White ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता
ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते
न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते
बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता
झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है
बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं
इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता
बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं
इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं
रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता
ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता
राजीव
©samandar Speaks
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