बदलता वक्त बदलता दौर बदलता आदमी।
सुना है इन्सान भी कभी जानवर था और फिर समय के साथ आये बदलाव से इन्सान बना मगर आज इन्सान इतना गिर चुका है कि जानवर कहने योग्य भी नहीं बचा है।
दिन प्रतिदिन मानव स्वार्थ की आग में जल कर संवेदनहीन होते जा रहा है और अन्याय की सीमाएं लाँघता जा रहा है।
आज समाज में चारों तरफ हो रहे कुकृत्यों तथा कुरीतियों को देखकर लगता है कि क्या यही है हमारा शिक्षित समाज जिसके लिये ना जाने कितने महापुरुषों ने स्वयं को न्योछावर कर दिया था।
धर्म मज़हब के नाम पर हो रही राजनीति से ना जाने क
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