Shilpa Yadav

Shilpa Yadav Lives in Pratapgarh City, Uttar Pradesh, India

जब तक हौंसलों की उडान है जिंदगी में न कहीं विराम है।।

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White #Dedicatedtomybrother #(ANOOPPANDEY) मैं बहुत दूर तुमसे पर तुम मेरे एहसासों में रहते हो मन प्रसन्नचित होता जब मुझको छुटकी कहते हो मैं रहूं भले ही अब कोसों दूर ह्रदय में तुम बसते हो सुनो न भैया ये भाव बड़े ही निर्मल अद्भत लगते है जीवन है संग्राम नही विदित है अब हम अंजान नहीं कुत्सित समाज ढूंढ रहा है प्रयास है पर पहचान नही मैं जानती मेरे रिश्ते भले ही न रक्त संबंधों वाले है पर जो हैं उसको भी कहां सभी निभाने वाले हैं।। तुम समय गंवाओं चर्चाओं में मोर्चा का नाम नहीं मैं खुश हूं अपनी बगियां में जहां पापा अथाह प्रेम मां का लाड मेरे भैया का पनपता है दुलार कही।। ©Shilpa Yadav

#Dedicatedtomybrother #shilpayadavpoetry #कविता #GoodMorning #nojotohindi  White #Dedicatedtomybrother #(ANOOPPANDEY)
मैं बहुत दूर तुमसे पर तुम मेरे एहसासों में रहते हो
मन प्रसन्नचित होता जब मुझको छुटकी कहते हो
मैं रहूं भले ही अब कोसों दूर ह्रदय में तुम बसते हो
सुनो न भैया ये भाव बड़े ही निर्मल अद्भत लगते है
जीवन है संग्राम नही विदित है अब हम अंजान नहीं
कुत्सित समाज ढूंढ रहा है प्रयास है पर पहचान नही
मैं जानती मेरे रिश्ते भले ही न रक्त संबंधों वाले है
पर जो हैं उसको भी कहां सभी निभाने वाले हैं।।
तुम समय गंवाओं चर्चाओं में मोर्चा का नाम नहीं
मैं खुश हूं अपनी बगियां में जहां पापा अथाह प्रेम
मां का लाड मेरे भैया का पनपता है दुलार कही।।

©Shilpa Yadav

White विभावरी में विभाकर का रूप निखरता हैं भला इससे कोई कहां औ क्यूं बिछडता हैं ©Shilpa Yadav

#shilpayadavpoetry #nojotoenglish #nojotohindi #shilpayadav #Quotes  White विभावरी में विभाकर का रूप निखरता हैं
भला इससे कोई कहां औ क्यूं बिछडता हैं

©Shilpa Yadav

White जर्रे जर्रे की जब जर्जरता देखी महरून होते गए तो सब्र न देखी बेवजह बिखर गई उम्मीदें जब किसी ने न मेरी उत्सुकता देखी।। ©Shilpa Yadav

#nojotohindi #shilpayadav #good_night #Quotes  White जर्रे जर्रे की जब जर्जरता देखी 
महरून होते गए तो सब्र न देखी
बेवजह बिखर गई उम्मीदें जब 
किसी ने न मेरी उत्सुकता देखी।।

©Shilpa Yadav

White बिखरे हुए हैं जमीं पर बहुत से खिलौने आती नहीं हया खेलते हुए खेल ये घिनौने कितने लाडों से पाला था पापा ने मेरे मां ने दुलारा था सांझ और सवेरे आस्मां के तारों से जब भी पूछा था मैंने हंसते हुए रूप को निखारा था उसने चीखती आवाज कैसे फिर से दफन हो गई रंग बिरंगों से थी फिर कफन हो गई बढ़ने लगी दरिंदगी अब मौन हो गई लेते थे नाम स्वयं अब तो कौन हो गई। । ©Shilpa Yadav

#shilpayadavpoety #good_night  White  बिखरे हुए हैं जमीं पर बहुत से खिलौने 
आती नहीं हया खेलते हुए खेल ये घिनौने

कितने लाडों से पाला था पापा ने मेरे
मां ने दुलारा था सांझ और सवेरे

आस्मां के तारों से जब भी पूछा था मैंने
हंसते हुए रूप को निखारा था उसने

चीखती आवाज कैसे फिर से दफन हो गई 
रंग बिरंगों से थी फिर कफन हो गई
 
बढ़ने लगी दरिंदगी अब मौन हो गई 
लेते थे नाम स्वयं अब तो कौन हो गई। ।

©Shilpa Yadav

White अरे तुम सुसुप्त से प्रदर्शित होते हो ,लेखनी मुरझाई सी लगती है क्या लिखे इसी सोच में ,बड़ी अलसाई सी लगती है विरह बचा है या श्रृंगार का संयोग वियोग अलंकृत होते होते संधियां हो जाती अनकही बातों और मासूम मुस्कुराहट इतर के चक्कर में तितर बितर हो जाती निहारती कभी नहर या जलकुंभी ये जीवन की परछाई सी लगती है मैं में अहम हैया बिखर रहा भरी ओज है पर तडप रहा कपाट के पीछे से आवाज आती दंभी समाज के दर्पणों के चक्कर में पडें सारे मायने अब खोते खोते जीवन की सच्चाई भरी दुपहरी सी देखा है छोटे से बडे होते होते आशा है या उन्माद बचा है खोई अस्मिता या कायम है तुच्छ या वृहद प्रमाण बचा है बड़ी होती बातें जहां जहां मुरझाये से प्रसून उपवन के मन झूम उठे निर्झल भाव से ऐसी अब सेवा भाव कहां ©Shilpa Yadav

#shilpayadavpoetry #कविता #nojotohindi #hindi_diwas #अरे  White अरे तुम सुसुप्त से प्रदर्शित होते हो
,लेखनी मुरझाई सी लगती है
क्या लिखे इसी सोच में
,बड़ी अलसाई सी लगती है
विरह बचा है या श्रृंगार का संयोग वियोग
अलंकृत होते होते संधियां हो जाती
अनकही बातों और मासूम मुस्कुराहट 
इतर के चक्कर में तितर बितर हो जाती
निहारती कभी नहर या जलकुंभी
ये जीवन की परछाई सी लगती है
मैं में अहम हैया बिखर रहा
भरी ओज है पर तडप रहा
कपाट के पीछे से आवाज आती
दंभी समाज के दर्पणों के चक्कर में पडें
सारे मायने अब खोते खोते
जीवन की सच्चाई भरी दुपहरी सी
देखा है छोटे से बडे होते होते
आशा है या उन्माद बचा है
खोई अस्मिता या कायम है
तुच्छ या वृहद प्रमाण बचा है
बड़ी होती बातें जहां जहां
मुरझाये से प्रसून उपवन के
मन झूम उठे निर्झल भाव से
ऐसी अब सेवा भाव कहां

©Shilpa Yadav

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 White हम ये किस दौर में हैं 
सब अपनी होड में हैं
अनायास ही मांग रहे
इनकी भूख और में हैं
इन सबमें पिस रही ये
मेरी मासूम सी लेखनी
जिसकी स्याही सूखी
पर तेजस का प्रतीक है
बिजलियां कडकती हैं
चांदनी में चारों ओर 
उजालों को बिखेरती हैं
संयम सी प्रतीत होती
पर सुनो तो शिल्पा
ये रोज की आवाजाही
ख्यालों में ख्याल का आना
कुछ कुरेदकर और
चले जाना, हां यै
आखिर कब तक चलेगा
 कटाक्ष लिखा नहीं जाता
सत्यता में जिया नहीं जाता
चलते चलते थक गई हूं
समाज के दर्पण को उचित
या अनुचित कह सकूं
उसके लिए बचपन से ही
हम सब मौन रहे 
कर्तव्य है जिम्मेदारी भी
इन सबसे इतर फिर 
वहीं अटके पडें है कि
हम ये किस दौर में हैं

©Shilpa Yadav

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