White ये वक्त जो..... ---------------- ये वक्त ज | हिंदी Poetry

"White ये वक्त जो..... ---------------- ये वक्त जो गुजर रहा है,,, हाथों से रेत की तरह फिसल रहा है, कसती हूँ ;मुट्ठी को जितना- उतनी तेजी से निकल रहा है, मन होकर विकल मेरा उससे ये याचना कर रहा है कि- थोड़ा- सा थम जाओ ना ;इतनी भी क्या जल्दी है! शेष तो अभी कहाँ,,,! कृत्यों की कतार अभी बहुत ही लम्बी है,,,! जीवन- पथ की ये सड़क अभी तो बहुत ही कच्ची है। खुश होना है; खुश करना है, जीवन के उद्देश्यों को पूरा करना है, मानव की इस आकाशगंगा का सूरज मुझको बना है। चलो! तुम थमो नहीं, लेकिन रफ्तार धीमी तो कर सकते हो,,, कार्यों को सिद्ध करने में सहयोग तो कर सकते हो। हौसले में तो है; कमी नहीं , चल भी रही हूंँ तेज ;लेकिन अपनों से थोड़ी सी अपनेपन की प्रतीक्षा है। आएगा वह दिन भी जब तुम- स्वयं को मुझमें पा कर इतराओगें, खुश हो जाओगे जब तुम; मेरे नाम से भी पुकारे जाओगे। थोड़ा- सा थम जाओ ना ;इतनी भी क्या जल्दी है! शेष तो अभी कहाँ,,,! कृत्यों की कतार अभी बहुत ही लम्बी है....! रियंका आलोक मदेशिया पडरौना, कुशीनगर ,उत्तर प्रदेश ©Riyanka Alok Madeshiya"

 White ये वक्त जो..... 
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ये वक्त जो गुजर रहा है,,, 
हाथों से रेत की तरह फिसल रहा है, 
कसती हूँ ;मुट्ठी को जितना-
उतनी  तेजी से निकल रहा है, 
मन होकर विकल मेरा
उससे ये याचना कर रहा है कि-
थोड़ा- सा थम जाओ ना ;इतनी भी क्या जल्दी है!
शेष तो अभी कहाँ,,,! 
कृत्यों की कतार अभी बहुत ही लम्बी है,,,! 
जीवन- पथ की ये सड़क अभी तो बहुत ही कच्ची है। 
खुश होना है; खुश करना है, 
जीवन के उद्देश्यों को पूरा करना है, 
मानव की इस आकाशगंगा का सूरज मुझको बना है। 
चलो! तुम थमो नहीं,
लेकिन रफ्तार धीमी तो कर सकते हो,,, 
कार्यों को सिद्ध करने में सहयोग तो कर सकते हो। 
हौसले में तो है; कमी नहीं , 
चल भी रही हूंँ तेज ;लेकिन अपनों से थोड़ी सी अपनेपन की प्रतीक्षा है। 
आएगा वह दिन भी जब तुम-
स्वयं को मुझमें पा कर इतराओगें, 
खुश हो जाओगे जब तुम; मेरे नाम से भी पुकारे जाओगे। 
थोड़ा- सा थम जाओ ना ;इतनी भी क्या जल्दी है! 
शेष तो अभी कहाँ,,,! 
कृत्यों की कतार अभी बहुत ही लम्बी है....!

रियंका आलोक मदेशिया
पडरौना, कुशीनगर ,उत्तर प्रदेश

©Riyanka Alok Madeshiya

White ये वक्त जो..... ---------------- ये वक्त जो गुजर रहा है,,, हाथों से रेत की तरह फिसल रहा है, कसती हूँ ;मुट्ठी को जितना- उतनी तेजी से निकल रहा है, मन होकर विकल मेरा उससे ये याचना कर रहा है कि- थोड़ा- सा थम जाओ ना ;इतनी भी क्या जल्दी है! शेष तो अभी कहाँ,,,! कृत्यों की कतार अभी बहुत ही लम्बी है,,,! जीवन- पथ की ये सड़क अभी तो बहुत ही कच्ची है। खुश होना है; खुश करना है, जीवन के उद्देश्यों को पूरा करना है, मानव की इस आकाशगंगा का सूरज मुझको बना है। चलो! तुम थमो नहीं, लेकिन रफ्तार धीमी तो कर सकते हो,,, कार्यों को सिद्ध करने में सहयोग तो कर सकते हो। हौसले में तो है; कमी नहीं , चल भी रही हूंँ तेज ;लेकिन अपनों से थोड़ी सी अपनेपन की प्रतीक्षा है। आएगा वह दिन भी जब तुम- स्वयं को मुझमें पा कर इतराओगें, खुश हो जाओगे जब तुम; मेरे नाम से भी पुकारे जाओगे। थोड़ा- सा थम जाओ ना ;इतनी भी क्या जल्दी है! शेष तो अभी कहाँ,,,! कृत्यों की कतार अभी बहुत ही लम्बी है....! रियंका आलोक मदेशिया पडरौना, कुशीनगर ,उत्तर प्रदेश ©Riyanka Alok Madeshiya

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