मोहब्बत में कहां कौंन कितना खरा उतरता है
यहाँ ज़रूरत के हिसाब से लिबास बदल लिए जाते हैं
मुकर जाते हैं हर रोज़ लोग अपनी ही बात से
सच का आईना दिखा कर झूठ का पर्दा फ़ाश कर जाते हैं
सच की झलक झूठ से भी झलक जाती है
सच आसमान में कहकशां से बिखर जाते हैं
मोहब्बत सिर्फ़ जिस्म को पाना नहीं है दोस्तों
रूह को जो छू ले ,अब ऐसे हमसफर कहाँ मिल पाते हैं
मन के दरख़्तों पर लिख जाते हैं पहले नाम अपना
फ़िर बाद में ख़रोंच कर सब मिटा दिए जाते हैं
मोहब्बत एक चाहत है,तड़पन है,बेशकीमती तोहफ़ा है
बाद में यही सब के सब फना हो जाते हैं
©Richa Dhar
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