कोई भी बात मेरे दिल से तो छुपाई न गई
लब रहे चुप मगर आँखों में समाई न गई
इक तुम कि बिता दिए इतने बसंत जानाँ
इक हम कि उम्र-ए-हिज्र ही बिताई न गई
बाद तेरे भी न मयस्सर इक पल का सुकूँ
बाद तेरे भी हँसी रूख़ पर सजाई न गई
वक़्त की आँधी ने चलाई कुछ ऐसी हवा
बात फिर बिगड़ी हुई हमसे बनाई न गई
तेरी रुख़्सती से जाँ यूँ बे-हिस हुआ दिल
कि भा गई ख़िज़ाँ फिर बहार लाई न गई
©Parastish
बे-हिस= Senseless, without feeling
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