White साल की शुरुआत कुछ खास नहीं,
फिर भी उम्मीदें थीं आसमानी सही।
मगर देखा जब चेहरों को पास,
हर नक़ाब के पीछे छिपा था एक राज़।
मुस्कानों में थी साजिशों की लकीर,
बातों में झलकती थी चालाकी की तीर।
जो कल थे अपने, आज पराए लगे,
हर रिश्ता मानो सौदे के साए लगे।
वो जो रोशनी थे, अब धुंधले हुए,
वक़्त के साथ जाने क्यों बदले हुए?
नए साल में नए रंग दिखे,
पर चेहरों पे बस नक़ाब दिखे।
पर मैं फिर भी उम्मीद रखूँ,
खुद को सच्चाई की लौ में रखूँ।
भले ही दुनिया बदलती रहे,
मैं अपने उसूलों पे चलता रहूँ।
©Naveen Dutt
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