Aakash Dwivedi

Aakash Dwivedi

B.H.U. Varanasi राही 🧡 lover write ✍️

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White एक पत्थर झरने की भावनाओं में डूब जाना चाहता है। मगर अफसोस वो हर बार उसे भिगो कर चली जाती है। खेल यह नदियों से चला आ रहा है , और बहाव सदियों से चला आ रहा है , एक उम्मीद लिए वो पत्थर घाट बन जाते हैं, किसी के चाहत की बात बन जाते हैं,। पुनः उन घाटों पर कई उम्मीदें जन्म लेती हैं। किनारा नदी का देख सहारा लेती हैं। हर कोई उन उम्मीदों पर बैठ नज़ारा लेता है मगर वह घाट सब कुछ देखकर भी मौन है उसे पता है आज के तो सब मगर कल का कौन है बाहर की दुनियां बाहर से सुंदर है, जाकर भीतर देख गहरा समुंदर है। दूसरों से पहले खुद को जानो तुम। यह बात पुरानी है बात तो मानो तुम Aakash dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

#कविता #शायरी #AakashDwivedi #sunset_time #Quotes  White एक पत्थर झरने की भावनाओं में डूब जाना चाहता है।
मगर अफसोस वो हर बार उसे भिगो कर चली जाती है।
खेल यह नदियों से चला आ रहा है ,
और बहाव सदियों से चला आ रहा है ,
एक उम्मीद लिए वो पत्थर घाट बन जाते हैं, 
किसी के चाहत की बात बन जाते हैं,।
पुनः उन घाटों पर कई उम्मीदें जन्म लेती हैं।
किनारा नदी का देख सहारा लेती हैं। 
हर कोई उन उम्मीदों पर बैठ नज़ारा लेता है 
मगर वह घाट सब कुछ देखकर भी मौन है 
उसे पता है आज के तो सब मगर कल का कौन है 
बाहर की दुनियां बाहर से सुंदर है,
जाकर भीतर देख गहरा समुंदर है। 
दूसरों से पहले खुद को जानो तुम।
यह बात पुरानी है बात तो मानो तुम

                                Aakash dwivedi ✍️

©Aakash Dwivedi

White ### समंदर बनकर चाहा था जिसे ताल भी उसने नहीं समझा लहरों सा समा जाने आई थी.. साहिल मिलते ही कहीं का नही समझा। सौंपी थी दिल दु:खाने कि जिम्मेदारी ज़माने से लेकर मगर उसने उसे अपनो की तरह नहीं समझा तव्वसुम बता गई, ये एक हिस्सा था किसी खेल का मुसल्सल खेलति रही आकाश में मिलते हि मुकम्मल उसने    किसी ज़मी का नही समझा, खैर उनकी तमन्नाएं पूरी हुई, हां कुछ जरूरी चीजें अधूरी हुई मुकद्दर है हमारी, हमसे.. हमने इसे कभी किसी और का नही समझा  आना जाना तो कुदरती खेल है तकल्लुफ इतनी सी है हमने सब कुछ समझा उन्हें पर खुदा कसम खुदा नहीं समझा।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

 White ###

समंदर बनकर चाहा था जिसे 
ताल भी उसने नहीं समझा 
लहरों सा समा जाने आई थी.. 
साहिल मिलते ही कहीं का नही समझा।
सौंपी थी दिल दु:खाने कि जिम्मेदारी 
ज़माने से लेकर मगर उसने उसे 
अपनो की तरह नहीं समझा 
तव्वसुम बता गई, ये एक 
हिस्सा था किसी खेल का 
मुसल्सल खेलति रही आकाश में 
मिलते हि मुकम्मल उसने    
किसी ज़मी का नही समझा,
खैर उनकी तमन्नाएं पूरी हुई, हां 
कुछ जरूरी चीजें अधूरी हुई 
मुकद्दर है हमारी, हमसे..
हमने इसे कभी किसी 
और का नही समझा  
आना जाना तो कुदरती खेल है 
तकल्लुफ इतनी सी है 
हमने सब कुछ समझा उन्हें 
पर खुदा कसम खुदा नहीं समझा।।
                
                          Aakash Dwivedi ✍️

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8 Love

विषधर का विष भी नहीं है उतना जितना मानव मे समाया है। कण्ठ में थाम लिए शिव शम्भू पर मानुष तन ने तो पचाया है।। पद का मद है मोह भरा क्षणभंगुर काया का ज्ञान नहीं। धार तेज कर हथियार रख लिया जितना की उसका म्यान नहीं।। मन से मानवता का पाठ हे नर कभी तुम पढ़ भी लो।। दूसरों की ही अच्छाई देखकर खुदपर कभी तुम गढ़ भी लो।। बाहर की मंडित चकाचौंध देखकर अंदर के कोलाहल न सुना।। सर्प कभी अपना न हुआ जो अपनो को भी स्वयं भुना। तू नहीं जानता जो हुआ है ना जान पाएगा जो भी होगा बस देख रहा अपने पालने की अरे सब के साथ वही होगा तर्क करो कुतर्क  नहीं सजग रहो सतर्क वहीं खुद को खुदा उसी ने कहा है जिसे नीर क्षीर में फर्क नहीं।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

#कविता #कहानी #शायरी #AakashDwivedi #मानव  विषधर का विष भी नहीं है उतना
जितना मानव मे समाया है।
कण्ठ में थाम लिए शिव शम्भू
पर मानुष तन ने तो पचाया है।।

पद का मद है मोह भरा
क्षणभंगुर काया का ज्ञान नहीं।
धार तेज कर हथियार रख लिया
जितना की उसका म्यान नहीं।।
मन से मानवता का पाठ
हे नर कभी तुम पढ़ भी लो।।
दूसरों की ही अच्छाई देखकर
खुदपर कभी तुम गढ़ भी लो।।
बाहर की मंडित चकाचौंध देखकर 
अंदर के कोलाहल न सुना।।
सर्प कभी अपना न हुआ
जो अपनो को भी स्वयं भुना।
तू नहीं जानता जो हुआ है 
ना जान पाएगा जो भी होगा
बस देख रहा अपने पालने की
अरे सब के साथ वही होगा 
तर्क करो कुतर्क  नहीं 
सजग रहो सतर्क वहीं
खुद को खुदा उसी ने कहा है
जिसे नीर क्षीर में फर्क नहीं।।

                     Aakash Dwivedi ✍️

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ये कैसा बदलाव है हर एक मोड़ पर घाव है जीवन सदी या दबी रह गई या दोनों की टकराव है? कौन अपना कौन पराया यह बात किसने बतलाया जिसको जिसने देखा जैसे वैसे मन में छवि बनाया। रस के रसिक कहां खोए थे रिश्तों के कुछ बीज बोए थे अपनो से आशीष की मांग थी उस डगर सभी ने हाथ धोए थे। अकेले था चलना,तो सीख रहे थे बाजारों में लोग जो चीख रहे थे गर सुना किसी का कोई बात तो मंजिल मे कंकड़ दीख रहे थे। ©Aakash Dwivedi

 ये कैसा बदलाव है
हर एक मोड़ पर घाव है
जीवन सदी या दबी रह गई
या दोनों की टकराव है?
कौन अपना कौन पराया
यह बात किसने बतलाया
जिसको जिसने देखा जैसे
वैसे मन में छवि बनाया।
रस के रसिक कहां खोए थे 
रिश्तों के कुछ बीज बोए थे
अपनो से आशीष की मांग थी
उस डगर सभी ने हाथ धोए थे।
अकेले था चलना,तो सीख रहे थे
बाजारों में लोग जो चीख रहे थे
गर सुना किसी का कोई बात 
तो मंजिल मे कंकड़ दीख रहे थे।

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16 Love

 
वासंतिक कविता 🍁

सुहावना मौसम है आया ।
झोली भर कर खुशियां लाया।।

धरा मनहर सुगन्ध महकावे 
चहूं दिशी गगन साज सजावे।
मन्द पवन मन को अति भावे
वो ऋतु राज वसन्त कहलावे।।

पेड़ों पर छाई हरियाली
नए नए शाक सजाये डाली।
दृश्य मनोहर मन हर्षावे
पतझड़ बीत वसंत जब आवे।।

बाग बगीचे, वन मुस्काए
फसलें खेतों में लहराएं।
अद्भुत, अदम्य और अनन्त है 
सबसे न्यारा यह वसन्त है।।

गगन चूम जब कोयल आवे
अपने मीठे बोल सुनावे।
मन पुलकित, हृदय प्रसन्न है
सबका प्यारा यह वसन्त है।।

              Aakash Dwivedi ✍️

©Aakash Dwivedi

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