White कुछ सपने अधूरे जल रहें होंगे,
कुछ सपोले अभी पल रहे होंगे।
दुश्वारियाँ दरख्तों सी बढ़ रहीं हैं,
शायद मेरे ही कर्मफल रहे होंगे।
बच कर निकल आये हैं जलजलों से,
दुश्मन हथेलियाँ मल रहे होंगे।
साथ जब तक रहे जीभर रहे,
कितने ख़ुशनुमा वो पल रहे होंगे।
कोई और आ गया है जिंदगी में उनकी,
शायद अब उसको छल रहे होंगे।
ऊपर से बहुत प्यारा है फल,
अंदर कीड़े पल रहे होंगे।
ज़िंदगी की क़िताब पढ़ा दी उन्हें,
कमजोरियाँ मिरी उगल रहे होंगे।
ज़वाब उनसे क्या मैं चाहूँ,
जो गुस्से में अब भी उबल रहे होंगे।
✍️शैलेन्द्र राजपूत
©HINDI SAHITYA SAGAR
उस घटना को सुनकर दुःख हुआ दोस्त, आपने अच्छा निर्णय लिया लिखने का सोचकर, 🌹 👍 👍 👍 🌹 🌹 🌹 और आपने जो कविता लिखी वह सराहनीय है इस कविता में आपके दर्द झलक रहे हैं गुजरे कल का प्रतिबंध नजर आ रहा है। लाजबाव👍👍👍 🌹 👍 👍 👍 🌹