परित्राणाय साधूनाम्
पाप अंध-तमस अधर्म अहंकारी के ज़ेवर हैं,
किसी से हार न मानना इस किस्म के तेवर हैं,
हज़ारों अपराध किये और सैकड़ों लाशें बिछाई,
तब भी सुध पापचारी को बिल्कुल भी नहीं आयी,
पर पत्नि को हरा नारी का बेझिझक अपमान किया,
अंजाम का ना सोचा क्रूरता का पैगाम दिया,
अविनाशी विष्णुरूप से भी ना पल भर डर ही लगा,
पूरे कुल का नाश होते देख भी अभिमानी का सर ना ही झुका,
फिर हुआ भीषण संग्राम जिसमें रावण का वध होना ही था,
धर्म विजय कर पाप समाप्त सत्य का कृत्य होना ही था,
जब जब धरती पर पापाचार होगा और प्राणियों को तरना होगा,
तब तब मर्यादा के राम को मनुष्य रूप धरना होगा,
तब तब मर्यादा के राम को मनुष्य रूप धरना होगा ।
©Rangmanch Bharat
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