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White अन्तर्मन में जो बहती है धारा वो ही दिखलाती सत्य हमारा भाव - प्रवाह में चिंतन चित्रण करते हैं अंकित सृजन हमारा आत्म भाव में दृश्य का दर्शन अंश अंश अभिव्यक्त है सारा डोर पकड़ अवचेतन मन की प्रति पल चेतन मन है संवारा कदम कदम प्रतिरोध स्वयं से स्वयं से जीता.. स्वयं से हारा ©सुरेश सारस्वत
सुरेश सारस्वत
16 Love
White अब दर्द को पिरोना शुरू कर दिया है कुछ अश्क मोती कुछ रुद्राक्ष साथ हैं हमने दर्द को पीना शुरू कर दिया है कुछ प्याले भरे हैं,कुछ खाली साथ हैं महल खण्डहर हमें अच्छे नहीं लगते अंतस में झोंपड़ियों की भूख साथ है मंज़िलों की हद दूर नहीं रह पाएगी नंगे पैरो में ज़ज़्बो की ताकत साथ है सहरा ही सहरा हो चाहे राहें नज़र कड़ी धूप में चलने की हिम्मत साथ है ©सुरेश सारस्वत
15 Love
Unsplash कतरा-कतरा हूँ मैं बिखरा फिर भी थोड़ा-थोड़ा निखरा पड़ा हुआ हूँ जैसे मैं निर्गत कतरन का निरर्थक टुकड़ा चहल-पहल सब दूर खड़ी भूल गया अन्तर्मन खिलना अगर-मगर से हूँ छला मैं भूला-भूला खुद से कहना ज़िंदगी क्या खूब फ़लसफ़ा टूटना, बिखरना फिर जुड़ना पहरों पहर चलना पड़े बेशक भटक कर सही वक्त रुकना ©सुरेश सारस्वत
13 Love
Unsplash रिश्ते का अर्थ ही अगर ना समझे तो फिर क्या बुनना , क्या चुनना जीवन बेशकीमती कालीन सा है हर कदम सही चुनना साफ चलना मन अगर चलने को ही नहीं दे साथ कभी भी दौड़ने की राह मत चुनना राह मुश्किल है मगर मुस्कान भरी मन कहे ऐसा तो संग जरूर चलना ©सुरेश सारस्वत
White मंथन .... मंथन ... मंथन .... कब तक करे कोई मंथन .... चिंतन... चिंतन... चिंतन.... कब तक करे मनन चिंतन ... सत्य प्रदीप्त रहे .... आलोकित .मन अंतर .... सतत गतिमय जीवन में नव-नव अभिनव ...... नित्य परिवर्तन.... अहं मुक्त हों, छंद मुक्त हों ... महके कविता में चन्दन प्रेम प्रणय के.... भाव सृजन में आत्मीय भाव का वंदन कालजयी हो सृजन निरंतर प्रहरी काल बन मुक्त समस्त बंधन स्थित मन में सृजन सृजन सृजन रहे अभ्यंतर ..... ©सुरेश सारस्वत
12 Love
White किसी दिन आवारा बादल सा घुमड़ता घुमड़ता बरस जाऊंगा भीगो दूंगा बाहर से अंदर तक ढूंदते रहना मेरे लफ्जों की गीली गीली खुशबू में.......... अपना ही महकता पिघलता वज़ूद सौंधी सौंधी महक होश में नहीं रहने देगी कोई मद्धम सा सुर खुल जाएगा मन अनजान हरकतों संग गायेगा कोई करीब आकर बुलाएगा एक सुर तेरा एक सुर मेरा ..... साथ साथ समवेत स्वर में आलाप लगाएगा कोई बादल फिर बरसने आएगा माज़ी के संग वक़्त ठहर जाएगा मन भीगा भीगा खुल कर ..... बस घुलता जाएगा.....घुलता जाएगा घुलते घुलते एक बूंद हो जाएगा एक बूंद में एक ही अक्स कोई नहीं पहचान पाएगा मोती की चमक में कैद हो जाएगी एकात्म मुस्कान हमारी दूर आसमान से कोई बादल मुस्कुराएगा ©सुरेश सारस्वत
14 Love
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