English
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White भूक के एहसास को शेर-ओ-सुख़न तक ले चलो या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो जो ग़ज़ल माशूक़ के जल्वों से वाक़िफ़ हो गई उस को अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो मुझ को नज़्म-ओ-ज़ब्त की तालीम देना ब'अद में पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो ख़ुद को ज़ख़्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोके में लोग इस शहर को रौशनी के बाँकपन तक ले चलो @adam gondvi . ©दिवाकर
दिवाकर
12 Love
White हिज्र के हाथ से अब ख़ाक पड़े जीने में दर्द इक और उठा आह नया सीने में ख़ून-ए-दिल पीने से जो कुछ है हलावत हम को ये मज़ा और किसी को नहीं मय पीने में दिल को किस शक्ल से अपने न मुसफ़्फ़ा रक्खूँ जल्वा-गर यार की सूरत है इस आईने में अश्क ओ लख़्त-ए-जिगर आँखों में नहीं हैं मेरे हैं भरे लाल ओ गुहर इश्क़ के गंजीने में शक्ल-ए-आईना 'ज़फ़र' से तो न रख दिल में ख़याल कुछ मज़ा भी है भला जान मिरी लेने में @bahadur shah zafar . ©दिवाकर
15 Love
Unsplash मुझ पे हैं सैकड़ों इल्ज़ाम मिरे साथ न चल तू भी हो जाएगा बदनाम मिरे साथ न चल तू नई सुबह के सूरज की है उजली सी किरन मैं हूँ इक धूल भरी शाम मिरे साथ न चल अपनी ख़ुशियाँ मिरे आलाम से मंसूब न कर मुझ से मत माँग मिरा नाम मिरे साथ न चल तू भी खो जाएगी टपके हुए आँसू की तरह देख ऐ गर्दिश-ए-अय्याम मिरे साथ न चल मेरी दीवार को तू कितना सँभालेगा 'शकील' टूटता रहता हूँ हर गाम मिरे साथ न चल @shakeel azmi . ©दिवाकर
9 Love
White ज़ख़्म-ए-उम्मीद भर गया कब का क़ैस तो अपने घर गया कब का अब तो मुँह अपना मत दिखाओ मुझे नासेहो मैं सुधर गया कब का आप अब पूछने को आए हैं दिल मिरी जान मर गया कब का आप इक और नींद ले लीजे क़ाफ़िला कूच कर गया कब का मेरा फ़िहरिस्त से निकाल दो नाम मैं तो ख़ुद से मुकर गया कब का @jaun elia . . . ©दिवाकर
14 Love
White तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू गुलों से आती है ख़बर तुम्हारी भी अब दूसरों से आती है हमीं अकेले नहीं जागते हैं रातों में उसे भी नींद बड़ी मुश्किलों से आती है हमारी आँखों को मैला तो कर दिया है मगर मोहब्बतों में चमक आँसुओं से आती है इसी लिए तो अँधेरे हसीन लगते हैं कि रात मिल के तिरे गेसुओं से आती है ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया मोहब्बत ने कि तेरी याद भी अब कोशिशों से आती है @munavvar rana . . ©दिवाकर
White गए थे शौक़ से हम भी ये दुनिया देखने को मिला हम को हमारा ही तमाशा देखने को खड़े हैं राह चलते लोग कितनी ख़ामुशी से सड़क पर मरने वालों का तमाशा देखने को बहुत से आइना-ख़ाने हैं इस बस्ती में लेकिन तरसती है हमारी आँख चेहरा देखने को कमानों में खिंचे हैं तीर तलवारें हैं चमकी ज़रा ठहरो कहाँ जाते हो दरिया देखने को ख़ुदा ने मुझ को बिन-माँगे ये नेमत दी है 'मंज़र' तरसते हैं बहुत से लोग ममता देखने को @ manzar bhopali . . ©दिवाकर
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