"नामुमकिन सा है यहां समझना चालों को वक्त की ।
जिसने इसको जितना समझा उतना ही उलझता गया।।
उलझ कर रह गईं कई ज़िंदगी इस वक्त की बिसात पे।
लोग सोचते ही रह गए और ये चाल अपनी चलता गया।।
दुनिया बदल दी वक्त ने बस देखते ही देखते।
और कोई कुछ ना कर सका बस हाथ ही मलता गया
रिश्ते बदले नाते बदले नज़रें बदल गईं दुनिया की।
वक्त ने करवट क्या बदली हर इंसान बदलता गया।।
ना जानें कब बदल जाए क्या भरोसा वक्त का।
लोग अपना इसे समझते रहे ये हाथों से फिसलता गया।।
सीखा है बस यही सबक इस ज़िंदगी में आज तक।
खुश यहां वो ही है जो संग वक्त के ढलता गया।।
ना मुमकिन सा................... उलझता गया।।
©अभिलाष द्विवेदी (अकेला ) एक अनपढ़ शायर
"