खामोशी............
मुझे पसंद है मेरी खामोशी...
वह चुप्पी...
जिसकी गूंज सुन सकती हूं..
सिर्फ और सिर्फ मैं...।
मुझे पसंद है शब्दों की सहजता....
नहीं तोड़ती मरोड़ती मैं उन्हें...
निजी स्वार्थों के लिए..
नहीं करती विच्छेद..।
हां, मुझे पसंद है..
दीपक कि वह छाया..
जो मौन रहकर सह लेती है सब कुछ..
निष्ठुर दीपक..
करताअनदेखी..
अपने ही घर आता परदेसी बनकर...
करता मनमानी...
करती हूं सम्मान मैं..
उस परछाई का.... ।
हां.. पसंद है..
पूनम के मुख का दाग..
जो लगता है मुझे.
चांद से भी ज्यादा प्यारा.
नहीं उलझती मैं..
इस चकाचौंध रोशनी में..
जी लेती हूं..
रह लेती हूं..
सह लेती हूं..
अभाव भी.... l
हां.. पसंद है मुरझाए फूल भी...
खोकर उसके रंग-ओ-आब में..
खिल उठती हूं मैं भी.. ।
हां.. पसंद है.
तनहाई..
इस भीड़-भाड़ की दुनिया में..
जहां खोखले हो चुके हैं..
रिश्ते..
जर्जर है प्रेम की इमारते..
मैं असहज हो जाती हूं..
खोना चाहती हूं..
उस शून्य में..
जहां सुन सकूं..
मैं अपने मौन को..
कह सकूं जो कहना चाहती हूं.
कई दिन..
महीनों..
साल से..
नहीं खेलती जज्बातों से...।
जली थकी आंखों में..
सुकून का सुरमा लगा..
करती हूं वादा..
खुद से..
क्यों भटक रही थी..
किस रोशनी की तलाश में..
इधर-उधर..
जिसे पाया मैंने अपने ही भीतर.... I
डॉ सोनी, मुजफ्फरपुर
©Dr SONI
#Fire खामोशी............
मुझे पसंद है मेरी खामोशी...
वह चुप्पी...
जिसकी गूंज सुन सकती हूं..
सिर्फ और सिर्फ मैं...।
मुझे पसंद है शब्दों की सहजता....
नहीं तोड़ती मरोड़ती मैं उन्हें...