कुछ नग्में
कुछ गीत
हर रोज गुनगुनाते हैं।
कुछ लफ्ज़
कुछ जुमले,
हर वक़्त दोहराते हैं।
ढूंढती हूँ में,
कास कोई ऐसा नगमा मिल जाए,
हर रोज खोजती हूँ में,
कास कोई ऐसा जुमला मिल जाए,
बयां करने की
जरूरत भी न हो।
और आप जनाब,
बिन बोले सब समझ जाए।।
वैसे तो खूब समझते हैं,
आप यूँ ही हमदर्द न कहलाते हैं।
थोड़ा"और'" कि ख्वाहिश है,
कास यह चाहत भी हमारी पूरी हो जाए।।
©BINOदिनी
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