Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

A simple man.... Searching for the meaning of my own existence.... Happy outside... Serious inside... Love my brother the most... ऐं वैं शायर बन गया... 😂😂 Senior English teacher in an esteemed ISC school...

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Whose guitar is that? I think I know. Its owner is quite sad though. It really is a tale of woe, I watch him frown. I cry hello. From the far distance To which stance my throat sores. He gives his guitar a shake, And sobs until the tears it make . The only other sound's the break, Of distant waves and birds awake. The guitar is tall, smart and deep, But he has promises to keep, Until then he shall not . He lies in bed with ducts that weep. He rises from his bitter bed, With thoughts of sadness in his head, He idolises being dead. Facing the day with never ending dread. My lonely guitarist Always far from being artist, Plays the smart guitar In the most bizarre bleep. ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#Guitar  Whose guitar is that? I think I know. 
Its owner is quite sad though. 
It really is a tale of woe, 
I watch him frown. I cry hello. 
From the far distance
To which stance my throat sores.

He gives his guitar a shake, 
And sobs until the tears it make . 
The only other sound's the break, 
Of distant waves and birds awake.

The guitar is tall, smart and deep, 
But he has promises to keep, 
Until then he shall not . 
He lies in bed with ducts that weep.

He rises from his bitter bed, 
With thoughts of sadness in his head, 
He idolises being dead. 
Facing the day with never ending dread.

My lonely guitarist 
Always far from being artist, 
Plays the smart guitar 
In the most bizarre bleep.

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#Guitar

13 Love

है नहीं मुस्कराहट तेरे हिस्से में तो बेवजह हंसता क्यों है, कर नहीं सकता बयां दर्द अपना, तो फ़कत उसमें फंसता क्यों है किसी की नहीं मंज़िल जो आशियाना है तेरा, खड़े खिड़कियों पर फ़िर रोज़ सिसकता क्यों है, वो नहीं आया, नहीं आएगा, नहीं आएगा, तू बेवजह दरवाज़े पे राह तकता क्यों है, "जग्गी" चला जा कि अंधेरों में ही बसर है तेरा उजालों की राह में कमबख्त भटकता क्यों है ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#Apocalypse  है नहीं मुस्कराहट तेरे हिस्से में 
तो बेवजह हंसता क्यों है, 
कर नहीं सकता बयां दर्द अपना,
 तो फ़कत उसमें फंसता क्यों है 

किसी की नहीं मंज़िल जो आशियाना है तेरा,
खड़े खिड़कियों पर फ़िर रोज़ सिसकता क्यों है,

वो नहीं आया, नहीं आएगा, नहीं आएगा,
तू बेवजह दरवाज़े पे राह तकता क्यों है,

"जग्गी" चला जा कि अंधेरों में ही बसर है तेरा 
 उजालों की राह में कमबख्त भटकता क्यों है

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#Apocalypse

13 Love

ये सोच कर गुजार देंगे चार दिन की ज़िंदगी कोई हमारा हम-सफ़र नहीं हुआ तो क्या हुआ मेरे किसी रकीब की दुआ कुबूल हो गई नसीब के-ए-यार ग़र नहीं हुआ तो क्या हुआ हवा ने क्यूँ बना लिया है फ़ासला चराग़ से ? जवाब दो ये खौफ़ -ओ दर नहीं हुआ तो क्या हुआ वो बे पनाह हसीन है तो मैं फकत हसीन हूँ हसीन हूँ हसीन तर नहीं हुआ तो क्या हुआ यहां पे सब्र कीजिए ये कार-ज़ार -ए इश्क है जो चाहते थे वो अगर नहीं हुआ तो क्या हुआ ये शहर -ए बेवफ़ा के लोग कब वफ़ा -परस्त हैं वफ़ा का ज़िक्र रात भर नहीं हुआ तो क्या हुआ हर एक शै पलट रही है अपनी अस्ल की तरफ़ अगर मैं आख़िरी बशर नहीं हुआ तो क्या हुआ हमारा मस'अला है हम खुदा से क्यूँ गिला करें वो महावर-ए-दिल-ओ नज़र नहीं हुआ तो क्या हुआ ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#Apocalypse  ये सोच कर गुजार देंगे चार दिन की ज़िंदगी 
कोई हमारा हम-सफ़र नहीं हुआ तो क्या हुआ 

मेरे किसी रकीब की दुआ कुबूल हो गई 
नसीब के-ए-यार ग़र नहीं हुआ तो क्या हुआ 

हवा ने क्यूँ बना लिया है फ़ासला चराग़ से ?
जवाब दो ये खौफ़ -ओ दर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

वो बे पनाह हसीन है तो मैं फकत हसीन हूँ 
हसीन हूँ हसीन तर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

यहां पे सब्र कीजिए ये कार-ज़ार -ए इश्क है 
जो चाहते थे वो अगर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

ये शहर -ए बेवफ़ा के लोग कब वफ़ा -परस्त हैं 
वफ़ा का ज़िक्र रात भर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

हर एक शै पलट रही है अपनी अस्ल की तरफ़ 
अगर मैं आख़िरी बशर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

हमारा मस'अला है हम खुदा से क्यूँ गिला करें 
वो महावर-ए-दिल-ओ नज़र नहीं हुआ तो क्या हुआ

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

ये कुहरा है घना सा जो छँटता ही नहीं ये वक़्त ऐसा है क्यूँ कि कटता ही नहीं ख़ुशी के तराने खेलते भी हैं गोद में पर दर्द है कुछ ऐसा कि ये बँटता ही नहीं कितने पन्ने फाड़े मैंने इसमें यूँ ही पर ऐसा भी नहीं है कि मैं लिखता ही नहीं सोचता कहता लिखता बहुत हूँ पर ऐसा भी नहीं है कि मैं थकता ही नहीं मंज़िल की ओर तो निकल आया "जग्गी" पर ऐसा भी नहीं है कि मैं भटकता ही नहीं ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#kohra  ये कुहरा है घना सा जो छँटता ही नहीं 
ये वक़्त ऐसा है क्यूँ कि कटता ही नहीं

ख़ुशी के तराने खेलते भी हैं गोद में पर 
दर्द है कुछ ऐसा कि ये बँटता ही नहीं

कितने पन्ने फाड़े मैंने इसमें यूँ ही पर 
ऐसा भी नहीं है कि मैं लिखता ही नहीं

सोचता कहता लिखता बहुत हूँ पर 
ऐसा भी नहीं है कि मैं थकता ही नहीं

मंज़िल की ओर तो निकल आया "जग्गी"  
पर ऐसा भी नहीं है कि मैं भटकता ही नहीं

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#kohra

15 Love

#lightning  जब आँख खुली, मैंने लुटा कारवाँ देखा
 बंजर ज़मीं देखी, मैला आसमाँ देखा

लाखों के पैरों के तले ज़मीन ना रही
वीरानियों का हर क़दम मैंने निशाँ देखा

अब जानवर से बदतर इंसान हो गया 
बर्बादियों को देख ख़ुदा बे-ज़बाँ देखा

मारने पे तुला है इंसान आज भी 
फूलों की जगह काँटों को दरमियाँ देखा

किस पे करें भरोसा, किस की पनाह लें 
टूटा हुआ मकान और उठता धुआँ देखा

लाशों के ढेर से न हम ने सीखा है सबक़ "जग्गी" 
हर शख़्स को डरा हुआ और बद-गुमाँ देखा

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

#lightning

72 View

"समंदर की लहरों पर मिल्कियत है अपनी, दरिया में कागज़ की कश्ती चलाने वालों को इसका इल्म क्या, इक मुकम्मल सा ख्वाब हैं हम, चंद झपकियों में अपनी रात ज़ाया करने वालों को इसका इल्म क्या, रूहानी सी कुछ नज़्में और पाक सी कुछ गज़लें, अपना तो तखल्लुस ही यही है, कुछ आड़े तिरछे अल्फाज़ों को शेर कहने वाले, इन्हें हमारी शायराना मोहब्बत का इल्म क्या...... लिखते हैं दिल की कलम से हम इन्हे कलम के जज़्बातों की तादबीर का इल्म क्या.. लाते हैं मुस्कान आफत-ए-जां के रुख पर इन्हे खुशी और गम के फर्क का इल्म क्या...... हम तो तालीफ भी करते हैं दिल से ईन्हे लिखावट के अफसून का इल्म क्या, यूं तो हम बाहम हैं आपनी ही दुनिया में, इन्हे इश्क की बालीदगी का इल्म क्या....! " ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

 "समंदर की लहरों पर मिल्कियत है अपनी,
 दरिया में कागज़ की कश्ती चलाने वालों को इसका इल्म क्या,
 इक मुकम्मल सा ख्वाब हैं हम,
 चंद झपकियों में अपनी रात ज़ाया करने वालों को इसका इल्म क्या, 
रूहानी सी कुछ नज़्में और पाक सी कुछ गज़लें, 
अपना तो तखल्लुस ही यही है, 
कुछ आड़े तिरछे अल्फाज़ों को शेर कहने वाले,
 इन्हें हमारी शायराना मोहब्बत का इल्म क्या...... 
लिखते हैं दिल की कलम से हम 
इन्हे कलम के जज़्बातों की तादबीर का इल्म क्या.. 
लाते हैं मुस्कान आफत-ए-जां के रुख पर 
 इन्हे खुशी और गम के फर्क का इल्म क्या......
 हम तो तालीफ भी करते हैं दिल से 
 ईन्हे लिखावट के अफसून का इल्म क्या, 
यूं तो हम बाहम हैं आपनी ही दुनिया में, 
इन्हे इश्क की बालीदगी का इल्म क्या....! "

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

"समंदर की लहरों पर मिल्कियत है अपनी, दरिया में कागज़ की कश्ती चलाने वालों को इसका इल्म क्या, इक मुकम्मल सा ख्वाब हैं हम, चंद झपकियों में अपनी रात ज़ाया करने वालों को इसका इल्म क्या, रूहानी सी कुछ नज़्में और पाक सी कुछ गज़लें, अपना तो तखल्लुस ही यही है, कुछ आड़े तिरछे अल्फाज़ों को शेर कहने वाले, इन्हें हमारी शायराना मोहब्बत का इल्म क्या...... लिखते हैं दिल की कलम से हम इन्हे कलम के जज़्बातों की तादबीर का इल्म क्या.. लाते हैं मुस्कान आफत-ए-जां के रुख पर इन्हे खुशी और गम के फर्क का इल्म क्या...... हम तो तालीफ भी करते हैं दिल से ईन्हे लिखावट के अफसून का इल्म क्या, यूं तो हम बाहम हैं आपनी ही दुनिया में, इन्हे इश्क की बालीदगी का इल्म क्या....! " ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

15 Love

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