और शायद कुछ भी न दे सकू, मैं तुम्हे।
मगर एक स्वीकृती जरूर दूंगी
जो समाज कभी न दे सका एक पुरुष को
हां तुम रो सकते हो।जब कभी घिर जाओ
भयानक बैचेनी से या गमों से।मेरी गोद में
सर रख ,तुम रो सकते हो
और मैं समेट लूंगी,अपने आंचल में तुम्हारी
आंखो से गिरता हर दुःख।और शायद
धोउ भी न कभी अपना दुपट्टा।
©seema patidar
स्वीकृती .......