Pinki Khandelwal

Pinki Khandelwal

लेखनी मेरी आदत नही मेरी पहचान है।

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 तुम्हें सब पता है....।

मेरी हर सांसों पर सिर्फ तुम्हारा नाम है,
सिर्फ तुम्हारा,
ये दिल भी सिर्फ तुम्हारे लिए धड़कता है,
सिर्फ तुम्हारे लिए,
ये जो मैं जी रहा जिंदगी हूं,
 सिर्फ तुम्हारे खातिर,
 और तुम्हें सब पता है फिर भी.... क्यों इतनी दूरियां है,
 क्यों हम पास होकर भी साथ नहीं है,
 क्यों हम मिलते हैं जुदा होने के लिए,
 क्यों हम एक नहीं हो पाते,
 क्यों हम हालातों के आगे इतने बेबस है,
 कि चाहकर भी पास आ नहीं सकते,
 और दूर भी जा नहीं सकते,
 क्योंकि इतना जो तुम्हें चाहते हैं सनम।

©Pinki Khandelwal

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 जिंदगी के यादगार पल 

साथ उठना साथ बैठना,
मिल बांटकर खाना,
संग खेलना पढ़ना मस्ती करना,
वो बचपन की शरारतें,
वो दादी से कहानियां सुनना,
पानी की नाव चलाना,
स्कूल न जाने के बहाने बनाना,
पॉलिथीन की पतंग उड़ाना,
क्रिकेट खेलते समय शीशे फोड़ना,
गली में हड़कंप मचा सबको परेशान करना,
मस्ती में घूमना नाचते गाते जाना,
ये थे जिंदगी के खास लम्हे,
जिन्हें हमने बचपन में जिया है,
जो अब यादों में जिंदा है,
क्योंकि उनका स्थान मोबाइलों ने लिया है।

©Pinki Khandelwal

सचमुच सब अपनी लाइफ में इतने व्यस्त हैं, मानो जिंदगी को जीना भूल गए हो।

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 नई शुरुआत 

थोड़ी देर ठहर सी गई मेरी कलम,
शायद कुछ उलझनों में उलझ सी गई मेरी कलम,

यूं तो मोड़ जिंदगी में आते रहते हैं,
यूं तो अनेकों लोग हमारी बातों से सहमत नहीं होते हैं,
पर क्या लिखना छोड़ दूं मैं,
कहीं डर के बैठ जाऊं,
नहीं....यह मेरी आदत नही,
मैं फिर भी लिखूंगा नयी शुरूआत करूंगा,
अपने अंदाज में नयापन लाऊंगा,
लोगों को अपनी बात समझाऊंगा,
लोगों की बातों को समझने का प्रयास भी करूंगा,
पर लिखना बंद नहीं करूंगा,
मैं लेखक हूं पीड़ितों की करूण आवाज हूं,
भ्रष्टाचार बेईमानी पर करता गहरा वार हूं,
तीखी तलवार हूं,
समाज को कड़वी सच्चाई से रूबरू कराता हूं,
लोगों को नयी दिशा प्रदान करता हूं,
बेशक कुछ लोग बुरा कहें.. परवाह नहीं,
पर कुछ ग़लत लिख दूं... यह मुझे मंजूर नहीं,
अपने विचारों से समझौता कर लूं.. यह मुझे स्वीकार नहीं।

©Pinki Khandelwal

लिखना बेशक पसंद है पर कुछ ग़लत लिखूं यह संभव नहीं।

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 मुझे गर्व है....।

मुझे गर्व है आज की बेटियों पर,
जो सिर उठा के,
अपने सपनों को पूरा करने,
की जी तोड कोशिश कर रही है,
मुझे गर्व है उनकी मेहनत पर,
जो हर संघर्ष का,
हंसकर और डटकर उनका,
सामना कर रही है,
माना अब भी बंदिशें है,
माना अब भी सोच पुरानी है,
पर गर्व है आज की बेटियों पर,
जो उन बंदिशों में भी,
अपने सपनों की उड़ान भरने लगी है,
और लोगों की सोच को,
बदलने के काबिल हो गई है।

©Pinki Khandelwal

फक्र हो रहा होगा हर पिता को उनकी बेटियों पर, बना रही अपनी वो नयी पहचान है, चौड़ा हुआ होगा हर मां का सीना, जब देखा होगा उन्होंने उनकी बेटियां को कैसे आज आसमां में उड़ान भर रही है।

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मेरा सपना

जीवन अंधियारे में बीता,
जवानी पैसे कमाने में बीती,
बुढ़ापे में मैंने एक सपना देखा,
जिसके पूरे होने की मात्र कल्पना थी मन में,
और देखो हो गया वो पूरा..मेरा सपना,


कलम और कागच से मैंने बांधा रिश्ता,
जिसने मेरे जख्मों को कम किया,
मन की उलझनों को मिटाया,
गम के अंधियारे से उजियारे में लाया,
मेरे जज्बातों को एक किनारा मिला,
कागज और कलम ने मुझे खुद से मिलाया,
घंटों विचार करता और फिर लिखने बैठ जाता,
न किसी के साथ की जरूरत महसूस हुई,
न किसी के जाने का अफसोस,
क्योंकि मेरी तो कलम और कागज से दोस्ती हुई,
वहीं थे मेरे ग़म और खुशी के साथी मेरे हमदम,

सब कहते बुढ़ापे मे शौक चढ़ा है लिखने का,
और खूब हंसते बस मैं उनकी सुनता था,
और लिखता रहता अपने अरमानों को,
टूटे मेरे हजारों सपनों को,
किन ख्वाहिशों का गला घोंटा था, लिखा मैंने,
और लिखा कैसे बच्चों से मिलने को तरसता था,
पर जब किसी ने साथ नहीं दिया तब कलम थी साथ,
और आज वही मेरा जीवन और वही मेरा सपना है,

और सोचता था मैं,
लिखूं हजारों उन असहाय वृद्ध मां बाप की कहानी,
जिनकी जिंदगी बच्चों के जीवन को संवारने में,
उनको ख्वाहिशों को पूरा करने में चली गयी,
और कैसे वो हमारा प्यार चुटकियों में भुला बैठे,
लिखूं अपने उस दर्द को जब छोड़ गए मुझे अकेला,
लिखूं वो पीड़ा जो बुढ़ापे में हर इंसान भुगतता है,
लिखूं वो मासूमी जो अकेलेपन में महसूस होती है,

सचमुच खुशी तब हुई जब मेरी किताब प्रकाशित हुई,

"बुढ़ापा...जिसका कोई साथी नहीं होता"।

©Pinki Khandelwal

क्या सपने देखने की कोई उम्र होती है?

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 दिल के जज्बात...।

लोग दूसरों की सुनना पसंद करते हैं,
पर अपने दिल के जज्बात को बयां नहीं कर पाते,
क्योंकि वो दूसरों के जैसा बनना चाहते है,
पर खुद की खूबी से अनजान रहते हैं,
वाह रे वाह दुनिया के लोगों,
किसी के पास कहने के लिए बहुत कुछ है,
पर किससे कहें क्योंकि सुनने वाला कोई नहीं,
और कोई सुनने को बेकरार है,
पर कोई अपने दिल के जज्बात बयां नहीं कर पाता,
यूं उलझन में वो उलझा हुआ रहता है,
न जाने कब अपने दिल के जज्बात को करेगा बयां,
क्यों खुद में इतना उलझा हुआ रहता है,
डर है कि लोग मेरी बात को सुन हंसेंगे,
तो निकाल फैंक वो डर और खुल कर बयां कर जज्बात,
क्योंकि जब तक कहेगा नहीं तब तक डरता रहेगा।

©Pinki Khandelwal

कभी कभी हमारे जज्बात दिल में रह जाते हैं, हम कहना चाहते हैं पर कुछ कह नहीं पाते।

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