तुम गरीब हो धर्म का झंडा उठा कर क्या कर लोगे
अमीर होते तुम या रोजगार से जुड़े होते तो शायद सड़को पर नही होते
और कभी ना झंडा उठाये,तपती धूँप मे झूलस्ते हुये होते
नारे लगाते हुये, गले को फाड़ कर कभी ना प्यासे होते
धहाड़ी मजदूर से भी कम मे यूँ खुद को ना सताये होते
नशे की लत होगी ज़रूर ही तभी तो सब झेल गये
यूँ एक अपनी "तलब" के लिये खुद को खतरे मे डाल गये
ये तलब होगी शायद दिमाग मे भरे गौबर की
तुम मरो कटो सड़को पर वो ठंडक ले AC की
चलो अब आता हुं उस श्र्णी पर जो सम्पन्न है मगर
सत्ता का लोभ उसे है
उसे सत्ता का टट्टू बनना है और समाज मे एक रौब कायम करना है
अब इन्हे चन्दे से गरीबो की भीड़ जुटाना है
àऔर खुद की गाड़ी पर एक सत्ताधारी झंडा लगाना है
कौन है वो जिनके लिये तुम बारूद के ढ़ेर पर हो
तुम मे भर कर धर्म की चिंगारी खुद कुर्सी पर ये शेर है
सड़को पर तुम्हे उतार कर खुद क्यूँ ज़मी पर नही आते
तुम्हे शिकार बना कर ये सत्ता की रोटी खाते
किस को किस से डर किस का मजहब खतरे में
कौंन बताये कौन तय करे कौन सही पर मौन है
तुम्हारे मन मे भरे ये मैल दुसरे धर्म के लिये
खुद पीते साथ मे कोफी
जायें शादियो मे एक साथ और खाये साथ मे कीमा बौटी
तुम्हारे लिये सिर्फ है इन्होने दी है वैधानिक चेतवानी
खतरे मे हो तुम ऐसा डरा कर ही इन्हे मिलेगी सत्ता की चाशनी
-जय हिन्द
©Ali Rashid Hasrat
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