सुरेश सारस्वत

सुरेश सारस्वत

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Unsplash कतरा-कतरा हूँ मैं बिखरा फिर भी थोड़ा-थोड़ा निखरा पड़ा हुआ हूँ जैसे मैं निर्गत कतरन का निरर्थक टुकड़ा चहल-पहल सब दूर खड़ी भूल गया अन्तर्मन खिलना अगर-मगर से हूँ छला मैं भूला-भूला खुद से कहना ज़िंदगी क्या खूब फ़लसफ़ा टूटना, बिखरना फिर जुड़ना पहरों पहर चलना पड़े बेशक भटक कर सही वक्त रुकना ©सुरेश सारस्वत

#Book  Unsplash कतरा-कतरा हूँ  मैं बिखरा 
फिर भी थोड़ा-थोड़ा निखरा 

पड़ा हुआ हूँ जैसे मैं निर्गत
कतरन का निरर्थक टुकड़ा 

चहल-पहल सब दूर खड़ी 
भूल गया अन्तर्मन खिलना 

अगर-मगर से हूँ छला मैं 
भूला-भूला खुद से कहना

ज़िंदगी क्या खूब फ़लसफ़ा 
टूटना, बिखरना फिर जुड़ना 

पहरों पहर चलना पड़े बेशक
भटक कर सही वक्त रुकना

©सुरेश सारस्वत

#Book shayari in hindi

13 Love

Unsplash रिश्ते का अर्थ ही अगर ना समझे तो फिर क्या बुनना , क्या चुनना जीवन बेशकीमती कालीन सा है हर कदम सही चुनना साफ चलना मन अगर चलने को ही नहीं दे साथ कभी भी दौड़ने की राह मत चुनना राह मुश्किल है मगर मुस्कान भरी मन कहे ऐसा तो संग जरूर चलना ©सुरेश सारस्वत

#leafbook  Unsplash रिश्ते का अर्थ ही अगर ना समझे 
तो फिर क्या बुनना , क्या चुनना 

जीवन बेशकीमती कालीन सा है 
हर कदम सही चुनना साफ चलना 

मन अगर चलने को ही नहीं दे साथ 
कभी भी दौड़ने की राह मत चुनना 

राह मुश्किल है मगर मुस्कान भरी  
मन कहे ऐसा तो संग जरूर चलना

©सुरेश सारस्वत

#leafbook

16 Love

White मंथन .... मंथन ... मंथन .... कब तक करे कोई मंथन .... चिंतन... चिंतन... चिंतन.... कब तक करे मनन चिंतन ... सत्य प्रदीप्त रहे .... आलोकित .मन अंतर .... सतत गतिमय जीवन में नव-नव अभिनव ...... नित्य परिवर्तन.... अहं मुक्त हों, छंद मुक्त हों ... महके कविता में चन्दन प्रेम प्रणय के.... भाव सृजन में आत्मीय भाव का वंदन कालजयी हो सृजन निरंतर प्रहरी काल बन मुक्त समस्त बंधन स्थित मन में सृजन सृजन सृजन रहे अभ्यंतर ..... ©सुरेश सारस्वत

 White मंथन ....
मंथन ...
मंथन ....
कब तक करे कोई मंथन ....
चिंतन...
चिंतन...
चिंतन....
कब तक करे मनन चिंतन ...
सत्य प्रदीप्त रहे ....
आलोकित .मन अंतर ....
सतत गतिमय जीवन में  
नव-नव अभिनव ...... 
नित्य परिवर्तन....
अहं मुक्त हों,
छंद मुक्त हों ...
महके कविता में चन्दन 
प्रेम प्रणय के....
भाव सृजन में 
आत्मीय भाव का  वंदन 
कालजयी हो सृजन  निरंतर
प्रहरी काल बन 
मुक्त समस्त  बंधन 
स्थित मन में सृजन  सृजन
 सृजन रहे अभ्यंतर  .....

©सुरेश सारस्वत

White मंथन .... मंथन ... मंथन .... कब तक करे कोई मंथन .... चिंतन... चिंतन... चिंतन.... कब तक करे मनन चिंतन ... सत्य प्रदीप्त रहे .... आलोकित .मन अंतर .... सतत गतिमय जीवन में नव-नव अभिनव ...... नित्य परिवर्तन.... अहं मुक्त हों, छंद मुक्त हों ... महके कविता में चन्दन प्रेम प्रणय के.... भाव सृजन में आत्मीय भाव का वंदन कालजयी हो सृजन निरंतर प्रहरी काल बन मुक्त समस्त बंधन स्थित मन में सृजन सृजन सृजन रहे अभ्यंतर ..... ©सुरेश सारस्वत

12 Love

White किसी दिन आवारा बादल सा घुमड़ता घुमड़ता बरस जाऊंगा भीगो दूंगा बाहर से अंदर तक ढूंदते रहना मेरे लफ्जों की गीली गीली खुशबू में.......... अपना ही महकता पिघलता वज़ूद सौंधी सौंधी महक होश में नहीं रहने देगी कोई मद्धम सा सुर खुल जाएगा मन अनजान हरकतों संग गायेगा कोई करीब आकर बुलाएगा एक सुर तेरा एक सुर मेरा ..... साथ साथ समवेत स्वर में आलाप लगाएगा कोई बादल फिर बरसने आएगा माज़ी के संग वक़्त ठहर जाएगा मन भीगा भीगा खुल कर ..... बस घुलता जाएगा.....घुलता जाएगा घुलते घुलते एक बूंद हो जाएगा एक बूंद में एक ही अक्स कोई नहीं पहचान पाएगा मोती की चमक में कैद हो जाएगी एकात्म मुस्कान हमारी दूर आसमान से कोई बादल मुस्कुराएगा ©सुरेश सारस्वत

 White किसी दिन आवारा बादल सा 
घुमड़ता घुमड़ता बरस जाऊंगा 
भीगो दूंगा बाहर से अंदर  तक 
ढूंदते रहना मेरे लफ्जों की गीली गीली खुशबू में..........
अपना ही महकता पिघलता वज़ूद 
सौंधी सौंधी महक होश में नहीं रहने देगी 
कोई मद्धम सा सुर खुल जाएगा 
मन अनजान हरकतों संग गायेगा
कोई करीब आकर बुलाएगा 
एक सुर तेरा एक सुर मेरा ..... साथ साथ 
समवेत स्वर में आलाप लगाएगा 
कोई बादल फिर बरसने आएगा 
माज़ी के संग वक़्त ठहर जाएगा 
मन भीगा भीगा खुल कर .....
बस घुलता जाएगा.....घुलता जाएगा 
घुलते घुलते एक बूंद हो जाएगा 
एक बूंद में एक ही अक्स 
कोई नहीं पहचान पाएगा 
मोती की चमक में कैद हो जाएगी 
एकात्म मुस्कान हमारी 
दूर आसमान से कोई बादल मुस्कुराएगा

©सुरेश सारस्वत

White किसी दिन आवारा बादल सा घुमड़ता घुमड़ता बरस जाऊंगा भीगो दूंगा बाहर से अंदर तक ढूंदते रहना मेरे लफ्जों की गीली गीली खुशबू में.......... अपना ही महकता पिघलता वज़ूद सौंधी सौंधी महक होश में नहीं रहने देगी कोई मद्धम सा सुर खुल जाएगा मन अनजान हरकतों संग गायेगा कोई करीब आकर बुलाएगा एक सुर तेरा एक सुर मेरा ..... साथ साथ समवेत स्वर में आलाप लगाएगा कोई बादल फिर बरसने आएगा माज़ी के संग वक़्त ठहर जाएगा मन भीगा भीगा खुल कर ..... बस घुलता जाएगा.....घुलता जाएगा घुलते घुलते एक बूंद हो जाएगा एक बूंद में एक ही अक्स कोई नहीं पहचान पाएगा मोती की चमक में कैद हो जाएगी एकात्म मुस्कान हमारी दूर आसमान से कोई बादल मुस्कुराएगा ©सुरेश सारस्वत

14 Love

नवरात्रि पर्व पर सभी मित्रों को शुभ कामनाएँ "माँ" के प्रति अपने भावों के साथ **************************************************************************** माँ सुनो ....माँ सुनो ........द्वार तेरे मैं खड़ा प्रार्थना आराधना के लिए दीप तेरे मैं खड़ा । तू ही दुर्गा,तू ही लक्ष्मी तू ही माँ सरस्वती दरस अंतर देती तू जब कृपा बन बरसती देख आँखें माँ मेरी तेरे दरस को तरसती सुर स्वरों में लिए तुझे माँ द्वार तेरे मैं खड़ा नाम तेरे हैं सहस्त्र, पर मैं तो जानूँ एक नाम होता है सब दरस जब मैं पुकारूँ माँ ही नाम प्रेम, करुणा,स्नेह ,ममता तुझसे है तेरा नाम सिर पे रख दे हाथ माँ कब से झुकाये मैं खड़ा अद्भुत अलौकिक रूप तेरे देखता अंतर में जब नयन भरे भरे नेह जल बहती है तू माँ गंगा बन मूढ़ हूँ ,अज्ञानी मैं,आलोक उज्जवल मन में भर सब तिमिर अंतर के काट माँ द्वार तेरे मैं खड़ा ©सुरेश सारस्वत

#भक्ति #Navraatra  नवरात्रि पर्व पर सभी मित्रों को शुभ कामनाएँ "माँ" के प्रति अपने  भावों के साथ 
****************************************************************************
माँ सुनो ....माँ सुनो ........द्वार तेरे मैं खड़ा 
प्रार्थना आराधना के लिए दीप तेरे मैं खड़ा ।

तू ही दुर्गा,तू ही लक्ष्मी तू ही माँ सरस्वती 
दरस अंतर देती तू जब कृपा बन बरसती 
देख  आँखें माँ मेरी  तेरे दरस को तरसती 
सुर स्वरों में लिए तुझे माँ द्वार तेरे मैं खड़ा 

नाम तेरे हैं सहस्त्र, पर मैं तो जानूँ एक नाम 
होता है सब दरस जब मैं पुकारूँ माँ ही नाम 
प्रेम, करुणा,स्नेह ,ममता तुझसे है तेरा नाम 
सिर पे रख दे हाथ माँ कब से झुकाये मैं खड़ा 

अद्भुत अलौकिक रूप तेरे देखता अंतर में जब 
नयन भरे भरे नेह जल बहती है तू माँ गंगा बन 
मूढ़ हूँ ,अज्ञानी मैं,आलोक उज्जवल मन में भर 
सब तिमिर अंतर के काट  माँ द्वार तेरे मैं खड़ा

©सुरेश सारस्वत

#Navraatra

9 Love

White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ सच है यही रोशनी जब भी उतरी बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ ©सुरेश सारस्वत

#शायरी  White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ 
खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ

वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना 
खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ

सच है यही रोशनी जब भी उतरी
बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ 

नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं 
सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ

पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें 
कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ

©सुरेश सारस्वत

White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ सच है यही रोशनी जब भी उतरी बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ ©सुरेश सारस्वत

11 Love

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