रचना दिनांक 30 जनवरी दोहजार पच्चीस
वार गुरुवार
समय पांच बजे
्भावचित्र ्
निज विचार ्
छाया चित्र में कला और की सद सम,,
ईश्वरीय शक्ति से, ही भव्य आकाशीय पिंड की ,,
अनेकानेक अमृत बरसाती पूर्णमासी गहराईयों
और अमावस्या की रात काली घनघोर अंधेरा में आंखों में,
सामान्य मनुष्य मनुज देह में विलीन नींद का छा जाना ही ,
जिंदगी की मानसिक रूप से अर्ध चेतना ऊंघना ,,
इत्यादि क़िया क़ियात्मक तथ्यों पर निष्ठा से सजाया गया है ।।
धंरती से अपनी दिशा लेकर अग्रसर हो जाते,,
नभमण्डल से औषधीय गुणों से,
युक्त पादप प्रजातियां प्रजनन क्षमता जन मन जन सो मोहि
पावा मोहि जानि शरण जन दशरथ श्रापित हुए,
श्रवण कुमार वध अर्ध चैतन्य हुए दशरथ श्रापित बने ,,
श्रवण कुमार पूत्र वृध्दमातृपितृ के श्राप से,
कर्म भूमि पर कारण बने रामवनवास जगत में
एक मर्यादा पुरुषोत्तम नरलीला कर जनमानस में
एक सजग और सचेत कर्तव्यपूर्ण आदर्श आधार बने।।
यही सही और सटीक कल्पना ही छाया चित्र में दिखाया गया,
जलवा जनजीवन जनजाति और नर, मुनि श्रृषि, संन्यासी,
वानप्रस्थी,योगी, वानर कपि भजै सदा ही जय जयमानव कल्याण ही
जिंदगी में एक जीवंत प्रयास करें जनसेवा ही मानव सेवा है।।
्््कवि शैलेंद्र आनंद ्
30जनवरी 2025
©Shailendra Anand
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