"दुनिया कहती है अल्फ़ाज़ जिसे ,वो पन्नो पर सजे ख़्वाब हैं मेरे,
टूटकर बिखरे थे जो कभी , वो समेट कर रखे अहसास हैं मेरे ,
क़ैद थे जो दिल के क़फ़स में , अब जाकर आज़ाद हुए हैं ,
पन्नो के खुले आकाश में विचरते ,स्वछंद से परवाज़ हैं मेरे,
जमे हुए थे दिल की ज़मीं पर ,कलम से खुरचा है इन्हें ,
तराश कर सजाया है इन्हें , अब यही जीवन का सार है मेरे ,
कुछ छोटे छोटे टुकड़े थे जो टूटकर बिखरे थे ख़्वाबों की डाली से,
अब अलंकृत हैं जो पन्नो पर ,यही अभिव्यक्ति का अंदाज़ है मेरे ,
जब छायेंगें फ़लक़ पर अल्फ़ाज़ ये , रोशन होंगे ये सितारों से,
कभी चमकते फूलों से , कभी यही जमीं का चाँद है मेरे ।।
पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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