मुझपे ही पड़ता मेरी सांसों का कहर
एक तरफा मोहब्बत का जहर
मेरा तिरस्कार करती हुई तेरी आँखें
किसी और से ईकरार करती तेरी बातें
मैं बर्दास्त कर लूँगा.....
मैं बर्दास्त कर लूँगा...
तन्हाई, खामोशी और घोर सन्नाटा
अपने ही हांथों से अपने गाल पर चाटा
अपने सर पर पत्थर-ए-हुजूम
मुझे गालियाँ देती हुई तुम
मुझपे तिलमिला कर चीखती हुई धड़कन
बिखरे हुए ख्वाबों के शिसकियों का तड़पन
मैं बर्दास्त कर लूँगा....
ठंडी रूह, काँपते लब, बरसती आँखें
तेरी यादों के धूप में सुखती साँसे
क्यों का शोर मचाता हुआ सवाल
जिंदगी भर तुझे न पाने का मलाल
ये सब के सब मैं बर्दास्त कर लूँगा....
मगर, प्रियात्मा...जब तुम मुझपे तरस खाकर
मेरे काँधे पर हाँथ भर रखोगी
तो ये मुझसे हरगिज बर्दास्त नहीं होगा।
©RAVISHANKAR PAL
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