White किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़बाँ क्यूँ हो
वो अपनी ख़ू न छोड़ेंगे हम अपनी वज़्अ क्यूँ छोड़ें
सुबुक-सर बन के क्या पूछें कि हम से सरगिराँ क्यूँ हो
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा
तो फिर ऐ संग-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यूँ हो
किया ग़म-ख़्वार ने रुस्वा लगे आग इस मोहब्बत को
न लावे ताब जो ग़म की वो मेरा राज़-दाँ क्यूँ हो
क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम
गिरी है जिस पे कल बिजली वो मेरा आशियाँ क्यूँ हो
निकाला चाहता है काम क्या ता'नों से तू 'ग़ालिब'
तिरे बे-मेहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यूँ हो
@ghalib
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©दिवाकर
#Ghalib