मलय-सुगंधित अमराई ज्यों, सकल वात में रस घोली।
भोर सुनहरी से संध्या तक, कू - कू - कू कोयल बोली।
प्रेम और सौहार्द बनाकर सब रंगों में रंगने को,
हंँसी - ठिठोली लेकर आई, फिर से रंग भरी होली।
अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
प्रयागराज
(पूर्णत: मौलिक एवं स्वरचित)
आपको एवं आपके समस्त परिवार जनों को
आपसी प्रेम- सौहार्द ,भाईचारा
एवं
असीमित खुशी का प्रतीक
रंग-पर्व
होलिकोत्सव की
हार्दिक बधाइयाँ एवं वासंतिक शुभकामनाएँ!
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©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
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