पीले पड़ गए पन्नों पर सब लिखा है बिल्कुल वैसा ही, कागज के सिल्वटो के बीच मिट गए हैं
कुछ शब्द ।
अस्पष्ट अक्षरों को पढ़ सकती हूं, बिना रुके आज भी, बीते भर की बिंदी में समाई हुई हूं मैं ।
अरसे से इस पर्ची ने धूप नहीं देखी है डायरी के कोनों में छुपी है, यह यहां वहां ,ताकि इसे कोई ढूंढ ना ले और जान ना जाए मेरा हाल।
©Vandana Soni Patidar
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