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सत्ता के खेल में उलझा सब सियासी दांव, जनता के सपनों का टूट गया ठांव। नेताओं की चालों में बिखरती उम्मीदें, महाराष्ट्र देखे कब सजेगी नई तस्वीरें। ©Balwant Mehta

#कविता #maharashtra  सत्ता के खेल में उलझा सब सियासी दांव,
जनता के सपनों का टूट गया ठांव।
नेताओं की चालों में बिखरती उम्मीदें,
महाराष्ट्र देखे कब सजेगी नई तस्वीरें।

©Balwant Mehta

#maharashtra

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राजनीति का आधुनिक रण राजनीति का रंगमंच अद्भुत है, जहां नायक विलेन से मजबूत है। वादों का जादू, भाषणों की बौछार, जनता का मन भरमाने का व्यापार। सत्ता के संग्राम में छल का खेल, नैतिकता का टूटता हर दिन पहरेदारी जेल। सपनों के सौदागर हर ओर खड़े, कुर्सी के खातिर रिश्ते भी पड़े। नीति-नियम सब कागज में सीमित, राजनीति के रण में धर्म भी विभाजित। जनता के मुद्दे चुनाव के बाद खो जाएं, राजनेताओं के वादे अधूरे रह जाएं। विकास की बात पर झगड़े का स्वर, जाति-धर्म में उलझा हर दर पर। चुनावी चक्रव्यूह का ऐसा प्रचार, सच छुपा, झूठ बना राजदार। हर कोई नेता, हर कोई ज्ञानी, पर कौन सुधारेगा जनता की कहानी? यह राजनीति है, व्यंग की मिसाल, जहां सत्ता की माया है सबसे बेमिसाल। ©Avinash Jha

#protest  राजनीति का आधुनिक रण

राजनीति का रंगमंच अद्भुत है,
जहां नायक विलेन से मजबूत है।
वादों का जादू, भाषणों की बौछार,
जनता का मन भरमाने का व्यापार।

सत्ता के संग्राम में छल का खेल,
नैतिकता का टूटता हर दिन पहरेदारी जेल।
सपनों के सौदागर हर ओर खड़े,
कुर्सी के खातिर रिश्ते भी पड़े।

नीति-नियम सब कागज में सीमित,
राजनीति के रण में धर्म भी विभाजित।
जनता के मुद्दे चुनाव के बाद खो जाएं,
राजनेताओं के वादे अधूरे रह जाएं।

विकास की बात पर झगड़े का स्वर,
जाति-धर्म में उलझा हर दर पर।
चुनावी चक्रव्यूह का ऐसा प्रचार,
सच छुपा, झूठ बना राजदार।

हर कोई नेता, हर कोई ज्ञानी,
पर कौन सुधारेगा जनता की कहानी?
यह राजनीति है, व्यंग की मिसाल,
जहां सत्ता की माया है सबसे बेमिसाल।

©Avinash Jha

#protest

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तुम गरीब हो धर्म का झंडा उठा कर क्या कर लोगे अमीर होते तुम या रोजगार से जुड़े होते तो शायद सड़को पर नही होते और कभी ना झंडा उठाये,तपती धूँप मे झूलस्ते हुये होते नारे लगाते हुये, गले को फाड़ कर कभी ना प्यासे होते धहाड़ी मजदूर से भी कम मे यूँ खुद को ना सताये होते नशे की लत होगी ज़रूर ही तभी तो सब झेल गये यूँ एक अपनी "तलब" के लिये खुद को खतरे मे डाल गये ये तलब होगी शायद दिमाग मे भरे गौबर की तुम मरो कटो सड़को पर वो ठंडक ले AC की चलो अब आता हुं उस श्र्णी पर जो सम्पन्न है मगर सत्ता का लोभ उसे है उसे सत्ता का टट्टू बनना है और समाज मे एक रौब कायम करना है अब इन्हे चन्दे से गरीबो की भीड़ जुटाना है àऔर खुद की गाड़ी पर एक सत्ताधारी झंडा लगाना है कौन है वो जिनके लिये तुम बारूद के ढ़ेर पर हो तुम मे भर कर धर्म की चिंगारी खुद कुर्सी पर ये शेर है सड़को पर तुम्हे उतार कर खुद क्यूँ ज़मी पर नही आते तुम्हे शिकार बना कर ये सत्ता की रोटी खाते किस को किस से डर किस का मजहब खतरे में कौंन बताये कौन तय करे कौन सही पर मौन है तुम्हारे मन मे भरे ये मैल दुसरे धर्म के लिये खुद पीते साथ मे कोफी जायें शादियो मे एक साथ और खाये साथ मे कीमा बौटी तुम्हारे लिये सिर्फ है इन्होने दी है वैधानिक चेतवानी खतरे मे हो तुम ऐसा डरा कर ही इन्हे मिलेगी सत्ता की चाशनी -जय हिन्द ©Ali Rashid Hasrat

#Politics #Quotes  तुम गरीब हो धर्म का झंडा उठा कर क्या कर लोगे 
अमीर होते तुम या रोजगार से जुड़े होते तो शायद सड़को पर नही होते 
और कभी ना झंडा उठाये,तपती धूँप मे झूलस्ते हुये होते 
नारे लगाते हुये, गले को फाड़ कर कभी ना प्यासे होते 
धहाड़ी मजदूर से भी कम मे यूँ खुद को ना सताये होते 
नशे की लत होगी ज़रूर ही तभी तो सब झेल गये 
यूँ एक अपनी "तलब" के लिये खुद को खतरे मे डाल गये 
ये तलब होगी शायद दिमाग मे भरे गौबर की 
तुम मरो कटो सड़को पर वो ठंडक  ले AC की  
चलो अब आता हुं उस श्र्णी पर जो सम्पन्न है मगर 
सत्ता का लोभ उसे है 
उसे सत्ता का टट्टू बनना है और समाज मे एक रौब कायम करना है 
अब इन्हे चन्दे से गरीबो की भीड़ जुटाना है
àऔर खुद की गाड़ी पर एक सत्ताधारी झंडा लगाना है 
कौन है वो जिनके लिये तुम बारूद के ढ़ेर पर हो 
तुम मे भर कर धर्म की चिंगारी खुद कुर्सी पर ये शेर है 
सड़को पर तुम्हे उतार कर खुद क्यूँ ज़मी पर नही आते 
तुम्हे शिकार बना कर ये सत्ता की रोटी खाते 
किस को किस से डर किस का मजहब खतरे में 
कौंन बताये कौन तय करे कौन सही पर मौन है 
तुम्हारे मन मे भरे ये मैल दुसरे धर्म के लिये 
खुद पीते साथ मे कोफी
जायें शादियो मे एक साथ और खाये साथ मे कीमा बौटी
तुम्हारे लिये सिर्फ है इन्होने दी है वैधानिक चेतवानी 
खतरे मे हो तुम ऐसा डरा कर ही इन्हे मिलेगी सत्ता की चाशनी 
-जय हिन्द

©Ali Rashid Hasrat

#Politics

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#election #protest  चुने चुनाए बिक जाते हैं पच्चीस पचास के खोखे में 
चुन ने वाले रह जाते हैं बस पांच कीलो के धोखे में

©Naushad Nasar

#protest

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#protest  आप जरा मुझे अपने बारे में बताइए,
कैसे आप थे और कहा आप आ गए।
एक चुनाव जीत के अमीर हो गए,
गरीबों का हक छीन के नायक बन गए।
फालतू की बाते कर बहेश ना कीजिए,
आपके बेटे की स्कूल कॉलेज का नाम बताइए।
यह भूख से लोग कितने मार रहे,
आप बस महगाई की दर नीचे बताईए।
खुद पेड़ पौधों के आलीशान घर में बैठिए,
आइए जहरीली हवा के दम ले कर बताइए।
हजार रुपिया गरीब को बाट के,
आप अपने बैंको में करोड़ों छपवाईए।
खौफ अब कहा रहा आप लोगो को,
दौलत खुद की बैच के कभी हम बताइए।
शान शौकत से आप लाल बत्ती में घूमिए,
एक दिन बिना बिजली के दिन गुजारिए।
लिखने को मन तो बहुत करता है,
खुद कभी खुद को गाली देख के बताइए।
और 'हर्ष' जैसे लाखो से जूता खाइए,
खुदको रखवाला बता के खुदको लुटाइए।

©Harsh Patel

#protest

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राजनीति का खेल जिसके पास पैसा उसकी सरकार बस । 28/11/23 ⏰4:04 p. m. @ubaidakhatoon✍️ ©Ubaida khatoon Siddiqui

#विचार #Ubaidakhatoon #ubaidawrites #Politics #protest  राजनीति का खेल

जिसके पास पैसा 
उसकी सरकार बस । 
28/11/23
⏰4:04 p. m. 
@ubaidakhatoon✍️

©Ubaida khatoon Siddiqui
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