Hill
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#शायरी #Hill  माँ
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ये दौलत, ये शोहरत और ये गुमाँ छोड़ देना।
कुछ ना बस मेरे हिस्से में मेरी माँ छोड़ देना।

जन्नत, इबादत, खुदा,दुआ हमनें कहाँ देखी है?
सारी हसरतें और शुकूँ के लिए मैंने माँ देखी है।

माँ तेरे बिना ये दुनिया वैसी ही लगती है जैसे,
जिस्म छोड़ दी किसी ने और जान ले ली हो।

थक कर वो शुकून तेरी आँचल में मिलता है,
 दुनिया दे दी किसी ने और पहचान ले ली हो।

ना कोई मजहब और ना कोई धाम चाहिए।
ना मस्जिद,मंदिर और ना कोई राम चाहिए।

सब कुछ ले लो मुझ से बिना किसी शर्त के,
बस मेरी  जिन्दगी में  बस मेरी  माँ चाहिए।
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~~~राजेश कुमार
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-16/01/2024

©Rajesh Kumar

#Hill

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#సస్పెన్స్  తెలియకపోయినా తెలిసినట్లు నటించే వారికి,నిజంగా తెలిసిన విషయాలు కూడా తెలియవని ప్రజలు భావిస్తారు.

©VADRA KRISHNA

*కూరల్

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#ఆలోచనలు  ఉన్నతులమని చెప్పుకొనేవారి ఆలోచనలు ఎప్పటికీ పరిణతి సాదించలేవు.వారివారి గొప్పతనాన్ని పైకి చెప్పకుండా దాచిపెట్టినప్పుడే వారి విలువ మరింత పెరుగుతుంది.

©VADRA KRISHNA

-లియోనార్డో డావిన్సీ

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पहाड़ की पीड़ा तेइस साल का उत्तराखंड कुछ इस तरह से बीत गया ! सत्ता की दौड़ में कभी कमल तो कभी हाथ जीत गया !! महफूज थे जो खेत खलियान उन सब को बंजर कर गया ! पुश्तैनी मकानों की नींव को पलायन से जर्जर कर गया !! पहाड़ों की रौनक और खुशियां गांव को सुनसान कर गया ! विकास भी पहाड़ों में आने से धरातल पर सचमुच डर गया !!! राज्य बनाया जिस मकसद से वह सपने में ही रह गया! विकास की दौड़ में पहाड़ों में पलायन बेचारा जीत गया !! ©Khyali Joshi

#Quotes #Hill  पहाड़ की पीड़ा

तेइस साल का उत्तराखंड कुछ इस तरह से बीत गया !
सत्ता की दौड़ में कभी कमल तो कभी हाथ जीत गया !!

महफूज थे जो खेत खलियान उन सब को बंजर कर गया !
 पुश्तैनी मकानों की नींव को पलायन से जर्जर कर गया !!

पहाड़ों की रौनक और खुशियां गांव को सुनसान कर गया !
विकास भी पहाड़ों में आने से धरातल पर सचमुच डर गया !!!

राज्य बनाया जिस मकसद से वह सपने में ही रह गया!
विकास की दौड़ में पहाड़ों में पलायन बेचारा जीत गया !!

©Khyali Joshi

#Hill

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#कविता #Hill  कविता : भोगलिप्सा

संकुचित है सोंच तेरी मानता तू क्यों नहीं?
सुप्त सब इन्द्रियाँ तेरी जागता तू क्यों नहीं?
आ रही अवसान वेला ज़िंदगी के दिवस की।
मोह-लोभ के बंधनों को तोड़ता तू क्यों नहीं?

छोड़कर यह मोह-माया छोड़ दो यह घर यहाँ।
साथ मेरे ही चलो तुम चलता है रहबर जहाँ।
दीवार घर की स्वयं ही के स्वेद से की तर जहाँ?
हो गए बच्चे बड़े जब तो तुम्हारा घर कहाँ?

सारे जैविक औ अजैविक होते हैं नश्वर यहाँ?
नर्क या फ़िर स्वर्ग से जाओगे परे, पर कहाँ?
सड़ता वह जल ही है देखो जो वहीं ठहरा रहा।
रहता वही उज्ज्वल-अदूषित जो सदा बहता रहा।

भोगने की अति लिप्सा, पाँव कब्र लटका रहा?
देखो मानव मन यहाँ है वस्तुओं में ही फँसा?
वस्तुएं होती अगर न सोंचो ये जाता कहाँ?
मौत ग़र होती न सच तो ये ठहर पाता कहाँ?

                      - शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR

#Hill

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#विचार  यार अब  से किसी भी व्यक्ति को 
पैसे से मदद करने के लिए 
दस बार जरुर सोचेंगे ,
क्योकि अभी तक कोइ भी 
वापस नहीं किया हैं।

©Ajit Kumar

यार अब से किसी भी व्यक्ति को पैसे से मदद करने के लिए दस बार जरुर सोचेंगे , क्योकि अभी तक कोइ भी वापस नहीं किया हैं। ©Ajit Kumar

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