Aakash Dwivedi

Aakash Dwivedi

B.H.U. Varanasi राही 🧡 lover write ✍️

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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset ख़ुद को बोल देता हूं (शायरी) राज ए दिल मोहब्बत या गिला सब बोल देता हूं कोई कैसा भी हो दूजा यूं अपना बोल देता हूं कुछ रूठ जाते हैं फकत नासमझी वकालत से जुबां खामोश भी गर हो नज़र से बोल देता हूं साज ए हुस्न की सुंदरता भी कोई बात होती है बातें बिन बात हो जो बात वहां मैं बोल देता हूं गुमान ए रंग की दहलीज पर चौखट किनारे था रंगत प्रेम की गर हो तो सब कुछ बोल देता हूं ना रूठता ज्यादा ना उम्मीदें किसी से है कोई कहता कि कैसे हो तो अच्छा बोल देता हूं। इनायत ना किसी की है नफ़रत के ज़माने में शिकायत खुद से ही करना खुद को बोल देता हूं Aakash dwivedi ✍️ 15/01/2025 ©Aakash Dwivedi

#कविता #शायरी #AakashDwivedi #Motivation #Quotes  a-person-standing-on-a-beach-at-sunset 
ख़ुद को बोल देता हूं (शायरी)

राज ए दिल मोहब्बत या गिला सब बोल देता हूं 
कोई कैसा भी हो दूजा यूं अपना बोल देता हूं 
कुछ रूठ जाते हैं फकत नासमझी वकालत से 
जुबां खामोश भी गर हो नज़र से बोल देता हूं 

साज ए हुस्न की सुंदरता भी कोई बात होती है 
बातें बिन बात हो जो बात वहां मैं बोल देता हूं 
गुमान ए रंग की दहलीज पर चौखट किनारे था 
रंगत प्रेम की गर हो तो सब कुछ बोल देता हूं 

ना रूठता ज्यादा ना उम्मीदें किसी से है 
कोई कहता कि कैसे हो तो अच्छा बोल देता हूं। 
इनायत ना किसी की है नफ़रत के ज़माने में 
शिकायत खुद से ही करना खुद को बोल देता हूं

           Aakash dwivedi ✍️
             15/01/2025

©Aakash Dwivedi

Unsplash *...बीत गया दिसम्बर...* गैरों को तो गैर लिखूं अपनो को लिखूं क्या अम्बर। कहते तो सब ही अपने हैं नदियां, झील, समन्दर।। क्या रहा क्या चला गया कुछ पता चला क्या अम्बर। ठंडी, ठंडी रातों में ही देख यूं बीत गया दिसम्बर।। कुछ सख़्त लगा पहले से ज्यादा पर हुआ वक्त क्या अम्बर। कुछ जज्बात भी खोज लिए है नैनन ने दूजा मंजर।। खुशबू ने लिखा फूलों की चाहत मैं लिखूं चाहता क्या अम्बर। कोई मिले जो पूरी कविता लिख दूं कुछ बाहर,कुछ अंदर।। ~आकाश द्विवेदी ✍️ ©Aakash Dwivedi

#शायरी #कविता #AakashDwivedi #thought  Unsplash *...बीत गया दिसम्बर...*

गैरों को तो गैर लिखूं 
अपनो को लिखूं क्या अम्बर। 
कहते तो सब ही अपने हैं 
नदियां, झील, समन्दर।।

क्या रहा क्या चला गया 
कुछ पता चला क्या अम्बर।
ठंडी, ठंडी रातों में ही देख
यूं  बीत गया दिसम्बर।।

कुछ सख़्त  लगा पहले से ज्यादा 
पर हुआ वक्त  क्या अम्बर।
कुछ जज्बात भी खोज लिए
 है नैनन ने दूजा मंजर।।

खुशबू ने लिखा फूलों की चाहत 
मैं लिखूं चाहता क्या अम्बर।
कोई मिले जो पूरी कविता लिख दूं 
कुछ बाहर,कुछ अंदर।।
             
        ~आकाश द्विवेदी ✍️

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White एक पत्थर झरने की भावनाओं में डूब जाना चाहता है। मगर अफसोस वो हर बार उसे भिगो कर चली जाती है। खेल यह नदियों से चला आ रहा है , और बहाव सदियों से चला आ रहा है , एक उम्मीद लिए वो पत्थर घाट बन जाते हैं, किसी के चाहत की बात बन जाते हैं,। पुनः उन घाटों पर कई उम्मीदें जन्म लेती हैं। किनारा नदी का देख सहारा लेती हैं। हर कोई उन उम्मीदों पर बैठ नज़ारा लेता है मगर वह घाट सब कुछ देखकर भी मौन है उसे पता है आज के तो सब मगर कल का कौन है बाहर की दुनियां बाहर से सुंदर है, जाकर भीतर देख गहरा समुंदर है। दूसरों से पहले खुद को जानो तुम। यह बात पुरानी है बात तो मानो तुम Aakash dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

#कविता #शायरी #AakashDwivedi #sunset_time #Quotes  White एक पत्थर झरने की भावनाओं में डूब जाना चाहता है।
मगर अफसोस वो हर बार उसे भिगो कर चली जाती है।
खेल यह नदियों से चला आ रहा है ,
और बहाव सदियों से चला आ रहा है ,
एक उम्मीद लिए वो पत्थर घाट बन जाते हैं, 
किसी के चाहत की बात बन जाते हैं,।
पुनः उन घाटों पर कई उम्मीदें जन्म लेती हैं।
किनारा नदी का देख सहारा लेती हैं। 
हर कोई उन उम्मीदों पर बैठ नज़ारा लेता है 
मगर वह घाट सब कुछ देखकर भी मौन है 
उसे पता है आज के तो सब मगर कल का कौन है 
बाहर की दुनियां बाहर से सुंदर है,
जाकर भीतर देख गहरा समुंदर है। 
दूसरों से पहले खुद को जानो तुम।
यह बात पुरानी है बात तो मानो तुम

                                Aakash dwivedi ✍️

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White कहीं खोया जा रहा हूं अपनों में अपनापन नहीं रहा बारिशों का कोई मौसम नहीं रहा मौसमी दर्द ने समा बांध ली है आकाश भी संदर्भित हो गए हैं बलपूर्वक भिगोया जा रहा हूं।। कहीं खोया जा रहा हूं आंधियों की रंगत ही काली है खुशियों में हर रात दिवाली है दर्द खरीद लूं किसी अपने कि या खुशियां बेच दूं जीने कि सोचता हूं पर ये बाजारू नहीं हैं।। अजीब गहराई में समाया जा रहा हूं कहीं खोया जा रहा हूं।। घूम लेता हूं दुःखी होने पर खुशी ठहरती नहीं पास मेरे कुछ पल के लिए बदल जाता हूं स्थाई कुछ भी नहीं साथ मेरे अनचाहे सपनों में सोया जा रहा हूं कहीं खोया जा रहा हूं।। कहते हैं जो सपने जागकर देखना पर जिम्मेदारी दूसरों के सपनों की सीढ़ी वाली मिली, जहां व्यक्तिगत कुछ करना मना है दो वक्त कि रोटी ने कहा है जरूरतें देखो, शौख करना मना है कैसी कश्मकश में डुबोया जा रहा हूं कहीं खोया जा रहा हूं।।       ~Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

 White कहीं खोया जा रहा हूं 
अपनों में अपनापन नहीं रहा 
बारिशों का कोई मौसम नहीं रहा 
मौसमी दर्द ने समा बांध ली है 
आकाश भी संदर्भित हो गए हैं 
बलपूर्वक भिगोया जा रहा हूं।।
कहीं खोया जा रहा हूं 
आंधियों की रंगत ही काली है 
खुशियों में हर रात दिवाली है
दर्द खरीद लूं किसी अपने कि 
या खुशियां बेच दूं जीने कि 
सोचता हूं पर ये बाजारू नहीं हैं।।
अजीब गहराई में समाया जा रहा हूं 
कहीं खोया जा रहा हूं।।
घूम लेता हूं दुःखी होने पर 
खुशी ठहरती नहीं पास मेरे
कुछ पल के लिए बदल जाता हूं 
स्थाई कुछ भी नहीं साथ मेरे
अनचाहे सपनों में सोया जा रहा हूं 
कहीं खोया जा रहा हूं।।
कहते हैं जो सपने जागकर देखना 
पर जिम्मेदारी दूसरों के सपनों 
की सीढ़ी वाली मिली, जहां 
व्यक्तिगत कुछ करना मना है 
दो वक्त कि रोटी ने कहा है 
जरूरतें देखो, शौख करना मना है
कैसी कश्मकश में डुबोया जा रहा हूं 
कहीं खोया जा रहा हूं।।
      ~Aakash Dwivedi ✍️

©Aakash Dwivedi

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White l#डर_जाता_हूं_मैं डर जाता हूं मैं छोटी छोटी खुशियों से खुश होने वाला नादां बनकर यूं सबसे खूब ठिठोले करता हूं मगर पराई बातों से और यू अपनों की तानों से बिखर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। तुलना खुद से करके किसी और की खुशियां दर्द को दवा बनाकर ऐसे निखर जाता हूं मगर दुनियां की रंगत से कुछ अनचाहे संगत से यूं ठहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। सबकी बातें सुन लेता ना कोई शिकायत करता हूं जब अपने ही न एक रहे रिश्ते नाते ना नेक रहे दिल मे कुटिल खेल को देख ऐसे सिहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। जीवन में दमन दाम का खेल ढलते सूरज से शाम का मेल न शाम सुहानी होती है न रात, रात को सोती है फिर भी प्रात: का मेल अरुण से देख संवर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। ~Aakash Dwivedi ✍️ #कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त ©Aakash Dwivedi

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डर जाता हूं मैं 
छोटी छोटी खुशियों से 
खुश होने वाला
नादां बनकर यूं सबसे
खूब ठिठोले करता हूं 
मगर पराई बातों से और 
यू अपनों की तानों से 
बिखर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
तुलना खुद से करके
किसी और की खुशियां 
दर्द को दवा बनाकर 
ऐसे निखर जाता हूं
मगर दुनियां की रंगत से 
कुछ अनचाहे संगत से 
यूं ठहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
सबकी बातें सुन लेता 
ना कोई शिकायत करता हूं 
जब अपने ही न एक रहे 
रिश्ते नाते ना नेक रहे 
दिल मे कुटिल खेल को देख 
ऐसे सिहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
जीवन में दमन दाम का खेल 
ढलते सूरज से शाम का मेल 
न शाम सुहानी होती है 
न रात, रात को सोती है 
फिर भी प्रात: का मेल अरुण से 
देख संवर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।

  ~Aakash Dwivedi ✍️ 

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White ### समंदर बनकर चाहा था जिसे ताल भी उसने नहीं समझा लहरों सा समा जाने आई थी.. साहिल मिलते ही कहीं का नही समझा। सौंपी थी दिल दु:खाने कि जिम्मेदारी ज़माने से लेकर मगर उसने उसे अपनो की तरह नहीं समझा तव्वसुम बता गई, ये एक हिस्सा था किसी खेल का मुसल्सल खेलति रही आकाश में मिलते हि मुकम्मल उसने    किसी ज़मी का नही समझा, खैर उनकी तमन्नाएं पूरी हुई, हां कुछ जरूरी चीजें अधूरी हुई मुकद्दर है हमारी, हमसे.. हमने इसे कभी किसी और का नही समझा  आना जाना तो कुदरती खेल है तकल्लुफ इतनी सी है हमने सब कुछ समझा उन्हें पर खुदा कसम खुदा नहीं समझा।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

 White ###

समंदर बनकर चाहा था जिसे 
ताल भी उसने नहीं समझा 
लहरों सा समा जाने आई थी.. 
साहिल मिलते ही कहीं का नही समझा।
सौंपी थी दिल दु:खाने कि जिम्मेदारी 
ज़माने से लेकर मगर उसने उसे 
अपनो की तरह नहीं समझा 
तव्वसुम बता गई, ये एक 
हिस्सा था किसी खेल का 
मुसल्सल खेलति रही आकाश में 
मिलते हि मुकम्मल उसने    
किसी ज़मी का नही समझा,
खैर उनकी तमन्नाएं पूरी हुई, हां 
कुछ जरूरी चीजें अधूरी हुई 
मुकद्दर है हमारी, हमसे..
हमने इसे कभी किसी 
और का नही समझा  
आना जाना तो कुदरती खेल है 
तकल्लुफ इतनी सी है 
हमने सब कुछ समझा उन्हें 
पर खुदा कसम खुदा नहीं समझा।।
                
                          Aakash Dwivedi ✍️

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