**औरत को भी मिलनी चाहिए छुट्टी**
चौके में हर दिन खटती है,
खुद को हर पल बांध रखती है।
सपने उसके दिल में गहरे,
पर फुर्सत कहां, खुद से कहे रे।
सुबह से लेकर रात तलक,
संसार सजाती, काम की ललक।
सबके चेहरों पर हंसी लाए,
पर अपनी थकान किसे दिखाए?
क्या वह मशीन है, जो थमती नहीं?
क्या उसकी जिंदगी उसकी लगती नहीं?
हर दिल का बोझ उठाने वाली,
खुद के लिए भी एक दिन तो खाली!
आज उसे दो यह छुट्टी प्यारी,
चौका-बर्तन की मत दो जिम्मेदारी।
जी ले वह भी कुछ पल सुकून के,
खुद के सपने, अपने जूनून के।
मत कहो यह उसका फर्ज है,
उसके जीवन का यही मर्ज़ है।
औरत भी है इंसान प्यारे,
उसे भी चाहिए पल सहारे।
तो एक दिन के लिए ठहर जाओ,
उसके हिस्से का काम संभाल जाओ।
खुश होगी वह, खिल जाएगी,
थोड़ी सी आज़ादी पा जाएगी।
©Writer Mamta Ambedkar
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