HINDI SAHITYA SAGAR

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I'm SHAILENDRA RAJPOOT, a poet,writer, artist, painter... खमसार, दहलीज़, दुवारे छोड़ आया हूँ, खलिहान, मड़नी, चौबारे छोड़ आया हूँ, चमकते चंद सिक्कों की खातिर, लाखों रुपहले सितारे छोड़ आया हूँ। -शैलेन्द्र राजपूत https://www.youtube.com/@hindisahityasagar1

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White *"छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर"* वो गली, गाँव वो, वो नहर की डगर, छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर। पहले आये कई, आएंगे और भी, जाने कितनों का घर हो गया ये शहर। फ़लसफ़े कुछ अधूरे वहीं रह गए, छोड़कर आ गया सारे शाम-ओ-सहर। ज़ख्म रिसता गया, दर्द बढ़ता गया, ख़त्म ज्यों-ज्यों हुआ है दवा का असर। कौन लाया है क्यों, जान लो तुम 'शैलेन्द्र', भुखमरी औ' ग़रीबी का बढ़ता कहर। - शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR

#sad_qoute  White *"छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर"*

वो गली, गाँव वो, वो नहर की डगर,
छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर।

पहले आये कई, आएंगे और भी,
जाने कितनों का घर हो गया ये शहर।

फ़लसफ़े कुछ अधूरे वहीं रह गए,
छोड़कर आ गया सारे शाम-ओ-सहर।

ज़ख्म रिसता गया, दर्द बढ़ता गया,
ख़त्म ज्यों-ज्यों हुआ है दवा का असर।

कौन लाया है क्यों, जान लो तुम 'शैलेन्द्र',
 भुखमरी औ' ग़रीबी का बढ़ता कहर।
          - शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR

#sad_qoute

15 Love

green-leaves *"छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर"* वो गली, गाँव वो, वो नहर की डगर, छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर। पहले आये कई, आएंगे और भी, जाने कितनों का घर हो गया ये शहर। फ़लसफ़े कुछ अधूरे वहीं रह गए, छोड़कर आ गया सारे शाम-ओ-सहर। ज़ख्म रिसता गया, दर्द बढ़ता गया, ख़त्म ज्यों-ज्यों हुआ है दवा का असर। कौन लाया है क्यों, जान लो तुम 'शैलेन्द्र', भुखमरी औ' ग़रीबी का बढ़ता कहर। - शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR

#GreenLeaves  green-leaves *"छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर"*

वो गली, गाँव वो, वो नहर की डगर,
छोड़कर आ गया देखो मैं भी शहर।

पहले आये कई, आएंगे और भी,
जाने कितनों का घर हो गया ये शहर।

फ़लसफ़े कुछ अधूरे वहीं रह गए,
छोड़कर आ गया सारे शाम-ओ-सहर।

ज़ख्म रिसता गया, दर्द बढ़ता गया,
ख़त्म ज्यों-ज्यों हुआ है दवा का असर।

कौन लाया है क्यों, जान लो तुम 'शैलेन्द्र',
 भुखमरी औ' ग़रीबी का बढ़ता कहर।
          - शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR

#GreenLeaves

11 Love

White रोशनी को अंदर आने दो अंधेरा बहुत है। रोको मत, जाने दो, यहाँ तेरा-मेरा बहुत है।। - शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR

#GoodNight  White रोशनी को अंदर आने दो अंधेरा बहुत है।
रोको मत, जाने दो, यहाँ तेरा-मेरा बहुत है।।
     - शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR

#GoodNight

13 Love

White कविता : याद करो उन रातों को याद करो, उन उन ख़्वाबों को याद करो, जिक्र हुआ न जिन बातों का, उन बातों को तुम याद करो। उन कसमों को याद करो, उन रस्मों को याद करो, उन निश्छल, कोरे-कोरे, स्वप्नों को तुम याद करो। उन भावों को याद करो, अनुभावों को याद करो, दुःखती रग सहलाये जो, उन घावों को याद करो। उन वादों को याद करो, परिवादों को याद करो, खट्टी-मीठी जो भी गुज़रीं, उन यादों को याद करो। उन राहों को याद करो, उन आहों को याद करो, कसकर गले लगाने वाली, उन बाहों को याद करो। याद करो, तुम याद करो, बस याद करो, और याद करो, तुम याद करो। -शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR

#good_night  White कविता : याद करो

उन रातों को याद करो,
उन उन ख़्वाबों को याद करो,
जिक्र हुआ न जिन बातों का,
उन बातों को तुम याद करो।

उन कसमों को याद करो,
उन रस्मों को याद करो,
उन निश्छल, कोरे-कोरे, 
स्वप्नों को तुम याद करो।

उन भावों को याद करो,
अनुभावों को याद करो,
दुःखती रग सहलाये जो,
उन घावों को याद करो।

उन वादों को याद करो,
परिवादों को याद करो,
खट्टी-मीठी जो भी गुज़रीं,
उन यादों को याद करो।

उन राहों को याद करो,
उन आहों को याद करो,
कसकर गले लगाने वाली,
उन बाहों को याद करो।

याद करो, 
तुम याद करो,
बस याद करो,
और याद करो,
तुम याद करो।
       -शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR

#good_night

15 Love

green-leaves नाराज़ हो गए वो, नाराज़ हो गए। कल क्या थे वो? क्या आज हो गए। ©HINDI SAHITYA SAGAR

#GreenLeaves  green-leaves नाराज़ हो गए वो, नाराज़ हो गए।
कल क्या थे वो? क्या आज हो गए।

©HINDI SAHITYA SAGAR

#GreenLeaves

19 Love

White कुछ सपने अधूरे जल रहें होंगे, कुछ सपोले अभी पल रहे होंगे। दुश्वारियाँ दरख्तों सी बढ़ रहीं हैं, शायद मेरे ही कर्मफल रहे होंगे। बच कर निकल आये हैं जलजलों से, दुश्मन हथेलियाँ मल रहे होंगे। साथ जब तक रहे जीभर रहे, कितने ख़ुशनुमा वो पल रहे होंगे। कोई और आ गया है जिंदगी में उनकी, शायद अब उसको छल रहे होंगे। ऊपर से बहुत प्यारा है फल, अंदर कीड़े पल रहे होंगे। ज़िंदगी की क़िताब पढ़ा दी उन्हें, कमजोरियाँ मिरी उगल रहे होंगे। ज़वाब उनसे क्या मैं चाहूँ, जो गुस्से में अब भी उबल रहे होंगे। ✍️शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR

#good_night  White कुछ सपने अधूरे जल रहें होंगे,
कुछ सपोले अभी पल रहे होंगे।

दुश्वारियाँ दरख्तों सी बढ़ रहीं हैं,
शायद मेरे ही कर्मफल रहे होंगे।

बच कर निकल आये हैं जलजलों से,
दुश्मन हथेलियाँ मल रहे होंगे।

साथ जब तक रहे जीभर रहे,
कितने ख़ुशनुमा वो पल रहे होंगे।

कोई और आ गया है जिंदगी में उनकी,
शायद अब उसको छल रहे होंगे।

ऊपर से बहुत प्यारा है फल,
अंदर कीड़े पल रहे होंगे।

ज़िंदगी की क़िताब पढ़ा दी उन्हें,
कमजोरियाँ मिरी उगल रहे होंगे।

ज़वाब उनसे क्या मैं चाहूँ,
जो गुस्से में अब भी उबल रहे होंगे।
         ✍️शैलेन्द्र राजपूत

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#good_night

16 Love

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