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Unsplash चलो फिर से वही लौटे, जहां खुशियां थी, रौनक थी, बड़ी तंगी, गरीबी थी, मगर दिलों में चाहत थी। जहां पहली किरण आकर,मुंडेरों पे बैठ गाती थी महकती रागिनी संग संग दिलो को पास लाती थी जहां पनघट पर ठिठोली थी, चौपालों पर दीवाने थे छोटे घर से निकल के सब वही महफिल सजाते थे वहीं सावन के रिमझिम थी,वही झूले थे नग़्मे थे जहां मिट्टी कि खुशबु में सभी के दिल संवरते थे तालाबों में जमा पानी,रजत सा खूब चमकता था भागे बैलों के पीछे दिन,जरा सा भी न थकता था जहां त्यौहार कि खुश्बू सभी घर से निकलती थी जिसे मर्जी जहां खाए, नहीं दूरी झलकती थी कभी यारो के घर सोना,उन्हीं के घर ही खा लेना अम्मा कि रसोई में पहुंच हर बात कह देना ये सब खूब होता था , वहां बेखौफ रहते थे कोई बैरी नहीं होता ,सभी अपने हीं होते थे चलो फिर से वही लौटे, जहां रिश्ते न टूटे थे, जहां दौलत के पीछे भागते सपने न झूठे थे। चलो फिर से उसे जिएं, जहां क़ुदरत की बाहें थी, जहां सुकून थी हरसु मगर थोड़ी भी न आहें थी राजीव ©samandar Speaks

#कविता #camping  Unsplash चलो फिर से वही लौटे, जहां खुशियां थी, रौनक थी,
बड़ी तंगी, गरीबी थी, मगर दिलों में चाहत थी।
जहां पहली किरण आकर,मुंडेरों पे बैठ गाती थी
महकती रागिनी संग संग दिलो को पास लाती थी

जहां पनघट पर ठिठोली थी, चौपालों पर दीवाने थे
छोटे घर से निकल के सब वही महफिल सजाते थे
 वहीं सावन के रिमझिम थी,वही झूले थे नग़्मे थे
जहां मिट्टी कि खुशबु में सभी के दिल संवरते थे 

तालाबों में जमा पानी,रजत सा खूब चमकता था
भागे बैलों के पीछे दिन,जरा सा भी न थकता था
जहां त्यौहार कि खुश्बू सभी घर से निकलती थी
जिसे मर्जी जहां खाए, नहीं दूरी झलकती थी

कभी यारो के घर सोना,उन्हीं के घर ही खा लेना
अम्मा कि रसोई में पहुंच हर बात कह देना 
ये सब खूब होता था , वहां बेखौफ रहते थे 
कोई बैरी नहीं होता ,सभी अपने हीं होते थे

चलो फिर से वही लौटे, जहां रिश्ते न टूटे थे,
जहां दौलत के पीछे भागते सपने न झूठे थे।
चलो फिर से उसे जिएं, जहां क़ुदरत की बाहें थी,
जहां सुकून थी हरसु मगर थोड़ी भी न आहें थी
राजीव

©samandar Speaks

White अब घर घर में ये आग फैलाई जाएगी चुनावी,साल है,अदावत,सबसे निभाई जायेंगी सबको जमातों कौमों फिरको में बाटकर आग लगा कर घरों में आग से बुझाई जायेगी वतन के रहनुमाओं को मोहरों कि शकल देकर झूठी हमदर्दी से मुहब्बत दिखाई जायेगी मुफ़्त कि रोटियां बंटेगी घर गिरवी रख कर इस कदर हमारे कल कि बोली लगाई जायेगी झंडो तले बंटेगी नवजवानों कि जवानी फिर से पैर तोड़ कर आसमानों की अदा सिखाई जाएगी अब घर घर में ये आग फैलाई जाएगी चुनावी,साल है अदावत सबसे निभाई जायेंगी राजीव ©samandar Speaks

#कविता #diwali_wishes  White अब घर घर में ये आग फैलाई जाएगी
चुनावी,साल है,अदावत,सबसे निभाई जायेंगी

सबको जमातों कौमों फिरको में बाटकर
आग लगा कर घरों में आग से बुझाई जायेगी

वतन के रहनुमाओं को मोहरों कि शकल देकर
झूठी हमदर्दी से मुहब्बत दिखाई जायेगी 

मुफ़्त कि रोटियां बंटेगी घर गिरवी रख कर
इस कदर हमारे कल कि बोली लगाई जायेगी

झंडो तले बंटेगी नवजवानों कि जवानी फिर से
पैर तोड़ कर आसमानों की अदा सिखाई जाएगी 

अब घर घर में ये आग फैलाई जाएगी
चुनावी,साल है अदावत सबसे निभाई जायेंगी
राजीव

©samandar Speaks

#diwali_wishes अंजान @Satyaprem Upadhyay मनीष शर्मा @Poonam bagadia "punit" @Sandeep L Guru

18 Love

Unsplash ग़म और भी है मगर खुलासा कौन करे हर बात में मुस्कुरा देता हूं तमाशा कौन करे हर ज़ख़्म को दिया है चुपी का नाम मैंने बेवजह दर्द अपना किसी से साझा कौन करे जो दिल में चुभते हो सवालात शब भर उनपे सहर के गुनाहों का इशारा कौन करे जिन राहों पर उजालों का डर समाया हो उनमें अंधेरों के खौफ को नुमाया कौन करे तक़दीर जब लिखी है सियाही से बेरंग हीं फिर ख़्वाब के सुरज का दिखावा कौन करे जो लोग ख़ुद सौदाई हो, ग़फ़लत के बाजारों का उनसे यार ए वफ़ा का अब दावा कौन करे राजीव ©samandar Speaks

#कविता #library  Unsplash ग़म और भी है मगर खुलासा कौन करे
हर बात में मुस्कुरा देता हूं तमाशा कौन करे

हर ज़ख़्म को दिया है चुपी का नाम मैंने
बेवजह दर्द अपना किसी से साझा कौन करे

जो दिल में चुभते हो सवालात शब भर 
उनपे सहर के गुनाहों का इशारा कौन करे

जिन राहों पर उजालों का डर समाया हो
उनमें अंधेरों के खौफ को नुमाया कौन करे

तक़दीर जब लिखी है सियाही से बेरंग हीं 
फिर ख़्वाब के सुरज का दिखावा कौन करे

जो लोग ख़ुद सौदाई हो, ग़फ़लत के बाजारों का
उनसे यार ए वफ़ा का अब  दावा कौन करे
राजीव

©samandar Speaks

White ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता राजीव ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White  ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता 

ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते
न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते
बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता 
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता

झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है
बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं
इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता 
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता

बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं
इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं 
रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता
 ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता
राजीव

©samandar Speaks

#love_shayari मनीष शर्मा @Satyaprem Upadhyay Radhey Ray Poonam bagadia "punit" @Sandeep L Guru मनीष शर्मा @Satyaprem Upadhyay अंजान S

16 Love

White फ़लक पे चढ़ के भी ज़मीं से वास्ता रखिए, ख़ुदा मिले न मिले दिल में रास्ता रखिए। नसीब आए न आए सब्र साथ में रखिए, हर एक मोड़ पे रौशनी से वास्ता रखिए। ना ग़ुरूर हो कोई उल्फ़ते जहां के राहों में वफ़ा की मिट्टी से ज़र्रे को अपना बना रखिए। ख़ुशी के पल भी गर ग़मो के साथ हो आएं, मुस्कुराहटों के ताज को फिर भी सजा रखिए। जो पा लिए उसे ही बस अपना समझ लीजिए, ख़ुदा के हुक्म को दिल से हर पल दबा रखिए। हर एक सांस का बस यहां, एहतराम ए वफ़ा कीजे खुदाई के वसूलों से चारगों को जला रखिए ज़माना कैसा भी हो ,राह पर निशान दिखेंगे इंसानियत का अलम, दिल में थमा रखिए। राजीव ©samandar Speaks

#कविता #sad_quotes  White फ़लक पे चढ़ के भी ज़मीं से वास्ता रखिए,
ख़ुदा मिले न मिले दिल में रास्ता रखिए।

नसीब आए न आए सब्र साथ में रखिए,
हर एक मोड़ पे रौशनी से वास्ता रखिए।

ना ग़ुरूर हो कोई उल्फ़ते जहां के राहों में 
वफ़ा की मिट्टी से ज़र्रे को अपना बना रखिए।

ख़ुशी के पल भी गर ग़मो के साथ हो आएं,
मुस्कुराहटों के ताज को फिर भी सजा रखिए।

जो पा लिए उसे ही बस अपना समझ लीजिए,
ख़ुदा के हुक्म को दिल से हर पल दबा रखिए।

हर एक सांस का बस यहां, एहतराम ए वफ़ा कीजे 
खुदाई के वसूलों से चारगों को जला रखिए 

ज़माना कैसा भी हो ,राह पर निशान दिखेंगे 
इंसानियत का अलम, दिल में थमा रखिए।
राजीव

©samandar Speaks

White मैं किसान हूँ मैं किसान हूँ, धरती का बेटा, मेरे खून से सींचा हर खेत का टुकड़ा। सूरज की तपिश, चाँदनी की छांव, हर मौसम सहा,बदहाली में गुजारी हर शाम सुबह की पहली किरणों से लेकर रात तक, मेरे पसीने से उपजा जीवन का चमत्कार। पर मेरी झोली में, क्यों सूनापन है, मेरे हक़ के आसमान में अंधेरा घना है। बारिश कभी बनती मेरी दुश्मन, सूखा कभी तोड़ देता मेरा मन। फसलें लहलहाती हैं, पर खुशी नहीं, बाज़ार के भावों में मेरी हस्ती नहीं। कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है, मेरे सपनों को धुंधला बनाता है। कभी घर की छत गिर जाती है, कभी बच्चों की शिक्षा छूट जाती है। मैं वो हूँ, जो हर किसी का पेट भरता, पर मेरा ही जीवन क्यों तन्हा सा रहता? मेरे श्रम का मोल कब समझेगी ये दुनिया, मेरी पीड़ा कब महसूस करेगी ये धरती और गगन? मैं किसान हूँ, पर हार नहीं मानूँगा, अपने बच्चों को ये जालिम दौर दिखाऊँगा। फिर उगेगी उम्मीद की हरियाली, जब हर दिल में जागेगी मेरी कहानी। ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White मैं किसान हूँ
मैं किसान हूँ, धरती का बेटा,
मेरे खून से सींचा हर खेत का टुकड़ा।
सूरज की तपिश, चाँदनी की छांव,
हर मौसम सहा,बदहाली में गुजारी हर शाम 
सुबह की पहली किरणों से लेकर रात तक,
मेरे पसीने से उपजा जीवन का चमत्कार।
पर मेरी झोली में, क्यों सूनापन है,
मेरे हक़ के आसमान में अंधेरा घना है।
बारिश कभी बनती मेरी दुश्मन,
सूखा कभी तोड़ देता मेरा मन।
फसलें लहलहाती हैं, पर खुशी नहीं,
बाज़ार के भावों में मेरी हस्ती नहीं।
कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है,
मेरे सपनों को धुंधला बनाता है।
कभी घर की छत गिर जाती है,
कभी बच्चों की शिक्षा छूट जाती है।
मैं वो हूँ, जो हर किसी का पेट भरता,
पर मेरा ही जीवन क्यों तन्हा सा रहता?
मेरे श्रम का मोल कब समझेगी ये दुनिया,
मेरी पीड़ा कब महसूस करेगी ये धरती और गगन?
मैं किसान हूँ, पर हार नहीं मानूँगा,
अपने बच्चों को ये जालिम दौर दिखाऊँगा।
फिर उगेगी उम्मीद की हरियाली,
जब हर दिल में जागेगी मेरी कहानी।

©samandar Speaks

Unsplash चलो फिर से वही लौटे, जहां खुशियां थी, रौनक थी, बड़ी तंगी, गरीबी थी, मगर दिलों में चाहत थी। जहां पहली किरण आकर,मुंडेरों पे बैठ गाती थी महकती रागिनी संग संग दिलो को पास लाती थी जहां पनघट पर ठिठोली थी, चौपालों पर दीवाने थे छोटे घर से निकल के सब वही महफिल सजाते थे वहीं सावन के रिमझिम थी,वही झूले थे नग़्मे थे जहां मिट्टी कि खुशबु में सभी के दिल संवरते थे तालाबों में जमा पानी,रजत सा खूब चमकता था भागे बैलों के पीछे दिन,जरा सा भी न थकता था जहां त्यौहार कि खुश्बू सभी घर से निकलती थी जिसे मर्जी जहां खाए, नहीं दूरी झलकती थी कभी यारो के घर सोना,उन्हीं के घर ही खा लेना अम्मा कि रसोई में पहुंच हर बात कह देना ये सब खूब होता था , वहां बेखौफ रहते थे कोई बैरी नहीं होता ,सभी अपने हीं होते थे चलो फिर से वही लौटे, जहां रिश्ते न टूटे थे, जहां दौलत के पीछे भागते सपने न झूठे थे। चलो फिर से उसे जिएं, जहां क़ुदरत की बाहें थी, जहां सुकून थी हरसु मगर थोड़ी भी न आहें थी राजीव ©samandar Speaks

#कविता #camping  Unsplash चलो फिर से वही लौटे, जहां खुशियां थी, रौनक थी,
बड़ी तंगी, गरीबी थी, मगर दिलों में चाहत थी।
जहां पहली किरण आकर,मुंडेरों पे बैठ गाती थी
महकती रागिनी संग संग दिलो को पास लाती थी

जहां पनघट पर ठिठोली थी, चौपालों पर दीवाने थे
छोटे घर से निकल के सब वही महफिल सजाते थे
 वहीं सावन के रिमझिम थी,वही झूले थे नग़्मे थे
जहां मिट्टी कि खुशबु में सभी के दिल संवरते थे 

तालाबों में जमा पानी,रजत सा खूब चमकता था
भागे बैलों के पीछे दिन,जरा सा भी न थकता था
जहां त्यौहार कि खुश्बू सभी घर से निकलती थी
जिसे मर्जी जहां खाए, नहीं दूरी झलकती थी

कभी यारो के घर सोना,उन्हीं के घर ही खा लेना
अम्मा कि रसोई में पहुंच हर बात कह देना 
ये सब खूब होता था , वहां बेखौफ रहते थे 
कोई बैरी नहीं होता ,सभी अपने हीं होते थे

चलो फिर से वही लौटे, जहां रिश्ते न टूटे थे,
जहां दौलत के पीछे भागते सपने न झूठे थे।
चलो फिर से उसे जिएं, जहां क़ुदरत की बाहें थी,
जहां सुकून थी हरसु मगर थोड़ी भी न आहें थी
राजीव

©samandar Speaks

White अब घर घर में ये आग फैलाई जाएगी चुनावी,साल है,अदावत,सबसे निभाई जायेंगी सबको जमातों कौमों फिरको में बाटकर आग लगा कर घरों में आग से बुझाई जायेगी वतन के रहनुमाओं को मोहरों कि शकल देकर झूठी हमदर्दी से मुहब्बत दिखाई जायेगी मुफ़्त कि रोटियां बंटेगी घर गिरवी रख कर इस कदर हमारे कल कि बोली लगाई जायेगी झंडो तले बंटेगी नवजवानों कि जवानी फिर से पैर तोड़ कर आसमानों की अदा सिखाई जाएगी अब घर घर में ये आग फैलाई जाएगी चुनावी,साल है अदावत सबसे निभाई जायेंगी राजीव ©samandar Speaks

#कविता #diwali_wishes  White अब घर घर में ये आग फैलाई जाएगी
चुनावी,साल है,अदावत,सबसे निभाई जायेंगी

सबको जमातों कौमों फिरको में बाटकर
आग लगा कर घरों में आग से बुझाई जायेगी

वतन के रहनुमाओं को मोहरों कि शकल देकर
झूठी हमदर्दी से मुहब्बत दिखाई जायेगी 

मुफ़्त कि रोटियां बंटेगी घर गिरवी रख कर
इस कदर हमारे कल कि बोली लगाई जायेगी

झंडो तले बंटेगी नवजवानों कि जवानी फिर से
पैर तोड़ कर आसमानों की अदा सिखाई जाएगी 

अब घर घर में ये आग फैलाई जाएगी
चुनावी,साल है अदावत सबसे निभाई जायेंगी
राजीव

©samandar Speaks

#diwali_wishes अंजान @Satyaprem Upadhyay मनीष शर्मा @Poonam bagadia "punit" @Sandeep L Guru

18 Love

Unsplash ग़म और भी है मगर खुलासा कौन करे हर बात में मुस्कुरा देता हूं तमाशा कौन करे हर ज़ख़्म को दिया है चुपी का नाम मैंने बेवजह दर्द अपना किसी से साझा कौन करे जो दिल में चुभते हो सवालात शब भर उनपे सहर के गुनाहों का इशारा कौन करे जिन राहों पर उजालों का डर समाया हो उनमें अंधेरों के खौफ को नुमाया कौन करे तक़दीर जब लिखी है सियाही से बेरंग हीं फिर ख़्वाब के सुरज का दिखावा कौन करे जो लोग ख़ुद सौदाई हो, ग़फ़लत के बाजारों का उनसे यार ए वफ़ा का अब दावा कौन करे राजीव ©samandar Speaks

#कविता #library  Unsplash ग़म और भी है मगर खुलासा कौन करे
हर बात में मुस्कुरा देता हूं तमाशा कौन करे

हर ज़ख़्म को दिया है चुपी का नाम मैंने
बेवजह दर्द अपना किसी से साझा कौन करे

जो दिल में चुभते हो सवालात शब भर 
उनपे सहर के गुनाहों का इशारा कौन करे

जिन राहों पर उजालों का डर समाया हो
उनमें अंधेरों के खौफ को नुमाया कौन करे

तक़दीर जब लिखी है सियाही से बेरंग हीं 
फिर ख़्वाब के सुरज का दिखावा कौन करे

जो लोग ख़ुद सौदाई हो, ग़फ़लत के बाजारों का
उनसे यार ए वफ़ा का अब  दावा कौन करे
राजीव

©samandar Speaks

White ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता राजीव ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White  ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता 

ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते
न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते
बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता 
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता

झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है
बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं
इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता 
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता

बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं
इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं 
रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता
 ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता
राजीव

©samandar Speaks

#love_shayari मनीष शर्मा @Satyaprem Upadhyay Radhey Ray Poonam bagadia "punit" @Sandeep L Guru मनीष शर्मा @Satyaprem Upadhyay अंजान S

16 Love

White फ़लक पे चढ़ के भी ज़मीं से वास्ता रखिए, ख़ुदा मिले न मिले दिल में रास्ता रखिए। नसीब आए न आए सब्र साथ में रखिए, हर एक मोड़ पे रौशनी से वास्ता रखिए। ना ग़ुरूर हो कोई उल्फ़ते जहां के राहों में वफ़ा की मिट्टी से ज़र्रे को अपना बना रखिए। ख़ुशी के पल भी गर ग़मो के साथ हो आएं, मुस्कुराहटों के ताज को फिर भी सजा रखिए। जो पा लिए उसे ही बस अपना समझ लीजिए, ख़ुदा के हुक्म को दिल से हर पल दबा रखिए। हर एक सांस का बस यहां, एहतराम ए वफ़ा कीजे खुदाई के वसूलों से चारगों को जला रखिए ज़माना कैसा भी हो ,राह पर निशान दिखेंगे इंसानियत का अलम, दिल में थमा रखिए। राजीव ©samandar Speaks

#कविता #sad_quotes  White फ़लक पे चढ़ के भी ज़मीं से वास्ता रखिए,
ख़ुदा मिले न मिले दिल में रास्ता रखिए।

नसीब आए न आए सब्र साथ में रखिए,
हर एक मोड़ पे रौशनी से वास्ता रखिए।

ना ग़ुरूर हो कोई उल्फ़ते जहां के राहों में 
वफ़ा की मिट्टी से ज़र्रे को अपना बना रखिए।

ख़ुशी के पल भी गर ग़मो के साथ हो आएं,
मुस्कुराहटों के ताज को फिर भी सजा रखिए।

जो पा लिए उसे ही बस अपना समझ लीजिए,
ख़ुदा के हुक्म को दिल से हर पल दबा रखिए।

हर एक सांस का बस यहां, एहतराम ए वफ़ा कीजे 
खुदाई के वसूलों से चारगों को जला रखिए 

ज़माना कैसा भी हो ,राह पर निशान दिखेंगे 
इंसानियत का अलम, दिल में थमा रखिए।
राजीव

©samandar Speaks

White मैं किसान हूँ मैं किसान हूँ, धरती का बेटा, मेरे खून से सींचा हर खेत का टुकड़ा। सूरज की तपिश, चाँदनी की छांव, हर मौसम सहा,बदहाली में गुजारी हर शाम सुबह की पहली किरणों से लेकर रात तक, मेरे पसीने से उपजा जीवन का चमत्कार। पर मेरी झोली में, क्यों सूनापन है, मेरे हक़ के आसमान में अंधेरा घना है। बारिश कभी बनती मेरी दुश्मन, सूखा कभी तोड़ देता मेरा मन। फसलें लहलहाती हैं, पर खुशी नहीं, बाज़ार के भावों में मेरी हस्ती नहीं। कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है, मेरे सपनों को धुंधला बनाता है। कभी घर की छत गिर जाती है, कभी बच्चों की शिक्षा छूट जाती है। मैं वो हूँ, जो हर किसी का पेट भरता, पर मेरा ही जीवन क्यों तन्हा सा रहता? मेरे श्रम का मोल कब समझेगी ये दुनिया, मेरी पीड़ा कब महसूस करेगी ये धरती और गगन? मैं किसान हूँ, पर हार नहीं मानूँगा, अपने बच्चों को ये जालिम दौर दिखाऊँगा। फिर उगेगी उम्मीद की हरियाली, जब हर दिल में जागेगी मेरी कहानी। ©samandar Speaks

#कविता #love_shayari  White मैं किसान हूँ
मैं किसान हूँ, धरती का बेटा,
मेरे खून से सींचा हर खेत का टुकड़ा।
सूरज की तपिश, चाँदनी की छांव,
हर मौसम सहा,बदहाली में गुजारी हर शाम 
सुबह की पहली किरणों से लेकर रात तक,
मेरे पसीने से उपजा जीवन का चमत्कार।
पर मेरी झोली में, क्यों सूनापन है,
मेरे हक़ के आसमान में अंधेरा घना है।
बारिश कभी बनती मेरी दुश्मन,
सूखा कभी तोड़ देता मेरा मन।
फसलें लहलहाती हैं, पर खुशी नहीं,
बाज़ार के भावों में मेरी हस्ती नहीं।
कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है,
मेरे सपनों को धुंधला बनाता है।
कभी घर की छत गिर जाती है,
कभी बच्चों की शिक्षा छूट जाती है।
मैं वो हूँ, जो हर किसी का पेट भरता,
पर मेरा ही जीवन क्यों तन्हा सा रहता?
मेरे श्रम का मोल कब समझेगी ये दुनिया,
मेरी पीड़ा कब महसूस करेगी ये धरती और गगन?
मैं किसान हूँ, पर हार नहीं मानूँगा,
अपने बच्चों को ये जालिम दौर दिखाऊँगा।
फिर उगेगी उम्मीद की हरियाली,
जब हर दिल में जागेगी मेरी कहानी।

©samandar Speaks
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