White मुझे बचपन का,वही गांव नज़र आता है |
बूंद बारिश, पेड़ की छांव, नज़र आता है ||
आके मुंडेर पे,कागा भी शोर करता था |
गंध गोबर की,छबे पांव, नज़र आता है ||
भरी बारिश में, घर ताल सा बन जाता था |
फिर वो मेंढक की,टर्र टावं नज़र आता है ||
एक राजा-रानी थी,बस यही एक ये कहानी थी |
फिर उसी पल में, डूब जाओ, नज़र आता है ||
चार लकड़ी से रोज़, घर नया बनाते थे |
आसयां फिर वही बनाओ,नज़र आता है ||
रोज़ का लड़ झगड़,भुकर जाना |
तुम मुझे फिर ज़रा मनाओ नज़र आता है ||
लेखक:-मनीष श्रीवास्तव (अर्श)
गैरतगंज जिला रायसेन म.प्र
मो.9009247220
©Manish Shrivastava
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