रिपुदमन झा 'पिनाकी'

रिपुदमन झा 'पिनाकी'

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White फिर उसी राह से हम गुज़रे हैं फिर वही दर्द है तनहाई है फिर वही आँसू है तड़प है वही फिर वही याद की परछाई है फिर मेरी रुह है छलनी छलनी फिर मेरी साँस पे बन आई है फिर मेरी जान जान जाती है फिर मेरी आँख ये भर आई है फिर मेरे रात दिन उदास हुए फिर मेरे वक्त मुझसे रुठे गए फिर मेरे जख्म हरे होने लगे फिर मेरे अपने मुझसे खोने लगे। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#कविता #फिर  White फिर उसी राह से हम गुज़रे हैं
फिर वही दर्द है तनहाई है
फिर वही आँसू है तड़प है वही 
फिर वही याद की परछाई है
फिर मेरी रुह है छलनी छलनी
फिर मेरी साँस पे बन आई है
फिर मेरी जान जान जाती है
फिर मेरी आँख ये भर आई है
फिर मेरे रात दिन उदास हुए
फिर मेरे वक्त मुझसे रुठे गए
फिर मेरे जख्म हरे होने लगे
फिर मेरे अपने मुझसे खोने लगे।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#फिर

11 Love

White किसी की बात पर दिल हार कर चले आए। राज़ ए दिल कह गए इकरार कर चले आए। किताब ए ईश्क मे जोड़ आए एक नया पन्ना- कि एक शोख़ से हम प्यार कर चले आए। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#शायरी #love_shayari  White किसी की बात पर दिल हार कर चले आए।
राज़ ए दिल कह गए इकरार कर चले आए।
किताब ए ईश्क मे जोड़ आए एक नया पन्ना-
कि एक शोख़ से हम प्यार कर चले आए।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#love_shayari

10 Love

White मैं दुआओं में हमेशा के लिए ज़िन्दा रहूँ। बददुआ न लूँ किसी की मैं न शर्मिन्दा रहूंँ। काम हों सबकी भलाई के मेरे हाथों सदा- नेक नगरी का हमेशा नेक बाशिन्दा रहूँ। दिल दुखाऊँ ना किसी का तीखी कड़वी बात से। मैं कभी खेलूँ नहीं मजबूर के जज़्बात से। साथ दूँ मैं हर क़दम सबका, मदद सबकी करूँ- मैं न घबराऊँ कभी बिगड़े हुए हालात से। मैं कभी नीचे न गिर जाऊँ मेरे किरदार से। पेश आऊँ मैं सभी से हर घड़ी बस प्यार से ‌ याद कर मुझको करें निन्दा मेरी ना लोग सब- अलविदा जब लूँ कभी मैं दुनिया के बाजार से। आरज़ू है ज़िन्दगी भर नेकियांँ करता रहूँ। ग़मज़दा लोगों की झोली खुशियों से भरता रहूँ। मैं ख़रा उतरूँ सभी की ख़ाहिशों उम्मीद पर- रौशनी बन ज़िन्दगी में सबकी मैं जलता रहूँ। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#आरज़ू #विचार  White मैं दुआओं में हमेशा के लिए ज़िन्दा रहूँ।
बददुआ न लूँ किसी की मैं न शर्मिन्दा रहूंँ।
काम हों सबकी भलाई के मेरे हाथों सदा-
नेक नगरी का हमेशा नेक बाशिन्दा रहूँ।

दिल दुखाऊँ ना किसी का तीखी कड़वी बात से।
मैं  कभी  खेलूँ  नहीं  मजबूर  के  जज़्बात  से।
साथ दूँ मैं हर क़दम सबका, मदद सबकी करूँ-
मैं  न  घबराऊँ  कभी  बिगड़े  हुए  हालात   से।

मैं कभी नीचे न गिर जाऊँ मेरे किरदार से।
पेश आऊँ मैं सभी से हर घड़ी बस प्यार से ‌
याद कर मुझको करें निन्दा मेरी ना लोग सब-
अलविदा जब लूँ कभी मैं दुनिया के बाजार से।

आरज़ू  है  ज़िन्दगी  भर  नेकियांँ  करता  रहूँ।
ग़मज़दा लोगों की झोली खुशियों से भरता रहूँ।
मैं ख़रा उतरूँ सभी की ख़ाहिशों उम्मीद पर-
रौशनी बन ज़िन्दगी में सबकी मैं जलता रहूँ।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White पहले की तरह अब नहीं रहा मेरा समाज। बदला समय बदल गए सभी के अब मिज़ाज। मशगूल हो गए हैं अपने आप में सभी- करने लगे हैं बंद दिल के अपने सब दराज। सब बैठते थे साथ पहले दिन हो चाहे रात। सुख दुःख सुनाते करते थे आपस में मन की बात। लगता ही नहीं था अलग-अलग हैं हम सभी- परिवार थे हम देते थे एक-दूसरे का साथ। रौनक सी सजी रहती थी मोहल्ले में पहले। खिलती थी खुशी बच्चों के हर हल्ले में पहले। बचपन कहीं हैं खो गए किलकारियों वाले- सजते थे जो नगीने बन के छल्ले में पहले। अब तो उदासियों ने घर है अपना बनाया। वीरानियों का हर तरफ है बिछ गया साया। रहने लगे हैं लोग बंद अपने घरों में- जाने समय ने कैसा कालचक्र घुमाया। अब एक-दूसरे से लोग कटने लगे हैं। खुद में ही सभी आजकल सिमटने लगे हैं। होने लगे हैं दूर सभी ताल्लुकात से- आपस में मेल-जोल सबके घटने लगे हैं। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#बदल_गया_समाज #कविता  White पहले  की  तरह  अब  नहीं  रहा  मेरा समाज।
बदला समय बदल गए सभी के अब मिज़ाज।
मशगूल  हो  गए  हैं  अपने  आप  में  सभी-
करने  लगे  हैं बंद  दिल के अपने सब दराज।

सब  बैठते  थे  साथ  पहले  दिन  हो  चाहे  रात।
सुख दुःख सुनाते करते थे आपस में मन की बात।
लगता  ही  नहीं  था  अलग-अलग  हैं  हम  सभी-
परिवार  थे  हम  देते  थे  एक-दूसरे का साथ।

रौनक  सी  सजी  रहती  थी  मोहल्ले  में  पहले।
खिलती थी  खुशी  बच्चों  के हर  हल्ले में पहले।
बचपन  कहीं  हैं  खो  गए  किलकारियों  वाले-
सजते  थे  जो  नगीने  बन के  छल्ले  में  पहले।

अब तो उदासियों ने घर है अपना बनाया।
वीरानियों का हर तरफ है बिछ गया साया।
रहने  लगे  हैं  लोग  बंद  अपने  घरों  में-
जाने  समय  ने  कैसा  कालचक्र  घुमाया।

अब  एक-दूसरे  से  लोग  कटने  लगे  हैं।
खुद में ही सभी आजकल सिमटने लगे हैं।
होने  लगे  हैं  दूर  सभी  ताल्लुकात  से-
आपस में मेल-जोल सबके घटने लगे हैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#बदल_गया_समाज कविता

15 Love

White मैं दुआओं में हमेशा के लिए ज़िन्दा रहूँ। बददुआ न लूँ किसी की मैं न शर्मिन्दा रहूंँ। काम हों सबकी भलाई के मेरे हाथों सदा- नेक नगरी का हमेशा नेक बाशिन्दा रहूँ। दिल दुखाऊँ ना किसी का तीखी कड़वी बात से। मैं कभी खेलूँ नहीं मजबूर के जज़्बात से। साथ दूँ मैं हर क़दम सबका, मदद सबकी करूँ- मैं न घबराऊँ कभी बिगड़े हुए हालात से। मैं कभी नीचे न गिर जाऊँ मेरे किरदार से। पेश आऊँ मैं सभी से हर घड़ी बस प्यार से । याद करके लोग मुझसे मत करें निन्दा कभी- अलविदा जब लूँ कभी मैं दुनिया के बाजार से। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#ख्वाहिश #कविता  White मैं दुआओं में हमेशा के लिए ज़िन्दा रहूँ।
बददुआ न लूँ किसी की मैं न शर्मिन्दा रहूंँ।
काम हों सबकी भलाई के मेरे हाथों सदा-
नेक नगरी का हमेशा नेक बाशिन्दा रहूँ।

दिल दुखाऊँ ना किसी का तीखी कड़वी बात से।
मैं  कभी  खेलूँ  नहीं  मजबूर  के  जज़्बात  से।
साथ दूँ मैं हर क़दम सबका, मदद सबकी करूँ-
मैं  न  घबराऊँ  कभी  बिगड़े  हुए  हालात   से।


मैं कभी नीचे न गिर जाऊँ मेरे किरदार से।
पेश आऊँ मैं सभी से हर घड़ी बस प्यार से ।
याद करके लोग मुझसे मत करें निन्दा कभी-
अलविदा जब लूँ कभी मैं दुनिया के बाजार से।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White वो बात कहां किसी और में है, जो बात है अपनी हिन्दी में। निज भाव, प्रेम अभिव्यक्ति की हर बात है अपनी हिन्दी में।। गौरवशाली स्वर्णिम अपनी हिन्दी की गौरवगाथा है। है मातृभूमि अपनी हिन्दी और हिन्दी मातृभाषा है।। हिन्दी संस्कृत की सुता सुघड़, सब भाषाओं की जननी है। हिन्दी भारत की बिंदी है, हिन्दी प्यारी मनमोहिनी है।। हर शब्द में भावों की सरिता, अर्थों में सार समाहित है जीवन दायिनी इसमें रस है, अमृत की धार प्रवाहित है।। है सरल सुगम भाषा हिन्दी, हिन्दी कोमल है भोली है। मिश्री से मीठी और सरस ये अपनी हिन्दी बोली है।। है चली आ रही बरसों से हिन्दी संस्कृति का सार लिए। अपने भीतर अनुशासन और मर्यादा का आधार लिए।। हम भाग्यवान भारतवासी हिन्दी की हैं संतान सभी। कर्त्तव्य हमारा बनता है हिन्दी का करें सम्मान सभी।। हिन्दी से अपनी प्रतिष्ठा है हिन्दी का नहीं अपमान करें। हिन्दी को अपनाकर अपनी हिन्दी का हम उत्थान करें।। हिन्दी में हम-सब बात करें हिन्दी में सारे काम करें। हिन्दी के संग इस दुनिया में भारत का ऊंचा नाम करें।। रिपुदमन झा "पिनाकी" धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#कविता #hindi_diwas  White वो बात कहां किसी और में है, जो बात है अपनी हिन्दी में।
निज भाव, प्रेम अभिव्यक्ति की हर बात है अपनी हिन्दी में।।

गौरवशाली स्वर्णिम अपनी हिन्दी की गौरवगाथा है।
है मातृभूमि अपनी हिन्दी और हिन्दी मातृभाषा है।।

हिन्दी संस्कृत की सुता सुघड़, सब भाषाओं की जननी है।
हिन्दी भारत की बिंदी है, हिन्दी प्यारी मनमोहिनी है।।

हर शब्द में भावों की सरिता, अर्थों में सार समाहित है
जीवन दायिनी इसमें रस है, अमृत की धार प्रवाहित है।।

है सरल सुगम भाषा हिन्दी, हिन्दी कोमल है भोली है।
मिश्री से मीठी और सरस ये अपनी हिन्दी बोली है।।

है चली आ रही बरसों से हिन्दी संस्कृति का सार लिए।
अपने भीतर अनुशासन और मर्यादा का आधार लिए।।

हम भाग्यवान भारतवासी हिन्दी की हैं संतान सभी।
कर्त्तव्य हमारा बनता है हिन्दी का करें सम्मान सभी।।

हिन्दी से अपनी प्रतिष्ठा है हिन्दी का नहीं अपमान करें।
हिन्दी को अपनाकर अपनी हिन्दी का हम उत्थान करें।।

हिन्दी में हम-सब बात करें हिन्दी में सारे काम करें।
हिन्दी के संग इस दुनिया में भारत का ऊंचा नाम करें।।

रिपुदमन झा "पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#hindi_diwas हिंदी कविता

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