#काव्यार्पण

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"बस इतना समझ लो तुम्हारी पहुँच से बाहर हूं मैं"

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White अंधेरी रात है और चांद निकल आया है ये मेरी जुल्फ है या फिर किसी का साया है। तू मेरे दिल से गया है निकल के जिस दिन से मैने तेरे जैसा एक आईना बनाया है। छोड़ कर जाते भी हैं फिर वहीं आ जाते हैं आपने भूलभुलैया सा दिल बनाया है। वो कौन था जो मेरे सामने खड़ा था अभी ये कौन है कि जिसने सीने से लगाया है। ताज़्जुब है कि ये मुझ पर असर नहीं करता ये तुमने दर्द भरा शेर जो सुनाया है। हवस बिलखती थी दिन रात मेरे कदमों में मैंने इक आदमी को देवता बनाया है। ये दिल है उसका और वो किसी की बांहों में वो अपना है या फिर कहूं कि वो पराया है । अलग रुआब से वो आज मिला था हमसे पता चला वो किसी जिस्म से नहाया है। अभी अभी खबर मिली थी मेरे मरने की वो इतना खुश है कि अखबार बेंच आया है। नमाज उसने पढ़ी थी अभी मेरे हक में ना जाने कौन बुत में जान फूंक आया है। बोझ क्या जानेंगे मेरा ये जमाने वाले लाश को अपनी मैंने कंधों पर उठाया है। रख के मुस्कान अपने होंठों पे मैंने 'प्रज्ञा अपने दूल्हे को किसी के लिए सजाया है। ©#काव्यार्पण

#love_shayari  White अंधेरी रात है और चांद निकल आया है
ये मेरी जुल्फ है या फिर किसी का साया है।

तू मेरे दिल से गया है निकल के जिस दिन से
मैने तेरे जैसा एक आईना बनाया है।

छोड़ कर जाते भी हैं फिर वहीं आ जाते हैं
आपने भूलभुलैया सा दिल बनाया है।

वो कौन था जो मेरे सामने खड़ा था अभी
ये कौन है कि जिसने सीने से लगाया है।

ताज़्जुब है कि ये मुझ पर असर नहीं करता
ये तुमने दर्द भरा शेर जो सुनाया है।

हवस बिलखती थी दिन रात मेरे कदमों में 
मैंने इक आदमी को देवता बनाया है।

ये दिल है उसका और वो किसी की बांहों में 
वो अपना है या फिर कहूं कि वो पराया है ।

अलग रुआब से वो आज मिला था हमसे
पता चला वो किसी जिस्म से नहाया है।

अभी अभी खबर मिली थी मेरे मरने की
वो इतना खुश है कि अखबार बेंच आया है।

नमाज उसने पढ़ी थी अभी मेरे हक में
ना जाने कौन बुत में जान फूंक आया है।

बोझ क्या जानेंगे मेरा ये जमाने वाले 
लाश को अपनी मैंने कंधों पर उठाया है।

रख के मुस्कान अपने होंठों पे मैंने 'प्रज्ञा
अपने दूल्हे को किसी के लिए सजाया है।

©#काव्यार्पण

#love_shayari Er Aryan Tiwari @Kumar Shaurya सफ़ीर 'रे' @Sircastic Saurabh Yash Mehta शिवम् सिंह भूमि

25 Love

White तुम्हारे कदमों में जानम मैं ये अंबर झुका दूं क्या ? इंस्टा पे हुई चैटिंग तो अब नंबर बता दूं क्या ? यूं तो दोस्ती का मैं हवाला रोज देती हूं, तुम्हें अपनी भतीजी का मैं अब फूफा बना दूं क्या ? शर्म और लाज तो होता है हर औरत का एक गहना, तुम्हें एतराज ना हो तो मैं ये पर्दा गिरा दूं क्या ? बहुत हैं चाहने वाले एक तुम ही नहीं लट्टू, तुम्हें इंट्रेस्ट हो तो मैं तुम्हें सबसे मिला दूं क्या ? मेरे हार्ट में है सेव सीतापुर का वो लड़का तुम्हारे कहने पर अब मैं उसे रिप्लेस कर दूं क्या? बढ़ी नजदीकियां तुमसे तो फिर अब ये भी सुन लो तुम जो प्यारी हो तुम्हें ऐसी कोई मिस्टेक कर दूं क्या ? कि अब पैनकार्ड पर शुक्ला मुझे अच्छा नहीं लगता कि अपने नाम के आगे तेरा सरनेम लिख दूं क्या ? जो तेरा है वही मेरा यही गर रूल है तो फिर अपने बैंक खाते को मैं अब ज्वाइंट कर दूं क्या ? मिटा दूं फासले जो तेरे मेरे दर्मियां ठहरे आधार पर अपने तेरा एड्रेस कर दूं क्या ? कि मेरे लफ्जों में है दम नहीं फिर भी कहो गर तुम एक कविता लिखूं तुम पर तुम्हें नि:शब्द कर दूं क्या? है गर मंजूर तो ना चुप रहो मुझसे यही कह दो "तुम्हारी मांग सूनी है मैं अब सिंदूर भर दूं क्या?" प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर ©#काव्यार्पण

#काव्यार्पण #pragyapoetry #sad_quotes #Kavyarpan  White तुम्हारे कदमों में जानम मैं ये अंबर झुका दूं क्या ?
इंस्टा पे हुई चैटिंग तो अब नंबर बता दूं क्या ?
यूं तो दोस्ती का मैं हवाला रोज देती हूं,
तुम्हें अपनी भतीजी का मैं अब फूफा बना दूं क्या ?

शर्म और लाज तो होता है हर औरत का एक गहना,
तुम्हें एतराज ना हो तो मैं ये पर्दा गिरा दूं क्या ?

बहुत हैं चाहने वाले एक तुम ही नहीं लट्टू,
तुम्हें इंट्रेस्ट हो तो मैं तुम्हें सबसे मिला दूं क्या ?
मेरे हार्ट में है सेव सीतापुर का वो लड़का
तुम्हारे कहने पर अब मैं उसे रिप्लेस कर दूं क्या?

बढ़ी नजदीकियां तुमसे तो फिर अब ये भी सुन लो तुम
जो प्यारी हो तुम्हें ऐसी कोई मिस्टेक कर दूं क्या ?
कि अब पैनकार्ड पर शुक्ला मुझे अच्छा नहीं लगता
कि अपने नाम के आगे तेरा सरनेम लिख दूं क्या ?

जो तेरा है वही मेरा यही गर रूल है तो फिर
अपने बैंक खाते को मैं अब ज्वाइंट कर दूं क्या ?
मिटा दूं फासले जो तेरे मेरे दर्मियां ठहरे
आधार पर अपने तेरा एड्रेस कर दूं क्या ?

कि मेरे लफ्जों में है दम नहीं फिर भी कहो गर तुम
एक कविता लिखूं तुम पर तुम्हें नि:शब्द कर दूं क्या?
है गर मंजूर तो ना चुप रहो मुझसे यही कह दो
"तुम्हारी मांग सूनी है मैं अब सिंदूर भर दूं क्या?"

प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर

©#काव्यार्पण

तुम्हारे कदमों में जानम:- प्रज्ञा शुक्ला #sad_quotes #Kavyarpan #pragyapoetry #Nojoto #काव्यार्पण Sushant @Kumar Shaurya Er Aryan Tiwari शिवम् सिंह भूमि @Sircastic Saurabh Yash Mehta poetry lovers punjabi poetry poetry in hindi hindi poetry on life poetry quotes

28 Love

White 1222 1222 122 है आलीशान घर आँगन नहीं है , दुपट्टा है मगर दामन नहीं है । पहुँचना चाहती हूं उस खुदा तक ,पहुँचने का कोई साधन नहीं है। हमें बाहों में लेने से क्या होगा, जिसम तो है हमारा मन नहीं है। महज सिंदूर ही तो भर रखा है, सुहागन कर दे जो साजन नहीं है। हमें यूं देख कर तन्हा वो जालिम, सुकूं से है कोई शिकवन नहीं है। सिले हैं होंठ मैंने जब से अपने, किसी से अब कोई अनबन नहीं है। बड़े चैन- ओ- सुकूं से रहती हूं अब,है दिल लेकिन मेरी धड़कन नहीं है। उसे शर्माना अब आता कहां है ,तवायफ है कोई दुल्हन नहीं है। मेरी तकदीर में ही वो लिखा है , जिसे पाने का कोई मन नहीं है। रकीबों की कहानी तुम कहो बस,वो बहना है मेरी सौतन नहीं है। हमारे पास हैं जज्बात केवल, हमारे पास काला धन नहीं है। वो कैसा है बता पाना है मुश्किल ,जुबां तो है मगर वरनन नहीं है। हमारे प्यार के हम ही हैं दुश्मन, अऔर दूजी कोई अर्चन नहीं है । दुआओं की तलब होती है अक्सर, दुआओं से भरा दामन नहीं है। प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर ©#काव्यार्पण

#काव्यार्पण #Sad_Status #गजल #Kavyarpan  White 

1222 1222 122
है आलीशान घर आँगन नहीं है , दुपट्टा है मगर दामन नहीं है ।
पहुँचना चाहती हूं उस खुदा तक ,पहुँचने का कोई साधन नहीं है।

हमें बाहों में लेने से क्या होगा, जिसम तो है हमारा मन नहीं है।

महज सिंदूर ही तो भर रखा है, सुहागन कर दे जो साजन नहीं है।

हमें यूं देख कर तन्हा वो जालिम, सुकूं से है कोई शिकवन नहीं है।

सिले हैं होंठ मैंने जब से अपने, किसी से अब कोई अनबन नहीं है।

बड़े चैन- ओ- सुकूं से रहती हूं अब,है दिल लेकिन मेरी धड़कन नहीं है।

उसे शर्माना अब आता कहां है ,तवायफ है कोई दुल्हन नहीं है।

मेरी तकदीर में ही वो लिखा है , जिसे पाने का कोई मन नहीं है।

रकीबों की कहानी तुम कहो बस,वो बहना है मेरी सौतन नहीं है।

हमारे पास हैं जज्बात केवल, हमारे पास काला धन नहीं है।

वो कैसा है बता पाना है मुश्किल ,जुबां तो है मगर वरनन नहीं है।

हमारे प्यार के हम ही हैं दुश्मन, अऔर दूजी कोई अर्चन नहीं है ।

दुआओं की तलब होती है अक्सर, दुआओं से भरा दामन नहीं है।

प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर

©#काव्यार्पण

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29 Love

#Krishna  White 
द्वारिका के धीश हो तुम सब युगों के ईश हो तुम
कंस का अभिशाप तुम ही देवकी आशीष हो तुम ।
पार्थ के प्रिय सारथी हो मीरा की तुम आरती हो
गीता का संवाद हो तुम धर्म के युग भारती हो।
राधा राधा कहने वाले प्रेम नर्तन करने वाले
युग प्रणेता हो प्रभु तुम ज्ञान अर्पण करने वाले।

शिक्षा संदीपनि से पाई मां यशोदा जैसी माई
द्रौपदी सी परम सखि और प्रीति राधा जैसी पाई।
हर हृदय में प्रेम पाया शिष्य अभिमन्यु सा पाया
भक्त था रसखान सा और पुत्र प्रद्युम्न सा जाया।
सब दुखों को हरने वाले नाग नर्तन करने वाले
तुम हमारे ही रहोगे प्रेम अर्पण करने वाले।

देवकी के छ: शिशु लौटा दिए थे एक क्षण में
भीष्म प्रण रखने को मोहन ने उठाया शस्त्र रण में 
नरकासुर की स्त्रियों को मान भी जग में दिलाया
जब प्रभु क्रोधित हुए ब्रह्माण्ड भी पग में हिलाया।
प्रज्ञा शुक्ला को विरह में काव्य अर्पण करने वाले।
युग प्रणेता हो प्रभु तुम ज्ञान अर्पण करने वाले।

©#काव्यार्पण

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#काव्यार्पण #काव्यपथिक #love_shayari #Kavyarpan  White निभाओ दोस्ती तुम और हमें अनजान अब कर दो
मोहब्बत बस छलावा है यही ऐलान अब कर दो।
हुआ है खून जो प्रज्ञा का कोई बात थोड़ी है
मिले थे हम जहां उस राह को सूनसान अब कर दो।

प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर

©#काव्यार्पण
#काव्यार्पण #Pragyashuklakikavita #शून्य #sad_shayari #Friendship #Kavyarpan  White प्रेम से भी बड़ा बन्धन,सुकून आये दोस्ती में।
कभी कृष्णा कभी अर्जुन याद आये दोस्ती में।
अपनी जिंदगी से हार थक करके हर इन्सान,
सभी परेशानियां और गम भूल जाये दोस्ती में।

बना दे जिंदगी सुंदर निभाओ साथ जब दिल से
यकीन करना बड़ा मुश्किल दग़ा गर कोई दे फिर से।
दोस्ती है बड़े विश्वास और एहसास का बन्धन,
निभाओ इसको तुम निःस्वार्थ हो विश्वास जब दिल से।

मेरे मन के मंदिर में दोस्ती राज करती है,
मेरे यार की मूरत ही मन मे वास करती है।
मेरे दोस्त और मुझसे है कुछ ज्यादा ही मीठापन
साथ बस कुछ ही पल का है ये दुनिया बात करती है।

कर्ण ने दुर्योधन से निभाया खूब याराना।
रक्त के रिश्तों को तोड़ा निभाया खूब याराना।
कन्हैया ने तो अर्जुन को गीता उपदेश दे डाला,
उठा हथियार वचन तोड़ा निभाया खूब याराना।।

प्रज्ञा शुक्ला, सीतापुर

©#काव्यार्पण

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