यूं ही नहीं... कोई दिल को भाता है.. यूं ही नहीं. | हिंदी Poetry

"यूं ही नहीं... कोई दिल को भाता है.. यूं ही नहीं... कोई अपना सा लगता है... कुछ तो बात है... उसकी सादगी में भी... यूं ही नहीं... मन उस ओर चला जाता है... उसका साथ... है खुला आसमान... जहां ख्वाबों के पंख लगा... पंछी बन उड़ जाती हूं मैं.... रख देती हूं... दिल के जज्बात... करती हूं... ढेर सारी बातें उससे.... सुनती है... वो अक्सर चुप्पी लगा... समझती है मुझे... कहती है नादान हूं मैं... इस दम्भ भरी दुनिया से... अनजान हूं मैं.. पर वो है बड़ी समझदार.. रहती है बिंदास... उसके जिक्र से खुशियां जगे.. उसका शोर भी संगीत लगे, गुणों की भंडार वो.. दुःख कंटक भी सुमन से लगे.. उस पर हक जताना.. अच्छा लगता है... भूल जाती हूं.. हर ग़म को.. बस यूँ ही.. संग हंसना.. अच्छा लगता है.. शायद.. पिछले जन्म का नाता है... उसके बिन.. कहां.. कुछ.. भाता है.. वो है तो सब है.. उस दोस्त में.. दिखता मुझे रब है... ❤️❤️❤️❤️ ©Dr SONI"

 यूं ही नहीं... 
कोई दिल को भाता है.. 
यूं ही नहीं... 
कोई अपना सा लगता है... 
कुछ तो बात है... 
उसकी सादगी में भी... 
यूं ही नहीं... 
मन उस ओर चला जाता है... 
उसका साथ... 
है खुला आसमान... 
जहां ख्वाबों के पंख लगा... 
पंछी बन उड़ जाती हूं मैं.... 
रख देती हूं... 
दिल के जज्बात... 
करती हूं... 
ढेर सारी बातें उससे.... 
सुनती है... 
वो अक्सर चुप्पी लगा... 
समझती है मुझे... 
कहती है नादान हूं मैं... 
इस दम्भ भरी दुनिया से... 
अनजान हूं मैं.. 
पर वो है बड़ी समझदार.. 
रहती है बिंदास... 
उसके जिक्र से खुशियां जगे.. 
उसका शोर भी संगीत लगे, 
गुणों की भंडार वो.. 
दुःख कंटक भी सुमन से लगे.. 
उस पर हक जताना.. 
अच्छा लगता है... 
भूल जाती हूं.. 
हर ग़म को.. 
बस यूँ ही.. 
संग हंसना.. अच्छा लगता है.. 
शायद.. 
पिछले जन्म का नाता है... 
उसके बिन.. 
कहां.. कुछ.. भाता है.. 
वो है तो सब है.. 
उस दोस्त में.. 
दिखता मुझे रब है... 
❤️❤️❤️❤️

©Dr SONI

यूं ही नहीं... कोई दिल को भाता है.. यूं ही नहीं... कोई अपना सा लगता है... कुछ तो बात है... उसकी सादगी में भी... यूं ही नहीं... मन उस ओर चला जाता है... उसका साथ... है खुला आसमान... जहां ख्वाबों के पंख लगा... पंछी बन उड़ जाती हूं मैं.... रख देती हूं... दिल के जज्बात... करती हूं... ढेर सारी बातें उससे.... सुनती है... वो अक्सर चुप्पी लगा... समझती है मुझे... कहती है नादान हूं मैं... इस दम्भ भरी दुनिया से... अनजान हूं मैं.. पर वो है बड़ी समझदार.. रहती है बिंदास... उसके जिक्र से खुशियां जगे.. उसका शोर भी संगीत लगे, गुणों की भंडार वो.. दुःख कंटक भी सुमन से लगे.. उस पर हक जताना.. अच्छा लगता है... भूल जाती हूं.. हर ग़म को.. बस यूँ ही.. संग हंसना.. अच्छा लगता है.. शायद.. पिछले जन्म का नाता है... उसके बिन.. कहां.. कुछ.. भाता है.. वो है तो सब है.. उस दोस्त में.. दिखता मुझे रब है... ❤️❤️❤️❤️ ©Dr SONI

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