Unsplash आजकल लिख रही हू मनमर्जियां अपनी सच कह नही | हिंदी Poetry

"Unsplash आजकल लिख रही हू मनमर्जियां अपनी सच कह नहीं सकती तो झूठ उधार लेती हूं बेशक मैं दर्द ए मुरीद सी भूल जाऊं खुदको अपने शब्दों से लोगों को सुधार देती हूं तरबियत इतनी कि तबियत खराब कर दूं कह दो जरा तो अपनी न सही दूसरों की भी जीवनी को पन्ने पर उतार देती हूं मैं वो शख्श हूं जिसका जमीर जिंदा है सच कह नहीं रकती तो झूठ उधार लेती हूं ©Shilpa Yadav"

 Unsplash आजकल लिख रही हू मनमर्जियां अपनी
सच कह नहीं सकती तो झूठ उधार लेती हूं
बेशक मैं दर्द ए मुरीद सी भूल जाऊं खुदको
अपने शब्दों से लोगों को सुधार देती हूं
तरबियत इतनी कि तबियत खराब कर दूं
कह दो जरा तो अपनी न सही दूसरों की
भी जीवनी को पन्ने पर उतार देती हूं
मैं वो शख्श हूं जिसका जमीर जिंदा है
सच कह नहीं रकती तो झूठ उधार लेती हूं

©Shilpa Yadav

Unsplash आजकल लिख रही हू मनमर्जियां अपनी सच कह नहीं सकती तो झूठ उधार लेती हूं बेशक मैं दर्द ए मुरीद सी भूल जाऊं खुदको अपने शब्दों से लोगों को सुधार देती हूं तरबियत इतनी कि तबियत खराब कर दूं कह दो जरा तो अपनी न सही दूसरों की भी जीवनी को पन्ने पर उतार देती हूं मैं वो शख्श हूं जिसका जमीर जिंदा है सच कह नहीं रकती तो झूठ उधार लेती हूं ©Shilpa Yadav

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