White राधा, मीरा और कृष्ण का प्यार
राधा का प्रेम बहता जल था, निर्मल, निस्वार्थ, गहरा,
कृष्ण के नाम में ही समाई, उसकी हर एक पहरा।
बिन बोले ही सब कह देती, स्नेह की मूक भाषा,
प्रेम में थी समर्पण की मूरत, न कोई आस, न अभिलाषा।
मीरा का प्रेम ज्वाला जैसी, तप कर जो कुंदन हुआ,
घूँट-घूँट में कृष्ण को पाया, हर कष्ट में आनंद छुआ।
राजमहल छोड़ बन गई साध्वी, प्रेम की अनूठी मिसाल,
कृष्ण को अपना बना लिया, भक्ति से लिखी नई ताल।
एक प्रेम था सखा-संगिनी सा, निःस्वार्थ और कोमल,
दूजा भक्ति की अग्नि में तपा, अनुराग से अडिग और अटल।
दोनों प्रेम अमर हो गए, काल के पृष्ठों में सुनहरे,
कृष्ण को दो रूपों में पाया, दो प्रेम की धारा गहरे।
राधा का प्रेम बहा संग यमुना, मीरा का प्रेम भक्ति में खो गया,
पर दोनों के हृदय में कृष्ण था, प्रेम अमर और सच्चा हो गया।
©Preeti Yadav
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