कल राजा बनने वाले को आज वनवास जाना था, खुद से लिखा | हिंदी कविता

"कल राजा बनने वाले को आज वनवास जाना था, खुद से लिखा नाट्य खुद को निभाना था | वचन ही तो था, तोड देते... पर कर्तव्य का अर्थ सबको बताना था | इतने साल वन मे अपनो से दूर रहना था, अज्ञात मोड पर अंजानो का संहार करना था | कर्म ही तो था, छोड देते... पर धर्म का अर्थ सबको सिखाना था | रावण का दहन तो बस एक बहाना था, वैकुंठ मे रचा हुआ खेल खेलना था | अहंकार ही तो था, मुह मोड लेते... पर सम्मान का अर्थ सबको दिखाना था | ©Tejz0560"

 कल राजा बनने वाले को आज वनवास जाना था,
खुद से लिखा नाट्य खुद को निभाना था |
वचन ही तो था, तोड देते...
पर कर्तव्य का अर्थ सबको बताना था |

इतने साल वन मे अपनो से दूर रहना था,
अज्ञात मोड पर अंजानो का संहार करना था |
कर्म ही तो था, छोड देते...
पर धर्म का अर्थ सबको सिखाना था |

रावण का दहन तो बस एक बहाना था,
वैकुंठ मे रचा हुआ खेल खेलना था |
अहंकार ही तो था, मुह मोड लेते...
पर सम्मान का अर्थ सबको दिखाना था |

©Tejz0560

कल राजा बनने वाले को आज वनवास जाना था, खुद से लिखा नाट्य खुद को निभाना था | वचन ही तो था, तोड देते... पर कर्तव्य का अर्थ सबको बताना था | इतने साल वन मे अपनो से दूर रहना था, अज्ञात मोड पर अंजानो का संहार करना था | कर्म ही तो था, छोड देते... पर धर्म का अर्थ सबको सिखाना था | रावण का दहन तो बस एक बहाना था, वैकुंठ मे रचा हुआ खेल खेलना था | अहंकार ही तो था, मुह मोड लेते... पर सम्मान का अर्थ सबको दिखाना था | ©Tejz0560

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