एक बाग हैं अनोखा,
जिसके माली हैं हम,
खिल रही हैं कुछ कलियां,
पहले से खिले हुए हैं कुछ फूल,
नाजुक कुछ इतने,
महज फूंक से भी,
जमीं पर आ गिरे,
कुछ कठोर इस कदर,
आ जाए तूफान भी तो,
टस से मस न हो,
मुख मोड़ना हैं,
किसी का,
करनी हैं जगह में,
तब्दीली किसी की,
मिल पाए सबको जरूरतों से,
खाद, मिट्टी, धूप, हवा, पानी,
सींचने की ये कला हैं सीखनी।
©Ruchi Jha
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