गिरधर कहूं मैं कृष्ण कहूं,
प्रभु किस विधि तुम्हें मनाऊं,
कभी वृंदावन कभी मथुरा की गली,
कान्हा को कैसे रिझाऊं l
जो तुम तोड़ो प्रभु मैं ना तोडूं
प्रीत की डोर तुम्हरे संग जोडूं,
तुम सागर मैं नदी की धारा,
चहुंओर बस तुमको खोजूं l
मन मंदिर में तुम्हें बसा लूँ,
स्नेह की बाती का दिया जला लूँ,
तुम ठाकुर मैं तुम्हरी दासी,
हर श्वास तुम पर लुटा दूँ l
इक दरस की प्यास बुझा लूँ,
चरण धूलि की तिलक लगा लूँ,
नटवर नागर मेरे गोविंदा,
कृष्णमय जीवन को कर लूँ l
©Dr SONI
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