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Unsplash मन अगर संवेदबमनाओ के संवेनद से भरा हो तों अनर्थ क़ी झड़ मे से भी अर्थ डुंडा जा सकता है ©Parasram Arora

 Unsplash मन अगर संवेदबमनाओ के संवेनद से भरा हो तों 
अनर्थ क़ी झड़ मे से भी अर्थ  डुंडा जा सकता है

©Parasram Arora

अर्थ अनर्थ

18 Love

शादी का सही अर्थ..

153 View

White अक्सर…. इन भीगी शामों में पुराने ख्याल उमड़ आते हैं बादलों की गरज से, आसमानी बिजली की चमक से हौले हौले गहरे स्याह होते हुए विगत को देखता हूँ तो अब न कोई अफसोस… न कुछ खोने का दुख, न कुछ हासिल न कर पाने का कुछ देर के लिए क्षितिज के एक छोर पर बादलों से बनती धुंधली सी आकृति को देखता हूँ मैं… जानता हूँ क्षणिक है… पर कुछ देर ही सही निहारना चाहता हूँ उसे यूँ ही अपलक, तब तक खो न जाए वो दूसरे छोर पर ©हिमांशु Kulshreshtha

#कविता  White अक्सर….
इन भीगी शामों में
पुराने ख्याल उमड़ आते हैं
बादलों की गरज से,
आसमानी बिजली की चमक से
हौले हौले गहरे स्याह होते हुए
विगत को देखता हूँ
तो अब न कोई अफसोस…
न कुछ खोने का दुख,
न कुछ हासिल न कर पाने का
कुछ देर के लिए
क्षितिज के एक छोर पर
बादलों से बनती
धुंधली सी आकृति
को देखता हूँ मैं…
जानता हूँ क्षणिक है…
पर कुछ देर ही सही
निहारना चाहता हूँ उसे
यूँ ही अपलक, तब तक
खो न जाए वो दूसरे छोर पर

©हिमांशु Kulshreshtha

अक्सर...

19 Love

Unsplash मन अगर संवेदबमनाओ के संवेनद से भरा हो तों अनर्थ क़ी झड़ मे से भी अर्थ डुंडा जा सकता है ©Parasram Arora

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अनर्थ क़ी झड़ मे से भी अर्थ  डुंडा जा सकता है

©Parasram Arora

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White अक्सर…. इन भीगी शामों में पुराने ख्याल उमड़ आते हैं बादलों की गरज से, आसमानी बिजली की चमक से हौले हौले गहरे स्याह होते हुए विगत को देखता हूँ तो अब न कोई अफसोस… न कुछ खोने का दुख, न कुछ हासिल न कर पाने का कुछ देर के लिए क्षितिज के एक छोर पर बादलों से बनती धुंधली सी आकृति को देखता हूँ मैं… जानता हूँ क्षणिक है… पर कुछ देर ही सही निहारना चाहता हूँ उसे यूँ ही अपलक, तब तक खो न जाए वो दूसरे छोर पर ©हिमांशु Kulshreshtha

#कविता  White अक्सर….
इन भीगी शामों में
पुराने ख्याल उमड़ आते हैं
बादलों की गरज से,
आसमानी बिजली की चमक से
हौले हौले गहरे स्याह होते हुए
विगत को देखता हूँ
तो अब न कोई अफसोस…
न कुछ खोने का दुख,
न कुछ हासिल न कर पाने का
कुछ देर के लिए
क्षितिज के एक छोर पर
बादलों से बनती
धुंधली सी आकृति
को देखता हूँ मैं…
जानता हूँ क्षणिक है…
पर कुछ देर ही सही
निहारना चाहता हूँ उसे
यूँ ही अपलक, तब तक
खो न जाए वो दूसरे छोर पर

©हिमांशु Kulshreshtha

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