White ग़ज़ल
मैं भी अजीब हूँ दिल में, किराए के मकान में रहता हूं।
उसकी मुहब्बत में पागल हूं, उसके मकान में रहता हूं।।
फ़ुर्कते गुजारनी हैं जमी पर कुछ दिन और ऐसा ही सही,
ख़बर नहीं हैं शहजादी को, मैं उसके खानदान में रहता हूं।।
वो इज़हार भी नहीं करता इश्क को, किसी भी तरह से,
मुझसे वो कहे तो सही, मैं तो इश्क़ के ऐलान में रहता हूं।
– संतोष तात्या
शोधार्थी
©tatya luciferin
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