अजीब शख्स है, हर बात मान जाता है |
क्या है सच, क्या है झूठ, ये भी जान जाता है ||
क्यों गुनाहों से मियां, अब भी तोबा करते नहीं |
खुदा के घर पे, सुना है, सबका खाता है ||
ये इरादे, ये हुनर, अपने खानदानी हैं |
मेरी गज़लों को सुना, वो भी गुनगुनाता है ||
रहमते दिल है तो क्या, सर को झुकाना होगा |
करके नेकी तू, एहसान क्यों जताता है ||
यू तो हम दर्द ज़माने में, बहुत मिलते हैं |
वक्त पढ़ने पे देखें, काम कौन आता है ||
अर्श हर बात का मतलब हो, जरूरी तो नहीं |
अनकही बात का भी, दिल से गहरा नाता है ||
लेखक:-मनीष श्रीवास्तव (अर्श)
गैरतगंज जिला रायसेन
मो.9009247220
©Manish Shrivastava
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