अजीब शख्स है, हर बात मान जाता है | क्या है सच, क्य | हिंदी कविता

"अजीब शख्स है, हर बात मान जाता है | क्या है सच, क्या है झूठ, ये भी जान जाता है || क्यों गुनाहों से मियां, अब भी तोबा करते नहीं | खुदा के घर पे, सुना है, सबका खाता है || ये इरादे, ये हुनर, अपने खानदानी हैं | मेरी गज़लों को सुना, वो भी गुनगुनाता है || रहमते दिल है तो क्या, सर को झुकाना होगा | करके नेकी तू, एहसान क्यों जताता है || यू तो हम दर्द ज़माने में, बहुत मिलते हैं | वक्त पढ़ने पे देखें, काम कौन आता है || अर्श हर बात का मतलब हो, जरूरी तो नहीं | अनकही बात का भी, दिल से गहरा नाता है || लेखक:-मनीष श्रीवास्तव (अर्श) गैरतगंज जिला रायसेन मो.9009247220 ©Manish Shrivastava"

 अजीब शख्स है, हर बात मान जाता है |
क्या है सच, क्या है झूठ, ये भी जान जाता है ||

क्यों गुनाहों से मियां, अब भी तोबा करते नहीं |
खुदा के घर पे, सुना है, सबका खाता है  ||

ये इरादे, ये हुनर, अपने खानदानी हैं |
मेरी गज़लों को सुना, वो भी गुनगुनाता है ||

रहमते दिल है तो क्या, सर को झुकाना होगा |
करके नेकी तू, एहसान क्यों जताता है ||

यू तो हम दर्द ज़माने में, बहुत मिलते हैं |
वक्त पढ़ने पे देखें, काम कौन आता है ||

अर्श हर बात का मतलब हो, जरूरी तो नहीं |
अनकही बात का भी, दिल से गहरा नाता है ||

लेखक:-मनीष श्रीवास्तव (अर्श) 
गैरतगंज जिला रायसेन
मो.9009247220

©Manish Shrivastava

अजीब शख्स है, हर बात मान जाता है | क्या है सच, क्या है झूठ, ये भी जान जाता है || क्यों गुनाहों से मियां, अब भी तोबा करते नहीं | खुदा के घर पे, सुना है, सबका खाता है || ये इरादे, ये हुनर, अपने खानदानी हैं | मेरी गज़लों को सुना, वो भी गुनगुनाता है || रहमते दिल है तो क्या, सर को झुकाना होगा | करके नेकी तू, एहसान क्यों जताता है || यू तो हम दर्द ज़माने में, बहुत मिलते हैं | वक्त पढ़ने पे देखें, काम कौन आता है || अर्श हर बात का मतलब हो, जरूरी तो नहीं | अनकही बात का भी, दिल से गहरा नाता है || लेखक:-मनीष श्रीवास्तव (अर्श) गैरतगंज जिला रायसेन मो.9009247220 ©Manish Shrivastava

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