धुंधलाने लगता है वज़ूद मेरा तब -तब तुम मुझसे मेरा तारुफ करवाते हो। खो जाती हूँ जब जिन्दगी की मसरूफियत में तब तुम चुपके से वहाँ से खींच लाते हो। अच्छा लगता है जब तुम मेरे गढे हुए शब्दों की रूह को छू पाते हो और उसमें छिपे हुए अहसास को महसूस कर पाते हो तब लफ्ज़ो की खूबसूरती को तुम और निखार जाते हो। अच्छा है जो इस कराबत का नाम नहीं तमाम कराबतों को देखा है गुमनाम होते हुए। (आशिमा) ©Dr Archana

#कविता #sad_dp  White अच्छा लगता है जब तुम मुझे,
 मेरे होने का अहसास करवाते हो।
और मुझसे मेरी मुलाकात करवाते हो।
भूल जाती हूँ जब-जब मैं खुद को,
और धुंधलाने लगता है वज़ूद मेरा
तब -तब तुम मुझसे मेरा तारुफ करवाते हो।
खो जाती हूँ जब जिन्दगी की मसरूफियत में
तब तुम चुपके से वहाँ से खींच लाते हो।
अच्छा लगता है जब तुम मेरे गढे हुए 
शब्दों की रूह को छू पाते हो 
और उसमें छिपे हुए अहसास को 
महसूस कर पाते हो तब लफ्ज़ो की खूबसूरती
को तुम और निखार जाते हो।
अच्छा है जो इस कराबत का नाम नहीं 
तमाम कराबतों को देखा है गुमनाम होते हुए।
                   (आशिमा)

©Dr Archana

#sad_dp

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#कविता #alone  White उसने बोला था कि कुल तो है 
जो तुम मुझसे छिपाती हो।
अपनी आँखों में क्यों ये दर्द लेकर घूमती हो।
क्यों दिखाई देती है तुम्हारी 
मुस्कान में उदासी की लकीरें ।
बह जाने दो ऑंखों से दरिया को।
कैसे बह जाने दूँ दरिया को अपनी आँखों से।
कैसे आ जाने दूँ कयामत को ,और डूब 
जाने दूँ सबके अरमानों को।
मैंने कस कर बाँध रखी है अपनी गिरह।
जिसमें बाँधी है पिता की इज्जत,पति का सम्मान,
और बच्चों का भविष्य। और बाँधा है 
अपने सपनों और ख्वाहिशो को।
बाँधे बैठी हूँ सब कुछ ऐसे, 
जैसे बाँधा था शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में। 
बचाने धरा को डूबने से, मैं भी बचा रही हूँ 
बहुत कुछ डूबने से। (आशिमा)

©Dr Archana

#alone कविता

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माना कि तुम मुझसे महोब्बत बेशुमार करते हो, पर तुम्हारी इस महोब्बत में मेरा भी बहुत कुछ शामिल हैं। संजोती हूँ तुम्हारे प्रेम को तिनका-तिनका दिन-रात। तुम्हारी महोब्बत को सहेजना यह भी कोई कम नहीं । माँगते हो जब तुम मुझसे अपनी महोब्बत का हिसाब, तब तुम भूल जाते हो कि कभी-कभी न जताना, भी इश्क की पराकाष्ठा है। अपने उन लम्हों को सहजना और महफ़ूज रखना भी तो प्रेम का हिस्सा है। हो सकता है कि तुम हिसाब के पक्के और मैं थोड़ी कच्ची। मैं तो जानती हूँ बस इतना कि मेरी धङकनों और साँसों में अब तुम बसते हो। मेरी हर बात की बजह अब तुम होते हो। मेरे मौन और मेरे शब्दों में भी तुम ही होते हो। क्या कभी माँगा है मैंने कोई हिसाब। (आशिमा) ©Dr Archana

#कविता #mountainsnearme  माना कि तुम मुझसे महोब्बत बेशुमार करते हो,
पर तुम्हारी इस महोब्बत में मेरा भी बहुत कुछ शामिल हैं।
संजोती हूँ तुम्हारे प्रेम को तिनका-तिनका दिन-रात।
तुम्हारी महोब्बत को सहेजना यह भी कोई कम नहीं ।
माँगते हो जब तुम मुझसे अपनी महोब्बत का हिसाब, 
तब तुम भूल जाते हो कि कभी-कभी न जताना,
भी इश्क की पराकाष्ठा है। 
अपने उन लम्हों को सहजना और
 महफ़ूज रखना भी तो प्रेम का हिस्सा है।
हो सकता है कि तुम हिसाब के पक्के और मैं थोड़ी कच्ची। 
मैं तो जानती हूँ बस इतना कि
मेरी धङकनों और साँसों में अब तुम बसते हो।
मेरी हर बात की बजह अब तुम होते हो।
मेरे मौन और मेरे शब्दों में भी तुम ही होते हो।
क्या कभी माँगा है मैंने कोई हिसाब। 
                             (आशिमा)

©Dr Archana
#कविता #sunrisesunset  रास आने लगी है मुझकौ अब तेरी बेरुखी 
सुकून देती है दिल को अब तेरी तल्ख़ियां। 
अब लेकर नही फिरती, 
अपने दिल में तेरे प्यार का बोझ।
तोङ रही हूँ तिनका- तिनका,
तेरी यादों के गुलिस्ते को।
खोल रही हूँ वो सारे 
गिरह आहिस्ता-आहिस्ता,
जो बाँधे थे कभी मन्नतों में
मंदिर की दीवारों पर।
फाङ दिए वो सारे पन्ने, जो कभी तेरे प्यार में
डूबकर लिखा करती थी।
धूमिल पङ रहे हैं, मेरी स्मृतियों में,
वो बाग,नदी का किनारा,वो हर गली वो सङक,
जो हुआ करते थे कभी हमारे प्यार के साक्षी।





फ

©Dr Archana
#कविता #myhappiness  लोग कह रहें कि शहर की हवाओं 
में ज़हर घुल रहा है।
मुझे इसका इल्म नहीं।
मैं तो महसूस कर रही हूँ कि
मेरी धड़कनों में,मेरी रगों में
मेरी सांसों में तो तुम घुल रहे हो।
महसूस कर रही हं,
धुंधला रहा है मेरा वजूद धीरे-धीरे।
महबूब की नज़र-ए-इनायत का असर
कुछ इस तरह हुआ  कि मैं अब मैं नहीं
तुम हो गई हूं।
कुछ मुख्तलिफ सी हो गई हूं मैं
शहर में ये सरगोशियां अब आम हो गई हैं।

©Dr Archana

#myhappiness

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#shaayri_by_Ashima #lookingforhope  अपने मन के कैनवास पर, कल्पनाओं के रंगों से 
तुम्हारी न जाने कितनी, आकृतियों को गढ़ा है मैंने। 
अपने ख्वाबों की ईषिका से, जब-जब तुमको गढ़ती हूँ,
तब-तब तुम्हारा अक्श सजीव हो उठता है।
और तुम कैनवास से निकल कर, 
मेरी दुनिया में दाखिल हो जाते हो।
तब मैं और गहरी शिद्दत से तुममें रंग भरती हूँ। 
और बङे जतन से तुमको तराशती हूँ। 
तब तुम्हारी मौजूदगी मूर्त रूप धारण कर लेती है
और मैं तुम्हारी गहरी,रहस्यमयी ,काली आँखों 
में डूबती चली जाती हूँ,
और चाहती हूँ सदा इनमें डूबे रहना। 
तब महसूस करती हूँ कि न जाने कितनी 
स्याहा रातें और न जाने कितने युगों-युगों तक
मैं यूँ ही तुम्हें कल्पनाओं में गढ़ती रही हूँ
और गढ़ती रहूँगी।
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