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https://youtube.com/@KK-Opinion?si=N_1vAdm45WaJVBX-
बादलों की अठखेलियां, हवा के थपेड़ो से जूझते पौधे, गेहूं चुगते कबूतरों की गुटर गूं, तोतों, मैना, गौरेय्या की मस्ती, बिल्ली की घूरती, शिकारी आँखें, सब निहार रहा हूँ, अपलक! इस सबका अर्थ ढूढ़ने का निरर्थक प्रयास करता मन मेरी संवेदनाये,अब शून्य तो नहीं हो गईं कहीं? ©Kamlesh Kandpal
Kamlesh Kandpal
17 Love
कोई पर्यावरण प्रेमी नहीं हो जाता, कमलेश जंगल मे घर बनाने से, इंसान बदल नहीं जाता जान लो एक नया शहर बसाने से ©Kamlesh Kandpal
19 Love
कमलेश वक़्त की होती नहीं किसी से यारी अमीर से इश्क नहीं, गरीब से नहीं पर्देदारी राजा, प्रजा दोनो धूल में मिलेंगे वक़्त देखता नहीं कोई लाचारी। क्या दुश्मन, क्या आशिक उसकी किसी से नहीं रवादारी ©Kamlesh Kandpal
23 Love
जब वृक्ष थे ज्यादा, घर थे कम हवा शुद्ध थी,चैन से रहते थे हम अब भीड़ बड़ गईं, बड़ा मकानों का जाल सुकून भरी जिंदगी में होने लगे बवाल कहते सब हैं पर कोई करता नहीं सुधार जागो की जिंदगी की मिलती नहीं उधार ©Kamlesh Kandpal
21 Love
जी चाहता है गुम जाऊँ कहीं घने जंगल में. नहीं फंसना हवस,नफरत ईर्ष्या के दंगल में। फितरत बर्बादी की तो क्या करेंगे जाके मंगल में. ©Kamlesh Kandpal
अब चिड़िया को मिलता नहीं चारा इंसान के भोगों ने सबको ही मारा अन्य जीवों का ना हुआ उथतान तो पतन भी नहीं हुआ रे इंसान पर भोगों में आशक्त हुआ मानव गिर कर नीचे बन गया दानव ©Kamlesh Kandpal
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