khan saad

khan saad Lives in Kuwait City, Al Asimah Governate, Kuwait

कोशिश कुछ लिखने की

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#nojatohindi #shyrilovers #nojotourdu #Kathakaar #arzhai  कुछ भी पास नहीं लुटा हुआ  ख़ज़ाना हूं मैं.. 
दर - बदर फिरता हुआ एक दीवाना हूं मैं..
मेरी कोई बात पे ऐतबार करता कहाँ है कोई... 
पागल हूं यही सबका बहाना हूं मैं...

©khan saad
 रात भर इक चांद का साया रहा..
अपनों के बीच रह कर भी पराया रहा..
रोशन किया था मैंने अपना समझ के घर..
उसी घर में बरसों पराया रहा...

©khan saad

रात भर इक चांद का साया रहा.. अपनों के बीच रह कर भी पराया रहा.. रोशन किया था मैंने अपना समझ के घर.. उसी घर में बरसों पराया रहा... ©khan saad

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 मुझको मेरे हिसाब से जीने नहीं दीया..
पानी पढ़ा था सामने पर पीने नहीं दीया..
क्या क्या गिला करूं जो जुल्म हुए हैं सब..
देते गए वो ज़ख़्म और सिलने  नहीं दीया

©khan saad

Saleha ashfaq @Anshu writer @Shalvi Singh @Ruchi Rathore Sudha Tripathi

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 एक शहर में जा बसा एक शहर को छोड़ कर..
रिश्ते नाते जो भी थे उन सभी को तोड़ कर...
कर लिया था उस घड़ी ही दूर जाऊंगा कहीं..
जिस घड़ी वो पास से गुज़रे नजरें अपनी मोड़ कर..

©khan saad
 बनते बनते  बात सारी बिगड़ गयी है..
जिस शहर में घर था उसका बस्ती अब वो उजड़ गई है..
हाल मेरा पूछ कर सब पूछते हैं हाल उसका.. 
कैसे कहूँ मैं सबको अब के वो मुझसे बिछड़ गई है.. 
बनते बनते बात सारी बिगड़ गयी है. 
था मिला कोई उससे तो पूछ बैठी हाल मेरा.. 
बता रहा था आकर मुझसे के हाल सुन कर तड़प गई है.. 
लौट आयें वो अगर तो बन जाएं सारी बात. 
वो बात जो बनते बनते बिगड़ गयी है...

©khan saad

बनते बनते बात सारी बिगड़ गयी है.. जिस शहर में घर था उसका बस्ती अब वो उजड़ गई है.. हाल मेरा पूछ कर सब पूछते हैं हाल उसका.. कैसे कहूँ मैं सबको अब के वो मुझसे बिछड़ गई है.. बनते बनते बात सारी बिगड़ गयी है. था मिला कोई उससे तो पूछ बैठी हाल मेरा.. बता रहा था आकर मुझसे के हाल सुन कर तड़प गई है.. लौट आयें वो अगर तो बन जाएं सारी बात. वो बात जो बनते बनते बिगड़ गयी है... ©khan saad

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#Quotes  शहर अपना वो गाँव अपना वो बातें अपने गाँव की.
लगे वो पेड़ अंगन में वो बातें उनकी छाँव की..
घर में चलती माँ जब भी वो आवाज़ें उनके पाँव की..
वो बरसात का पानी और उसमे चलती नावों की..
शहर जाते हुए ली थी जो माँ ने बातें उन बलाओं की..
मुझको अब वो सब बातें बहुत याद आती हैं.
ना जाने क्यूँ वो मुझको आकर रुलाती हैं..

©khan saad

शहर अपना वो गाँव अपना वो बातें अपने गाँव की. लगे वो पेड़ अंगन में वो बातें उनकी छाँव की.. घर में चलती माँ जब भी वो आवाज़ें उनके पाँव की.. वो बरसात का पानी और उसमे चलती नावों की.. शहर जाते हुए ली थी जो माँ ने बातें उन बलाओं की.. मुझको अब वो सब बातें बहुत याद आती हैं. ना जाने क्यूँ वो मुझको आकर रुलाती हैं.. ©khan saad

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