काफी उतार-चढ़ाव भरा साल था ,
कभी आंखों में आंसुओं का सैलाब था ,
तो कभी मुस्कुराहट से चेहरा गुजारता था ,
कभी इस जमाने में अकेला बैठा था ,
तो कभी अकेले बैठे जमाना साथ था ,
कहीं पीछे अपनों का साथ छूटा था ,
शायद परायो का मिलना लिखा था ,
काफी उतार-चढ़ाव भरा साल था ,
जहां दस साल की यादों का पिटारा था ,
उसे छोड़ना भी था ,
और
एक नई किताब को खोलना भी था ,
एक नए शहर को चुनना था ,
अपने शहर को भूल जाना था ,
कभी खुद से लड़ना था ,
तो कभी खुद के लिए लड़ना था ,
काफी उतार-चढ़ाव भरा साल था ,
काफी उतार चढ़ाव भरा साल था ।।
©ऋषभ वर्मा (R.V.)
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