रिपुदमन झा 'पिनाकी'

रिपुदमन झा 'पिनाकी'

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White ज़िन्दगी पूछती है ज़िन्दगी जियोगे कब। स्वाद इस ज़िन्दगी की मौज का चखोगे कब। ऊम्र अपनी बिता रहे हो फंँस के उलझन में - आसमाँ पर उड़ानें सपनों की भरोगे कब। आप खुद से बताओ यार अब मिलोगे कब। क़ैद कर रखा है खुद को जो तुम खुलोगे कब। पालते हो क्यूँ दिल में ग़म उदास रहते हो- रंग जीवन में अपने खुशियों की भरोगे कब। जी रहे हो घुटन में खुल के साँस लोगे कब। दुःख के दुश्मन को हौसलों से मात दोगे कब। कुछ नहीं मिलता है औरों के लिए जीने से- हो चुके सब के बहुत अपने बता होगे कब। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#विचार #कब  White ज़िन्दगी  पूछती  है  ज़िन्दगी  जियोगे  कब।
स्वाद इस ज़िन्दगी की मौज का चखोगे कब।
ऊम्र अपनी बिता रहे हो फंँस के उलझन में -
आसमाँ  पर  उड़ानें सपनों की  भरोगे  कब।

आप खुद  से बताओ  यार अब  मिलोगे कब।
क़ैद कर रखा है खुद को जो तुम खुलोगे कब।
पालते हो  क्यूँ  दिल में  ग़म  उदास  रहते  हो-
रंग  जीवन में अपने खुशियों की  भरोगे  कब।

जी रहे हो घुटन में खुल के साँस लोगे कब।
दुःख के दुश्मन को हौसलों से मात दोगे कब।
कुछ  नहीं  मिलता  है औरों  के लिए जीने से-
हो चुके  सब  के  बहुत अपने बता  होगे कब।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#कब

21 Love

White थम गया ज़िन्दगी का एक सिलसिला शायद। कर लिया खुद का ग़लत एक फैसला शायद। मिल नहीं पा रही मंजिल तलाश थी जिसकी- चुन लिया हमने ही ग़लत एक रास्ता शायद। वक्त करने लगा अभी है कुछ दग़ा शायद। या कि होने लगा है कम ये हौसला शायद। मात खाने लगा हूँ मैं तो हर एक बाज़ी में- दाँव पड़ने लगा है सब अभी उल्टा शायद। जो कमाया था नाम हो रहा फ़ना शायद। हो गया था मैं आप ही से बदगुमा शायद। मिट रहा है वजूद धीरे-धीरे अब तो मेरा- लोग कहते है जोश अब नहीं रहा शायद। रिपुदमन झा 'पिनाकी ' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#विचार #शायद  White थम गया ज़िन्दगी का एक सिलसिला शायद।
कर लिया खुद का ग़लत एक फैसला शायद।
मिल नहीं पा रही मंजिल तलाश थी जिसकी-
चुन लिया हमने  ही  ग़लत एक रास्ता शायद।

वक्त करने लगा अभी है कुछ दग़ा शायद।
या कि होने लगा है कम ये हौसला शायद।
मात खाने लगा हूँ मैं तो हर एक बाज़ी में-
दाँव पड़ने लगा है सब अभी उल्टा शायद।

जो कमाया था नाम हो रहा फ़ना शायद।
हो गया था मैं आप ही से बदगुमा शायद।
मिट रहा है वजूद धीरे-धीरे अब तो मेरा-
लोग कहते है जोश अब नहीं रहा शायद।

रिपुदमन झा 'पिनाकी '
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#शायद

11 Love

White हम भी चमकेंगे आसमांँ में सितारों की तरह, अपनी उल्फत के भी किस्से जहाँ सुनाएगा। रिपुदमन झा "पिनाकी" स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#चमकेंगे #शायरी  White हम भी चमकेंगे आसमांँ में सितारों की तरह,
अपनी उल्फत के भी किस्से जहाँ सुनाएगा।

रिपुदमन झा "पिनाकी"
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White धीरज मत खो, रख हिम्मत, तू कदम बढ़ा मंज़िल की ओर। कब तक रात रहेगी काली, आएगी फिर उजली भोर।। देर भले हो सुख आने में, लेकिन एक दिन आएगी। फूल खिलेंगे खुशहाली के, हर सूरत मुस्काएगी। बेरंगी जीवन में सबके, रंग भरेंगे सतरंगी। अपने भी जो साथ नहीं वो, चलेंगे कल बनके संगी।। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#मोटिवेशनल #हिम्मत_रख  White धीरज मत खो, रख हिम्मत, तू कदम बढ़ा मंज़िल की ओर।
कब तक रात रहेगी काली, आएगी फिर उजली भोर।।
देर भले हो सुख आने में, लेकिन एक दिन आएगी।
फूल खिलेंगे खुशहाली के, हर सूरत मुस्काएगी।
बेरंगी जीवन में सबके, रंग भरेंगे सतरंगी।
अपने भी जो साथ नहीं वो, चलेंगे कल बनके संगी।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

New Year 2025 गया पुराना वर्ष लिए नव हर्ष आज नववर्ष आया। कुसुमित पुलकित हर मानव है, हर हृदय आज है हर्षाया।। फिर आया है आशाओं की नव किरण लिए नववर्ष आज। जन जीवन सुख आरोग्य भरा होगा जग का उत्कर्ष राज।। नववर्ष आगमन से जन में, आशा की नई किरण जागी। बीते वर्षों की दुखद घड़ी, की यादें मन से है त्यागी।। साकार नयन से हर मानव, कर रहा अभिनंदन नववर्ष का। और खिन्न हृदय से लोग सभी, छोड़े हैं आंचल गत वर्ष का।। कर रहे कामना यही सभी, यह वर्ष तो अच्छा बीतेगा। अपने शुभ आशीर्वादों से, जीवन खुशियों से भर देगा।। दुःख, रोग, क्लेश, संताप मिटे यही कामना करते मंगलमय। अब कोई मुसीबत ना आए, जीवन बीते सबका सुखमय।। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#कविता #Newyear2025  New Year 2025 गया पुराना वर्ष लिए नव हर्ष आज नववर्ष आया।
कुसुमित पुलकित हर मानव है, हर हृदय आज है हर्षाया।।

फिर आया है आशाओं की नव किरण लिए नववर्ष आज।
जन जीवन सुख आरोग्य भरा होगा जग का उत्कर्ष राज।।

नववर्ष आगमन से जन में, आशा की नई किरण जागी।
बीते वर्षों की दुखद घड़ी, की यादें मन से है त्यागी।।

साकार नयन से हर मानव, कर रहा  अभिनंदन नववर्ष का।
और खिन्न हृदय से लोग सभी, छोड़े हैं आंचल गत वर्ष का।।

कर रहे कामना यही सभी, यह वर्ष तो अच्छा बीतेगा।
अपने शुभ आशीर्वादों से, जीवन खुशियों से भर देगा।।

दुःख, रोग, क्लेश, संताप मिटे यही कामना करते मंगलमय।
अब कोई मुसीबत ना आए, जीवन बीते सबका सुखमय।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#Newyear2025

14 Love

White आजकल खुद को बहुत जकड़ा हुआ पाता हूँ मैं। बंध गया हूँ दायरे में खुल नहीं पाता हूँ मैं। हो नहीं पाता हूँ बाहर उलझनों की क़ैद से- ज़िन्दगी के साथ खुल कर रह नहीं पाता हूँ। बोझ इक मन पर लिए हर दिन जिए जाता हूँ मैं। सोच के अंधे कुंए में रोज़ खो जाता हूँ मैं। है नहीं मिलता किनारा, हल नहीं मिलता कोई- ढूंढने में ख़ुद को ख़ुद से शून्य हो जाता हूँ मैं। कशमकश से मन भरा है कुछ न कर पाता हूँ। वक्त के साँचे में क्यूँ कर ढल नहीं पाता हूँ मैं। हो रहा है जो उसे स्वीकार करता जा औ चल- सोच मत पगले अधिक मन को भी समझाता हूँ मैं। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#कशमकश #विचार  White आजकल खुद को बहुत जकड़ा हुआ पाता हूँ मैं।
बंध  गया  हूँ  दायरे  में   खुल  नहीं  पाता  हूँ  मैं।
हो  नहीं  पाता  हूँ  बाहर  उलझनों  की  क़ैद  से-
ज़िन्दगी  के  साथ  खुल  कर  रह  नहीं पाता  हूँ।

बोझ इक मन पर लिए हर दिन जिए जाता हूँ मैं।
सोच  के  अंधे  कुंए  में   रोज़  खो  जाता हूँ  मैं।
है  नहीं  मिलता किनारा, हल  नहीं मिलता  कोई-
ढूंढने  में  ख़ुद  को ख़ुद से  शून्य  हो  जाता हूँ  मैं।

कशमकश से मन भरा है कुछ न कर पाता हूँ।
वक्त के साँचे में क्यूँ कर ढल नहीं पाता हूँ मैं।
हो रहा है जो उसे स्वीकार करता जा औ चल-
सोच मत पगले अधिक मन को भी समझाता हूँ मैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'
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