"इक दौर-ए-कर्ब में अब सारा मिरा जहाँ है
बिन यार जल रही शब, दिन भी धुआँ धुआँ है
दर-दर भटक रहा हूँ मैं यार की फ़िकर में
मेरे ख़ुदा बता अब मेरी ज़िन्दगी कहाँ है.
मंज़िल नहीं रही अब जो मुंतज़िर हमारी
ईजाद मेरे दिल पर इक ज़ख्म का निशाँ है
आग़ाज़-ए-ज़िन्दगी से अंजाम-ए-ज़िन्दगी तक
कुछ और क्या सफ़र में बस दर्द दरमियाँ है
ज़ख़्मी हुआ हूँ मैं ख़ुद अपने फ़साद-ए-दिल से
इक दीद-ए-यार ख़ातिर मुश्किल में मेरी जाँ है।।
🙂🙂🙃🙂🙂
©एक अजनबी
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