NojotoRamleela
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तुम्हें राम कहीं नहीं मिलेंगे। क्योंकि राम मिलने की चीज नहीं हैं। राम बनने की चीज हैं। ©शुभम जैन सिद्ध

#ಆಲೋಚನೆಗಳು #NojotoRamleela  तुम्हें राम कहीं नहीं मिलेंगे।
क्योंकि राम मिलने की चीज नहीं हैं। 
राम बनने की चीज हैं।

©शुभम जैन सिद्ध

सूरज सा तेज है जिनका मस्तक पर मुकुट बिराजे, चंद्र सी शीतलता मुख पर अधरो पर मीठी मुस्कान, अनुपम हरित तेज है जिनका हाथो में रखते धनुष बाण, प्राण भले ही जाए इनके वचन पर सदा अडिग है रहते, सत्य और त्याग की है मूरत नाम है इनका जय श्री राम। राम लक्ष्मण का प्रेम अपार सीता मैया सदा देती साथ, सीना चीर हृदय में दिखाया दर्शन प्रभु का सबको कराया, जिनकी गाथा गाते नर नार जय श्री राम जय जय राम। 🌸🙏जय श्री राम 🙏🌸 ©Heer

#जय_श्री_राम #NojotoRamleela  सूरज सा तेज है जिनका मस्तक पर मुकुट बिराजे,
चंद्र सी शीतलता मुख पर अधरो पर मीठी मुस्कान,
 अनुपम हरित तेज है जिनका हाथो में रखते धनुष बाण, 
प्राण भले ही जाए इनके वचन पर सदा अडिग है रहते,
सत्य और त्याग की है मूरत नाम है इनका जय श्री राम। 
राम लक्ष्मण का प्रेम अपार सीता मैया सदा देती साथ,
सीना चीर हृदय में दिखाया दर्शन प्रभु का सबको कराया, 
जिनकी गाथा गाते नर नार जय श्री राम जय जय राम।

🌸🙏जय श्री राम 🙏🌸

©Heer

स्मृतियाँ सहजता से लक्ष्य की ओर लेकर जाती हैं।जिसमें प्रेम है ! समर्पण है ! मनुष्यता से युक्त भाव है ! ज्ञान की पराकाष्ठा है ! विरह-वेदना का प्रवाह है ! हर क्षण एक उत्कंठा है ! हृदय में प्रवाहित ये अवस्था पथिक की श्रेष्ठ स्थिति है । प्रेम आध्यात्मिक ही होता है। जो व्यावसायिक है वो प्रेम नहीं है। हमारे अनेक सांस्कृतिक ग्रन्थों में प्रेम के अनेक उदाहरण मिलते हैं। क्या जब ईश्वर और महापुरुषों को प्रेम हो सकता है । तो साधारण मनुष्य को प्रेम क्यों नहीं हो सकता। प्रेम से डरना कैसा हमेशा प्रेम स्वच्छंद और निःस्वार्थ एवं आध्यात्मिक होता है। प्रेम चाहे शिव-पार्वती जी का हो या राधा-कृष्ण जी का हो राम सीता जी का हो या किसी पुरुष इस्त्री का इसी लिए जब ऊपर दरसाए गए महापुरुष जिन्हे ईश्वर कहा जाता है तो इनके मंचन पर प्रेम लीला के बाद ही विवाह दिखाया जाता है । इतनी बात हमारे समाजों को समझ में नहीं आई। न ही हमारे कथा वाचकों को जिन्होंने प्रेम को ही गलत कह दिया । जब की ज्ञानियों को समाजों में प्रेम विवाह को ही श्रेष्ठ और उत्तम कहना चाहिए । ©sanjay Kumar Mishra

#विचार #NojotoRamleela  स्मृतियाँ सहजता से लक्ष्य की ओर लेकर जाती हैं।जिसमें प्रेम है ! समर्पण है ! मनुष्यता से युक्त भाव है ! ज्ञान की पराकाष्ठा है ! विरह-वेदना का प्रवाह है ! हर क्षण एक उत्कंठा है ! हृदय में प्रवाहित ये अवस्था पथिक की श्रेष्ठ स्थिति है । प्रेम आध्यात्मिक ही होता है। जो व्यावसायिक है वो प्रेम नहीं है। हमारे अनेक सांस्कृतिक ग्रन्थों में प्रेम के अनेक उदाहरण मिलते हैं। क्या जब ईश्वर और महापुरुषों को प्रेम हो सकता है । तो साधारण मनुष्य को प्रेम क्यों नहीं हो सकता। प्रेम से डरना कैसा हमेशा प्रेम स्वच्छंद और निःस्वार्थ एवं आध्यात्मिक होता है। प्रेम चाहे शिव-पार्वती जी का हो या राधा-कृष्ण जी का हो  राम सीता जी का हो या किसी पुरुष इस्त्री का इसी लिए जब ऊपर  दरसाए गए महापुरुष जिन्हे ईश्वर कहा जाता है तो इनके मंचन पर प्रेम लीला के बाद ही विवाह दिखाया जाता है । इतनी बात हमारे समाजों को समझ में नहीं आई। न ही हमारे कथा वाचकों को जिन्होंने प्रेम को ही गलत कह दिया । जब की ज्ञानियों को समाजों में प्रेम विवाह को ही श्रेष्ठ और उत्तम कहना चाहिए ।

©sanjay Kumar Mishra
#भक्ति #राम  असुर निकन्दन रघुपति नंद।
प्रभु जी काटो भुव भय बंध।।
शरण  तिहारी  आये  आज।
कर  दो  भगवन  पूरे  काज।।

©Godambari Negi

#राम

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रघुवर जय जय जय श्री राम हर नैया को पार लगाए राम तुम्हारा नाम रघुवर जय जय जय श्री राम।। जगत पिता तुम सबके स्वामी हम बालक मूरख खलकामी सबके सब गुण दोष तू जाने तुम जगपालक अंतर्यामी तेरा तुझको सौंप दूं अपने भले बुरे सब काम। रघुवर जय जय जय श्री राम।। रघुकुल भूषण दशरथ नंदन कौशल्या सुत हे जग वंदन आस निराश में प्राण फंसे हैं दूर करो दु:ख हे दुख भंजन। भटक रहा हूँ भव सागर में दो चरणों में धाम। रघुवर जय जय जय श्री राम।। करुणा सागर पालनहारे सब दुखिया के तुम ही सहारे जिसका कोई नहीं जगत में राम तुम्हीं उसके रखवारे। तुम्हें जपे जो सांझ सकारे बनते बिगड़े काम। रघुवर जय जय जय श्री राम।। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki

#जयश्रीराम #कविता  रघुवर जय जय जय श्री राम
हर नैया को पार लगाए राम तुम्हारा नाम
रघुवर जय जय जय श्री राम।।

जगत पिता तुम सबके स्वामी
हम  बालक मूरख  खलकामी
सबके सब गुण दोष तू जाने
तुम जगपालक अंतर्यामी
तेरा तुझको सौंप दूं अपने भले बुरे सब काम।
रघुवर जय जय जय श्री राम।।

रघुकुल भूषण दशरथ नंदन
कौशल्या सुत हे जग वंदन
आस निराश में प्राण फंसे हैं
दूर करो दु:ख हे दुख भंजन।
भटक रहा हूँ भव सागर में दो चरणों में धाम।
रघुवर जय जय जय श्री राम।।

करुणा सागर       पालनहारे
सब दुखिया के तुम ही सहारे
जिसका कोई नहीं जगत में
राम  तुम्हीं  उसके  रखवारे।
तुम्हें जपे जो सांझ सकारे बनते बिगड़े काम।
रघुवर जय जय जय श्री राम।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki
#NojotoRamleela  चल रहा हूँ धूप में तो श्री राम तेरी छाया है
शरण है तेरी सच्ची बाकी तो सब मोह माया है।

©Akshay Kumar
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